एक मुंबई बच्चों की .
यहाँ स्कूल के बस्ते का औसत वजन ९किलोग्राम है .जबकि प्राथमिक शाला प्राइमरी के बच्चों के लिए यह ५ किलोग्राम से भी कम होना चाहिए .बस्ते के इस वजन का बच्चों की गर्दन धड तथा lower limb angles पर गलत असर पड़ सकता है .बच्चों का स्वाभाविक ठवन पोश्चर बदल सकता है बस्ता .
६२ फीसद बच्चों के पास यहाँ पर्सनल कंप्यूटर हैं .
७९%बच्चे मोबाइल का स्तेमाल करते हैं .
ज्यादातर माँ बाप इस बात से खुद अपने से ही खफा है वह अपने बच्चों के साथ उतना समय नहीं बिता पाते .५०%पेरेंट्स ही इस मामले में खुद से संतुष्ट हैं मानते हैं वह अपने बच्चों को पर्याप्त समय दे पा रहें हैं .
यहाँ ६-१७साला बच्चे सप्ताह में औसतन ३५ घंटे टी वी देखतें हैं .
८२%किशोर किशोरियां १४-१६ घंटे वीडियो गेम्स खेलतें हैं हर सप्ताह .इनमे से ७%'pathological 'gamers हैं ये हर हफ्ता २० घंटा वीडियो गेम्स खेल रहें हैं .
६३%बच्चे रोजाना कमसे कम घंटा भर 'on line'रहतें हैं .
इनमे से ४०%'ऑन लाइन अडल्ट स्टफ से वाकिफ हैं .यह किसी और शहर से ज्यादा है .
बेतहाशा 'cyber -bullying'भी ये बच्चे झेल रहें हैं .३३%का कमसे कम एक बार 'cyber bullying 'से पाला पड़ चुका है .
४०%बच्चे महीने में कमसे कम एक बार माल्स या फिर सुपर -बाज़ारों में जातें हैं .
मुंबई के ९५%बच्चे डिनर से पहले जंक जलपान करते हैं .इसमें वडा पाव,पीज़ा,बर्जर ,फ्रेंच फ्राईज़ ,समोसा या फिर नुडुल्स होतें हैं .
७८%माँ बाप ने कभी भी अपने यंग चिल्ड्रन (बाली उम्र के बच्चों )के साथ सेक्स पर चर्चा नहीं की है .
३६००-१२,००० रुपया हर महीने इन्हें पॉकिट मनी जेब खर्च मिलता है जिसे ये ट्रेंडी वस्त्र ,लुक्स ,गेजेट्स ,लाइफ स्टाइल प्रोडक्ट्स पर खर्च कर रहें हैं .
६०%बच्चे नै चाल और फेशन के कपडे पहनना एहममुद्दा मानतें हैं .
१७%बच्चे किसी न किसी किस्म का दवाब (स्ट्रेस )झेल रहें हैं .
२८%बच्चे प्रयाप्त नींद (आठ घंटा की नींद )नहीं ले पा रहें हैं .
निजी स्कूल कालिजों में पढने वाले ३०%बच्चे या तो तौल में ज्यादा हैं ओवर वेट हैं या फिर ओबेसी .
८८%लड़के तथा ८५ %लडकियाँ दिन भर में १५,००० और १२,००० कदम नहीं चल रहें हैं .माहिरों द्वारा सभी के लिए (आबाल्वृद्धों )के लिए दिन भर में १०,००० कदम चलना ज़रूरी बतलाया है सेहत के लिए .बच्चों के लिए तो यह और भी ज़रूरी है .
४%बच्चे दमा (एस्मा )तथा ६%सांस सम्बन्धी दूसरी समस्याओं से ग्रस्त हैं .
शिक्षा पर किए गए कुल खर्च में का १६%इन बच्चों की निजी कोचिंग /निजी ट्यूशनों पर हो रहा है .
खेलने के लिए लेदेकर १००० बच्चों को ०.०३ एकड़ खुली जगह मिल रही है जबकि आदर्श रूप में यह ४ एकड़ का हरा भरा मैदान होना चाहिए था .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
ram ram bhai
DEC24,2011
मुंबई की बाहों में पनपते बच्चे.
बच्चों की सेहत के लिए कैसी है मुंबई ?कैसी है मुंबई के बच्चों की सेहत? मुंबई की बाहों में पनपते बच्चे !कैसी है यह महानगरी बच्चों की सेहत के लिए ?हालाकि इस आशय के अध्ययन बहुत कम हुए हैं फिर भी निरंतर सिकुड़ते स्पेसऔर सीमित खुले आकाश तले खेलते पलते ये तमाम बच्चे अरक्षित क्या रोग प्रवण बने रहतें हैं यहाँ की गंधाती अपनी तात्विकता खोती हवा में तंग जगहों में सांस लेते बच्चे .यही राय एक मत से व्यक्त की है माहिरों ने .
