कब की जाए प्रसव कराने के लिए शल्य क्रिया C-Section?
अमरीकी अंग्रेजी में जिसे C -Section कहतें हैं और जिसका स्तेमाल केवल ज़रूरी होने पर ही प्रसव कराने के लिए किया जाता है उस शल्य क्रिया का पूरा नाम है Caesarean section.इसमें पेट की दीवारों को काट कर नवजात शिशु को बाहर निकाला जाता है .
सवाल यह है कब दी जाती है प्रसूति को यह शल्य करवाने की सलाह स्त्री -रोग एवं प्रसूति विज्ञान के माहिरों द्वारा ?
माहिरों के अनुसार ऐसी सलाह निम्न हालातों में दी जा सकती है -
(१)जब गर्भ में विकसित शिशु का तौल ३.५ किलोग्राम से ज्यादा हो .
(२)गर्भवती महिला उच्च रक्तचाप(High blood pressure) से ग्रस्त हो .
(३)जब योनी(Vagina) पर्याप्त रूप से Dilated न हो . enlarged ,expanded या फिर stetched न हो .किसी बॉडी पार्ट या केविटी का आकार में बढना है डायलेशन .यानी योनी का पर्याप्त विस्तार और फैलाव होता दिखलाई न दे रहा हो .
(४)या फिर गर्भवती महिला का श्रोणी प्रदेश (Pelvis region) Narrow हो .
चिकित्सा नीति शाश्त्र से सम्बंधित विज्ञान पत्रिका Indian Journal of Medical Ethics में सन २००८ में प्रकाशित एक अध्ययन में बतलाया गया था कि भारत में निजी नर्सिंग होम्स और निजी अस्पतालों का फैलाव C -Section के बढ़ते मामलों high rate और लोकप्रियता की वजह बना हुआ है .
प्रसूति विज्ञान के माहिर के पास सामान्य प्रसव कराने का न वक्त होता है न नीयत
दुनिया भर के प्रसूति विज्ञान के माहिरों के बीच एक चुटकलाक्या साफगोई लोकप्रिय है -सबसे ज्यादा C-section शुक्रवार को होतें हैं .सप्ताहांत अपना कौन खराब करे . सामान्य प्रसव में ५-१४ घंटों तक का समय लगता है .दर्द की पींग labour लम्बी खिंचती है .जबकि C -Section ज्यादा हुआ तो एक घंटा लेता है वरना और भी कम समय में कर लिया जाता है .शल्य द्वारा कराए गए प्रसव के बाद अस्पताल में भी उत्तर शल्य देखभाल के लिए ज्यादा दिनों तक रुकना पड़ता है जिसका अपना अर्थ शाश्त्र काम करता है .सामान्य प्रसव के बाद छुट्टी जल्दी मिल जाती है .(ज़ारी ...)
पब्लिक अस्पतालों में शल्य द्वारा प्रसव कराने के मामले उतने नहीं बढ़ें हैं जबकि निजी अस्पतालों में C-section के अकेले मुम्बई में ही २०१० में कुल २६%मामले दर्ज़ हुएँ हैं .आखिर क्यों ऐसा हो रहा है ?
मुंबई के निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में प्रसव कराने वाली महिलाओं में C-section के मामले लगातार बढ़ रहें हैं .जहां २००९ और २००८ में कुल २३-२४%महिलाओं ने शल्य द्वारा प्रसव करवाया वहीँ २०१० में चार में से एक महिला c -section करवाने के लिए राजी हुई और यह प्रतिशत बढ़के २६ %हो गया .गत तीन सालों में शहर के निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में प्रसव करवाने वाली महिलाओं की दर लगातार बढ़ी है जबकि पब्लिक अस्पतालों में ऐसा बहुत ही मामूली तौर पर हुआ है .
मसलन २००८ में संपन्न कुल ७७,५३३ प्रसव के मामलों में से १८,१९४ मामले इन निजी अस्पतालों में C-section द्वारा निपटाए गए यानी कुल २३.४७%मामलों में प्रसव C-section द्वारा करवाया गया .२०१० में यह आंकडा बढ़के २६.३५%पर आगया .
RTI activist चेतन कोठारी साहब ने ये आंकड़े सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत जुटाएं हैं .
इस बाबत शहर के एक नाम चीन नागर अस्पताल Sion Hospital में स्त्री रोग और प्रसूति विज्ञान के अध्यक्ष डॉ. वाई .ए .नंदनवार कहतें हैं .हमारे पास पेचीला मामले आतें हैं हम रुग्ड़ता और मृत्यु दर से बचाव के लिए ही C-section अपनातें हैं .मूलतय: हम एक सदमा देखभाल केंद्र हैं . एक और पब्लिक अस्पताल के स्त्री रोग और प्रसूति विद आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहतें हैं :शल्य प्रसव के कुल १०%से भी कम मामले पब्लिक अस्पतालों में संपन्न किए गएँ हैं . मेरा ख्याल था यह१९% तो होंगे ही .
