पिघल रहें हैं हिमालय .
(It's confirmed ,Himalayas are melting :Reports/Mumabi MIrror /Dec6,2011,P22)
साइंसदानों के मुताबिक़ हिमालय के हिम नद गत तीस सालों में ही पांचवा भाग सिकुड़ चुकें हैं इसे इस इलाके की जलवायु परिवर्तन के तौर पर देखा जा रहा है . काठमांडू आधारीय (स्थित मुख्यालय वाले )इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंतिग्रेतिद माउंतेन डिवलपमेंट ने इस आशय की तीन रपटें प्रकाशित की हैं .रिपोर्टों के अनुसार गत तीस सालों में जहां नेपाल के हिम नद २१%सिकुड़ गएँ हैं वहीँ भूटान के लिए हिमनदों का यह सिकुड़ना २२%दर्ज़ हुआ है .ये तीनों रिपोर्टें गत इतवार डरबन ,दक्षिण अफ्रीका में ज़ारी संयुक्त राष्ट्र जलवायु विमर्श के मौके पर प्रस्तुत की गईं हैं .हिमालय हिमनदों की हिम के पिघलने का इसे अब तक का सबसे व्यापक आकलन माना जा रहा है .
स्वीडन की आर्थिक सहायता से पोषित एक तीन साला रिसर्च प्रोजेक्ट को ICIMOD(International Centre for Integrated Mountain Development ) ने ही नेतृत्व प्रदान किया था .इस प्रोजेक्ट के तहत जिन दस हिमनदों का जायजा लिया गया पता चला वे सबके सब सिकुड़ रहें हैं .२००२-२००५ के दौरान हिम चादर के गायब होने की दर बढ़ी हुई देखी गई त्वरित देखी गई .
गत दशक में संपन्न एक और अध्ययन में भी इस क्षेत्र के हिमनदों को खासा छीजते देखा गया है .हिमाच्छादन में काबिलेगौर कमी दर्ज़ की गई है .गौर तलब है यह तमाम इलाका १.३ अरब लोगों का पोषण करता है उन्हें खाद्य और ऊर्जा मुहैया करवाता है .जलवायु बदलाव के गंभीर सबब होंगें इस विपुल आबादी के लिए .
हिमालय अभियान पर जाने वाले पर्बतारोही पर्यावरण के पहरुवे हिमालय क्षेत्र को इसी लिए तीसरा ध्रुव (Third Pole ) कहतें हैं .उत्तरी और दक्षिणी धुर्वों के बाद समुन्दरों के जल के बढ़ते स्तर के लिए इन हिमनदों (Glaciers)के पिघलाव को उत्तरदाई ठहरातें हैं .ग्लेशियरों के इस पिघलाव के फलस्वरूप विशालकाय झीलें पैदा हो रहीं हैं जिनमे फटन पैदा हो सकती है इससे घाटी में बसे पर्बतीय समुदायों के लिए जानमाल का गंभीर ख़तरा कभीभी पैदा हो सकता है .
साइंसदानों की चेतावनी के अनुसार कुछ ही दशकों में इन हिमनदों का नामोनिशान भी मिट सकता है तब एशिया का एक बड़ा इलाका सूखे की चपेट में भी आ सकता है .
मंगलवार, 6 दिसंबर 2011
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12 टिप्पणियां:
फिल्म २०१२ देखकर प्रकृति के विनाश का सही और डरावना दर्शन होता है ।
एक दिन महाप्रलय आना निश्चित ही लगता है ।
गौमुख बीते दस साल में एक किमी से भी ज्यादा पीछॆ जा चुका है।
पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिये।
प्रकृति की सत्ता स्वीकारना चाहिए ....
इस विनाश को मनुष्य स्वयं ही बुला रहा है ...
प्रकृति विनाश
प्रकृति विनाश
मनुष्य इस सब के लिए खुद ही जिम्मेदार है ...
हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। भोगना भी हमें तो पड़ेगा ही।
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क्यों इतना डरा रहे हैं वीरू भाई जी ?
इंसान में जितनी हैवानियत बढ़ी है ये उसके ही तो परिणाम हैं …
गंभीर विषय लिया है आपने … वाकई प्राकृतिक बदलाव भयावह हैं …
हम तो बस ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं - सर्वे भवंतु सुखिना …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
यह भी मानवीय भूलों का ही परिणाम है.... विचारणीय पोस्ट .
behtreen post.........
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