यहाँ की हवा में सांस लेते बच्चों के लिए एस्मा(दमे ) के खतरे का वजन बढा हुआ रहता है . किस्म किस्म की प्रत्युर्जातमक प्रतिक्रियाओं ,एलार्जीज़ का जोखिम तमाम तरह के ऑटो -इम्यून -डिस -ऑर्डर्स का ख़तरा छाया रहता है .बालकों को लगने वाले रोग संक्रमणों के माहिर कोकिला बैन धीरुभाई अम्बानी अस्पताल के डॉ .तनु सिंघल कहतें हैं यहाँ की हवा में रचे बसे तमाम तरह के प्रदूषक तत्व तंग माहौल बढती हुई भीड़ बच्चों को रोगों के प्रति एक दम से अरक्षित एवं रोग प्रवण बना देती है .
श्वसन सम्बन्धी शिकायतों ,दमा ,मलेरिया ,वायरल फीवर (विषाणु जन्य बुखार )तथा उदर सम्बन्धी शिकायतें इन बच्चों को कभी भी घेर सकतीं हैं .मौसमी रोगों की मार के प्रति भी ये सबसे अरक्षित रहतें हैं .
वाडिया अस्पताल के एक बाल रोगों के माहिर के अनुसार इन रोगों की कुल हिस्सेदारी ४५% के पार चली जाती है जिनकी चपेट में मुंबई की बाहों में पलते बच्चे जब तब आते रहतें हैं .जितना तंग दायरा घर का है उतना ही यहाँ स्कूल के गलियारों का है .हर जगह ,जगह की तंगी .खुले मैदान कहाँ हैं मुंबई में ?
१००० बच्चों के लिए आदर्श रूप में चार एकड़ का खुला हरा भरा मैदान चाहिए और यहाँ उपलब्ध है मात्र ०.०३ एकड़ .यानी एक एकड़ को सौ भागों में तकसीम कर दो उसमे से कुल तीन भाग खुला हरा गलियारा चुन लो १००० नौनिहालों के लिए .
माहिरों के अनुसार अध्ययन इस बात का खुलासा करतें हैं इन हालातों में दमा जल्दी ही बच्चों को घेर सकता है .जो आगे चलके ५-१०%के लिए गंभीर रुख इख्तियार कर लेता है .माहिरों की माँ बाप को यही सलाह है बचावी उपाय के बतौर बच्चों की जीवन शैली में बदलाव लाया जाए .खान पान की स्वास्थ्य प्रद आदतें डाली जाएं .माँ -बाप खुद एक आदर्श मोडल बनें .
हालिया सुर्खी में आये रोगों की चपेट में जिनमे स्वाइन फ्ल्युसे लेकर HAND FOOT AND MOUTH DISEASE के अलावा किस्म किस्म की दवाओं ( बहु -दवाओं )से बेअसर बनी रहने वाली तपेदिक भी शरीक है मलेरिया और डेंगू भी अध्ययनों के अनुसार मुंबई के बच्चे ही ज्यादा आयें हैं .
जसलोक अस्पताल एवं शोध केंद्र में रोग संक्रमणों के माहिरडॉ .ॐ श्रीवास्तव बाली उम्र में बच्चों के इन रोगों की चपेट में निरंतर आते रहने को उनके विकास के लिए बेहद खराब मानते हैं .बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है इन रोग संक्रमणों का .
लेकिन पी डी हिंदुजा अस्पताल ,माहिम में बालरोगों के माहिर इस स्थिति के लिए सारा दोष पर्यावरण का नहीं मानते .आखिर क्यों बच्चे और किशोर किशोरियां पुष्टिकर तत्वों की कमी से लगातार ग्रस्त देखे जा रहें हैं ?रिकेट्स की चपेट में आरहें हैं ?
बच्चों को सूर्य स्नान नसीब ही नहीं होता है .धूप खाने को नहीं मिलती है .बच्चे एक और छोर पर वातानुकूलित घरों से बाहर निकलते हैं वातुकूलित कारों में सवार हो जातें हैं .वातुनुकूलित स्कूल कालिजों में पढतें हैं .इसीलिए ४-५ साल के बच्चे भी गंभीर रूप से विटामिन -डी की कमी की चपेट में आरहें हैं .अब से एक दशक पहले ऐसा कोई सोच भी नहीं सकता था .न ऐसा किसी ने देखा सुना था .
बालकों के मूत्र सम्बन्धी रोगों के माहिर डॉ .ए के सिंघल कहतें हैं एक छोर पर कसरत की कमी दूसरे पर पुष्टिकर भोजन की अनदेखी बच्चों में भी गुर्दे की पथरी को पनपा रहा है .जीवन शैली में बदलावों की फौरी ज़रुरत है .
ram ram bhai !ram ram bhai !
bhai
SUNDAY ,DEC24,2011,4C,ANURADHA,COLABA,MUMBAI-400-005
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा ,मगर ...