विश्वस्वास्थ्य संगठन के अनुदेशों के अनुसार भारत में १०-१५%मामलों में ही शल्य द्वरा प्रसव करवाने की गुंजाइश रहती है .लेकिन कई माहिर इस आकलन से सहमत नहीं है बकौल उनके गर्भावस्था की अवधि में किसी भी मोड़ पर पेचीलापन आ सकता है .
बकौल डॉ .नोज़ेर शेरिअर अध्यक्ष स्त्री रोग एवं प्रसूति रोग सोसायटी ,मुंबई कुछ मामले सीजेरियन सेक्शन के वाजिब होतें हैं कुछ सीमान्त तथा कुछ निश्चय ही गैर ज़रूरी होतें हैं .
जे .जे अस्पताल में स्त्री रोग एवं प्रसूतिविज्ञान विभाग की मुखिया रेखा दावर कहतीं हैं पहला प्रसव शल्य द्वारा (C-section )संपन्न करवाने पर दूसरे मौकों पर भी इसकी प्रबल संभावना बनी रहती है कि प्रसव के लिए फिर C-Section का सहारा लेना पड़े .l
ज़ाहिर है जैसे जैसे परिवारों का आकार सिमट रहा है आय के स्रोत बढ़ रहें हैं लोगों का प्रसव के प्रति नज़रिया भी बदल रहा है लोग निजी अस्पतालों में अपने बच्चे के लिए ज्यादा खर्चने को राजी हैं .
सन्दर्भ -सामिग्री :-C- Section in private hosps cross 25%mark /THETIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC 7,2011,/P4
शल्य द्वारा प्रसव करवाने के कितने ही मामले टाले जा सकतें हैं .
(Many surgical deliveries avoidable :Docs/Private hospitals have neither the time nor the staff to take care of a woman delivering for hours ,and so they may prescribe C-sections/Times City /TOI,MUMBAI,DEC7,2011,p4).
एक प्रसूति विज्ञान के माहिर का सुनाया हुआ यह मज़ाक खासा वजनी है मायने रखता है कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा शल्य द्वारा प्रसव C-sections के मामले शुक्रवार को ही निपटाए जातें हैं वजह चिकित्सक सप्ताहांत में कोई बाधा नहीं चाहतें आपातकालीन मामलों को छोड़ जिन्हें वे निपटाते हैं ..पूरा लुत्फ़ उठाना चाहतें हैं वीकेंड का ,चिकित्सा नीति -शाश्त्र जाए चूल्हे में .
चिकित्सकों के अनुसार मुंबई में कुल २६ %मामले २०१० में प्रसव के शल्य द्वारा ही निपटाए गए हैं जबकि इनमे से कितने ही मामलों से बचा जा सकता था .इनके स्थान पर सामान्य प्रसव करवाया जा सकता था .
बेशक गर्भावस्था के दौरान पेचीलापन हो सकता है वाजिब मामला बनता है ऐसे में शल्य द्वारा प्रसव करवाना लेकिन निजी अस्पतालों द्वारा द्रुत लाभ और लक्ष्य पूरा करने की लालसा भी इसकी बड़ी वजह बनी हुई है .बेशक महिला द्वारा एक न्यूनतम दर्द बर्दाश्त न कर पाना ,इस सीमा का कमतर होते जाना threshold of pain का low होते जाना भी एक वजह बनता है .पेल्विस इन -कम्पेतिबिलिती (श्रोणी प्रदेश का संकरा होना ,Narrow pelvic region )भी वजह बनता है C-section की .योनी का ठीक से दाय्लेट (विस्तारित ) ,फैलाव न हो पाना भी एक वजह बनता है शल्य प्रसव की .
चिकित्सक खुद तस्दीक करतें हैं मानतें समझतें हैं इस बात को उनके लिए C-section संपन्न करवाना ज्यादा आसान ज्यादा प्रबंधनीय रहता है .उत्तर शल्य देखभाल का पूरा इंतजाम होता है .जबकि सामान्य प्रसव में महिला देर तक दर्द से कराह ती है .औसतन ६ -१४ घंटा तक चलता है लेबर पैन . जबकि C -section घंटा भर में ही निपटा लिया जाता है .बल्कि इससे भी पहले ही .यही कहना है डॉ रेखा दावर का .आप महाराष्ट्र राज्य द्वारा संचालित जे .जे अस्पताल में स्त्रीरोग खासकर प्रजनन सम्बन्धी स्त्री रोगों की माहिरा हैं .मुखिया भी हैं गाईनेकोलोजीविभाग की .
निजी अस्पतालों के पास सामान्य प्रसव को निपटाने का न धैर्य है न समय न नीयत न स्टाफ जो महिला की घंटों लेबर के दौरान तरीके से संभाल कर सके .उसे तसल्ली दे सके .उनका काम अपना काम झटपट निपटाना होता है .वर्तमान चिकित्सा अर्थशास्त्र इजाज़त नहीं देता एक मरीज़ को इतना समय दिया जाए .
लक्ष्य में रहता है लाभ और लक्ष्य .टारगेट्स निर्धारित अंक को छूने का .