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा अट्रेक्तिव ,बोनी आपके शब्दों में .आप सोचतें हैं बस थोड़ा सा तौल कम करले अपनी स्लिम डाउन हो जाए लेकिन आपका ओवर वेट बच्चा पुष्टिकार तत्वों का अभाव झेल रहा हो सकता है .माइक्रोन्युत्रियेंट्स की कमी की वजह से उसकी केलोरीज़ खर्ची क्षमता दोषपूर्ण हो सकती है .ऐसे में चर्बी को ठिकाने लगाना नामुमकिन हो जाता है .
With a flawed metabolism burning of fat becomes impossible .
गोलू होना गोल मटोल होना प्लंप फेस होना पोषण की निशानी हो यह कतई ज़रूरी नहीं है .
ये हाल है मुंबई के बच्चों का :
भारत के नौनिहालों में ओबेसिटी घर बना रही है .मोटापे का यह रोग तेज़ी से फ़ैल रहा है .एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट के माहिरों द्वारा संपन्न तथा ब्रितानी विज्ञान पत्रिका ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार मुंबई के मदरसों में पढने वाले बच्चों में से १४%तौल में ज्यादा वजनी हैं या फिर ओबेसी हैं .
दोष पूर्ण खान पान और घर घुस्सू बने रहना बैठे ठाले रहना इसकी बड़ी वजह बन रहा है .
दोषपूर्ण खान पान रहनी सहनी जीवन शैली के चलते मुंबई के ६०%बच्चे आज एक दम से ज़रूरी पोषक तत्वों (माइक्रोन्युत्रियेंट्स )की कमीबेशी झेल रहें हैं .इसी बरस १९८ पोषण विज्ञान के माहिरों और खुराक विज्ञानियों ने १२०० रोगियों के आंकड़े जुटाए थे जिनमे नौनिहाल भी थे .पता चला इनमे से ८१%लौह तत्वों की कमी से ग्रस्त थे .१५%में विटामिन कमी बेशी तथा ३%में जिंक तत्व की कमी पाई गई .
माहिरों के अनुसार इस सबकी वजह जिंक ,मैंगनीज़ तथा कॉपर जैसे सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों की खुराक में कमी बन रही है .शरीर की हारमोन प्रणाली तथा पाचन तंत्र को ठीक ठीक तरीके से कायम रखने में इन माइक्रोन्युत्रियेंट्स का बड़ा हाथ रहता है .
विटामिन -डी ,विटामिन -बी १२ की कमी कैंसर समूह से लेकर अवसाद तक तमाम तरह के रोगों की वजह बनती है .कामकाजी महिलाओं को बराबर देखना चाहिए बच्चों के टिफिन में ये तत्व हैं या नहीं .
मुंबई में इसकी एक बड़ी वजह जंक फ़ूड बन रहा है .एक तरफ खुराक में मेक्रोन्युत्रियेंट्स वसा कार्बोहाइड्रेट्स ज्यादा से ज्यादा जगह बना रहें हैं साल्ट बढ़ रहा है दूसरी तरफ विटामिन और खनिज तथा खाद्य रेशे (सूक्ष्म पुष्टिकर तत्व )कमतर क्या नदारद ही हो रहें हैं .
Indian Dietician Association की डॉ शिल्पा जोशी के अनुसार मुंबई के बच्चों के साथ यही हो रहा है .
जानिएगा :
ताज़े फलों और तरकारियों में माइक्रोन्युत्रियेंट्स (विटामिन ,खनिज और रेशों )का डेरा रहता है .लेकिन क्योंकि इनकी भंडारण अवधि कम होती है इसलिए शहरी जलपान (अर्बन स्नैक्स )में ये जगह नहीं बना पा रहीं हैं .बच्चों के टिफिन में पैक्ड फूड्स जगह बना रहें हैं .कामकाजी महिलाएं इसकी तस्दीक कर रहीं हैं .मान समझ रहीं हैं यह सब वक्त की तंगी से हो रहा है .
माहिरों की सबसे बड़ी चिंता इस दौर में यही है शहरी बच्चे विटामिन बी -१२ और बी -३ से दूर जा रहें हैं .बालों का उम्र से पहले झड़ना सफ़ेद होना चमड़ी की बढती शिकायतों के पीछे तमाम तरह के दर्दों से रु -बा -रु होते रहने के पीछे कुलमिलाकर इन्हीं पुष्टिकर तत्वों की कमी का हाथ रहा है .