ऐसे में activists मरीज़ को उकसाते हैं राजी करतें हैं C -section के लिए.लाभ गिनातें हैं उलटा पाठ पढातें हैं .अस्पताल से उत्तर शल्य ज्यादा दिनों बाद छुट्टी मिलती है .सामान्य प्रसव में इतना लाभांश कहाँ ?ऐसे में गैर -ज़रूरी शल्य किए जातें हैं .जिनकी कोई चिकित्सा नज़रिए से दरकार नहीं होती है .बेशक आखिरी फैसला मरीज़ का ही होता है लेकिन मरीजाएं अपनी माहिर की ही बात मानती हैं .
कुछ दूसरी वजहें भी बनती हैं C-section की :-
गर्भवती महिलाओं की नादानी ना समझी ,कई खुद पूछती हैं क्या C-section नहीं किया जा सकता वजह यह अज्ञान कि सामान्य प्रसव के बाद योनी की पेशियाँ अपनी लोच खोकर शिथिल हो जाएँगी .हम प्रसव पीड़ा और दर्द की पींगें ,लहरें कैसे झेल पाएंगी ?लेबर तो घंटों चलने वाला कर्म है प्रक्रिया है .झटपट निपटो काम से बच्चा पैदा करो आराम से .
शुभ दिन प्रसव का शुभ भविष्य फल के लिए भी उन्हें किसी ख़ास दिन के लिए C-section के चयन को उकसाता है .जबकि प्रसव कुछ असामान्य मामलों को छोडके एक कुदरती कार्य व्यापार है शरीर का .कबीले की औरतें बच्चा जनकर पीठ से बाँध चल पड़तीं हैं .
गुरुवार, 8 दिसंबर 2011
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10 टिप्पणियां:
आज की पीढ़ी को सच्चाई से उजागर करती एक महत्वपूर्ण जानकारी ...जो बहुत आवश्यक है !
आभार वीरू भाई !
राम-राम !
आज की पीढ़ी को सच्चाई से उजागर करती एक महत्वपूर्ण जानकारी ...जो बहुत आवश्यक है !
आभार वीरू भाई !
राम-राम !
सच कहा आपने, सुविधानुसार आप्रेशन कर देते हैं डॉक्टर।
"वजह यह अज्ञान कि सामान्य प्रसव के बाद योनी की पेशियाँ अपनी लोच खोकर शिथिल हो जाएँगी .हम प्रसव पीड़ा और दर्द की पींगें ,लहरें कैसे झेल पाएंगी ?लेबर तो घंटों चलने वाला कर्म है प्रक्रिया है .झटपट निपटो काम से बच्चा पैदा करो आराम से ."
यह हालात तो सचमुच खेदजनक हैं ......
आपने सही तथ्य प्रस्तुत किये हैं । सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों में सिजेरियन की वज़ह अलग अलग होती है । वैसे जहाँ tak हो sake नार्मल डिलीवरी ही सही रहती है ।
आपने सही तथ्य प्रस्तुत किये हैं । सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों में सिजेरियन की वज़ह अलग अलग होती है । वैसे जहाँ tak हो sake नार्मल डिलीवरी ही सही रहती है ।
आपने सही तथ्य प्रस्तुत किये हैं । सरकारी अस्पतालों और निजी अस्पतालों में सिजेरियन की वज़ह अलग अलग होती है । वैसे जहाँ tak हो sake नार्मल डिलीवरी ही सही रहती है ।
यह व्यापार हो गया है आजकल।
चिठ्ठा लोकप्रियता सूचकांक (ब्लॉग पाप्युलारिती इंडेक्स )वही जो अरविन्द बहाई समझें .प्रवीण जी ने सिर्फ यही कहा है गति सापेक्षिक होती है .आप ट्रेन में बैठे हैं ट्रेन आपके लिए आगे जा रही है पास वाले पेड़ पीछे छूट रहें हैं .दूर वाले पेड़ आपके साथ चलते प्रतीत होतें हैं .पेड़ यह भी कह सकतें हैं ट्रेन पीछे छूट रही है असल सवाल है सापेक्षिक स्थितियों का परिवर्तन .अब यदि दो ट्रेन एक ही दिशा में समान्तर ट्रेक्स पर एक ही लयताल से गति से आगे बढ़ रहीं हों सरल रेखा में और खिड़की में से दो यात्री एक दूसरे को अपनी अपनी ट्रेन से निहार रहें हों .दोनों साथ साथ ही रहेंगे .लेकिन विपरीत दिशा में देखने पर यह बोध नहीं होगा .जब आपकी ट्रेन खड़ी होती है और बराबर वाली चुपके से चल देती है आपको आभास होता है आपकी ट्रेन चल पड़ी है दूसरी और देखने पर यह एहसास समाप्त हो जाता है वहां कोई गति नहीं है सिर्फ प्लेटफोर्म की स्थिर दूकानें हैं .सो गति का फंदा सापेक्षिक है .प्रेक्षक निष्ठ है .परम गति या निरपेक्ष गति का कोई अर्थ नहीं है .
डॉ.मोटी रक़म ऐंठने के चक्कर में सिजेरियन ही recommend करते है.
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