जानिएगा :
जंक फ़ूड लदा हुआ है साल्ट ,सुगर और ट्रांस -फेट्स (ट्रांस -फेटि -एसिड्स से कथित हाइड्रोजनीकृत वानस्पतिक तेलों से).डिनर से पहले मुंबई के बच्चे ये लेने से नहीं चूक रहें हैं .इसीलिए मधुमेह से लेकर दिल की बीमारियों से भी जल्दी ही घिर रहें हैं . सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी उन्हें अन्दर से कमज़ोर बना रही है .बाहर से थुल थुल .न इनकी हड्डियां मजबूत हैं न पेशियाँ .रोग रोधी तंत्र कमज़ोर पड़ रहा है और इसीलिए मौसमी बीमारियों की चपेट में आते जा रहें हैं .
माहिरों के अनुसार खाने की गोलियों से नहीं बचपन से ही खुराक की तबदीली के साथ ही यह कमी बेशी दूर होगी .
खूबसूरत हो सकता है आपका बच्चा ,मगर ...
सन्दर्भ -सामिग्री :मुंबई फॉर किड्स /टाइम्स सिटी /हेल्थ एंड न्यूट्रीशन /दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया मुंबई ,दिसंबर २२,२०११,पेज २ .
RAM RAM BHAI !RAM RAM BHAI !
सेहत के नुश्खे
सेहत के नुश्खे
HEALTH TIPS
The fibre in french beans decreases the colon's re -absorption of cholesterol binding bile acids ,lowering cholesterol.
देखिए और जानिये सूक्ष्म पोषक पुष्टिकर तत्वों खाद्य रेशों ,विटामिनों और खनिजों का कमाल जो फराश बीन्स की फलियों में मौजूद रहतें हैं .ये तत्व खासकर रेशे हमारी आँतों द्वारा पित्त अम्लों के पुनर -अवशोषण (दोबारा ज़ज्बी ) को कम करतें हैं .यह बाइल एसिड्सही कोलेस्ट्रोल (खून में घुली चर्बी )से बंधकर कोलेस्ट्रोल के मौजूदा स्तर को कम करते हैं .
Strawberries are high in phenolic flavonoid phyto -chemicals which fight against cancer,aging ,inflammation and neurological diseases.
पादप रसायन (फाइटोकेमिस्ट्री )हमें बतलाती है पादपों से प्राप्त फिनोलिक फ्लावानोल (फ्लाव्नोइड )जैसे पादप रसायन जो स्त्राब्रीज़ में भरपूर होतें हैं एक तरफ कैंसर से मुकाबला करतें हैं दूसरी तरफ बुढापे को मुल्तवी रखतें हैं ,तरह तरह के रोग संक्रमणों तथा स्नायुविक रोगों से हमारी हिफाज़त करतें हैं .एंटी -ओक्सिदेंटों के तहत आतें हैं ये पादप रसायन .
Aubergine has potassium ,phosphorus ,folic acid ,calcium as well as beta-carotene.
देखिए बेंगन जी का कमाल :aubergine (BrE),Eggplant ,brinjal कहो या थाली का बेंगन गहरे रंग की यह तरकारी है बड़ी गुणी(बहुगुणा ).है .पता नहीं लोग क्यों मजाकिया लहजे में इसे बे -गुण भी कह देते हैं ,नाक भौं चढ़ा लेते हैं इसके नाम से ,ताना भी दते हैं बेंगन लेले .
ध्यान रहे गुणों की खान बैगन micro -nutrient पुष्टिकर तत्व पोटाशियम ,फोस्फोरस ,फोलिक एसिड तथा केल्शियम के अलावा बीटाकेरोटिन का भी खज़ाना है .गहरे रंग के फल और तरकारियाँ सूक्ष्म पुष्टिकर तत्वों से भरपूर हैं माने विटामिन ,खनिज ,और रेशे प्रचुर मात्रा में मुहैया करवातें हैं .
Turkey contains selenium which is essential for the healthy functioning of the thyroid gland and the immune system.(Turkey is a large bird that is often kept for its meat ,eaten specially at Christmas in Britain and at thanksgiving in the US
जी हाँ पीरु या टकि पुष्टिकर तत्व सेलिनियम की खान है .थायरोइड ग्रंथि के सुचारू आदर्श रूप काम करते रहने के लिए यह रामबाण है .अलावा इसके यह हमारे रोग रोधी तंत्र को भी मजबूती प्रदान करता है .
शनिवार, 24 दिसंबर 2011
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5 टिप्पणियां:
kitna sara pad leten hain aap......baap reeeeeeeeeeeeee
आंकड़े बताते हैं कि बचपन गायब है।
जानकारीपूर्ण पोस्ट!
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com/
आंकड़े चौंकाने वाले हैं।
बच्चों की दुनिया में से स्वाभाविकता गायब हो गई है । बच्चे कृत्रिम जीवन जी रहे हैं।
आंकड़े बहुत चैंकाने वाले हैं।
जागो पालक जागो !
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