यादाश्त को मुल्तवी रखने वाला टीका अल्ज़ाइमर्स के खिलाफ भी कारगर हो सकता है .
यादाश्त को मुल्तवी रखने वाला टीका अल्ज़ाइमर्स के खिलाफ भी कारगर हो सकता है .
(jab to delay memory loss can help beat Alzheimer's/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,P17/Dec5 ,2011).
साइंसदान इन दिनों ब्रितानी मरीजों पर जो मामूली याददाश्त क्षय से ग्रस्त हैं एक ऐसे टीके की आज़माइश कर रहें हैं जो अल्ज़ाइमर्स रोग के शुरूआती लक्षणों को पस्त कर सकती है .और शुरूआती लक्षण है माइल्ड कोगनिटिव इम्पेयार्मेंट याददाश्त क्षय की हलकी फुलकी शुरुआत .
इस रिसर्च में शामिल है अल्ज़ाइमर्स के माहिर डॉ .रिचर्ड पेर्री एवं उनके साथी .पहले टीके की आज़माइश ५० औरतों और मर्दों पर की गई है .ये सभी माइल्ड मेमोरी लोस से ग्रस्त हैं .इन सभी को इस दवा के टीके महीने में एक बार दिए जायेंगे .समझा जाता है आइन्दा पांच सालों में ही ये टीके आम तौर पर दिए जा सकेंगे .चलन में आजाएंगे यादाश्त क्षय के खिलाफ एक अश्त्र के रूप में .
डिमेंशिया के प्रगटीकरण के बाद जब रोग मरीज़ को काबू कर लेता है अनेक दवाएं दी जातीं हैं .जबकि यह दवा जिसे gantenerumab कहा जा रहा है इस प्रकार डिजाइन की गई कि तब अधिक से अधिक कारगर रहे जब केवल लक्षण के बतौर हलका फुल्का याददाश्त क्षय ही अभी प्रगट हुआ हो .डेली मेल ने इस खबर को प्रकाशित किया है .
बेशक दवा पुख्ता इलाज़ नहीं है लेकिन डिमेंशिया के बढ़ने की रफ़्तार को कम करके लोगों को देर तक सामान्य जीवन जीने के लिए मुस्तैद करेगीजिअवं की गुणवत्ता को बनाए रहेगी .ये लोग अपने काम पर जा सकेंगे और इनकी खुद की देखभाल की नौबत इंशा अल्लाह देर से ही आयेगी .
बेशक गारंटी तो इस चिकित्सा तंत्र में कोई है नहीं अल्ज़ाइमर्स के खिलाफ बहर सूरत यह दवा रोग के शुरूआती चरण में असर रखने का दावा करती प्रतीत होती है .यह क्या कम है .
केफेटेरिया का रूख न करें भावी माताएं तो बेहतर ....
केफेटेरिया का रूख न करें भावी माताएं तो बेहतर ....
(Would -be moms ,say no to coffee at cafes/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,DEC2,2011/P17).
रिसर्चरों ने चेताया है भावी माताओं को उनका लोकलुभाऊ कोफी और कहवा घरों कोफी डेज़ और केफेतेरियाज़ में जाकर कोफी पीना उनके अनजाने ही उनके अजन्मे गर्भस्थ शिशु को संकट में डाल सकता है .ब्रिटेन के कमसे कम बीस अलग अलग कोफी शोप्स से एस्प्रेसो कोफी के विश्लेषण के बाद रिसर्चरों ने पता लगाया है इनके एक कप में केफीन की मात्रा अलग अलग रहती है .
किसी किसी शॉप के एक कप में मौजूद केफीन की मात्रा गर्भवती महिलाओं के लिए दिन भर के लिए निर्धारित मात्रा से भी ५०%ज्यादा रहती है .डेली मेल ने इसे सुर्ख़ियों में छापा है .
इसमें चिंता की बात यह है कि ज़रुरत से ज्यादा केफीन एक तरफ बच्चे के गर्भ च्युत होकर मिस्केरिज की वजह बन सकती है दूसरी तरफ गर्भस्थ के जन्म के समय तौल में कम रह जाने की भी . इसी वजह से गर्भवती महिलाओं को दिन भर में २०० मिलीग्राम केफीन का अतिक्रमण न करने(सेवन न करने की ) की सलाह दी जाती है .जिसका मतलब दूसरे अर्थों में स्ट्रोंग कोफी के चार प्याले होतें हैं जिनमे औसतन ५० मिलीग्राम केफीन रहता है .
लेकिन इसके अनुरूप केवल एक शॉप की कोफी के एक प्याले की केफीन की मात्रा को पाया गया है .शेष सभी में इस मात्रा का धड़ल्ले से अतिक्रमण हुआ है .
चार दूकानें ऐसी भी मिली हैं जिनके एक कप में ही केफीन की २०० मिलीग्राम से भी ज्यादा मात्रा मिली है .सबसे ज्यादा मात्रा प्रति कप ३०० मिलीग्राम से भी ज्यादा पाई गई है .ज़ाहिर है एक कप में मौजूद केफीन की मात्रा में निर्धारित से छ :गुना ज्यादा मात्रा रहने तक का अंतर देखा गया है .
जहां ५० मिलीग्राम प्रति कप वाली कोफी के प्रति दिन चार प्याले निस्संकोच गर्भवती महिला द्वारा लिए जा सकतें हैं ,वहीँ २००-३०० मिलीग्राम से भी ज्यादा केफीन युक्त कोफी का एक प्याला भी निरापद नहीं कहा जा सकता है .
अध्ययन के मुखिया रहे डॉ .अलान क्रोज़िएर ऐसे ही विचार व्यक्त करतें हैं . ज़ाहिर है अपने अनजाने में ही गर्भवती महिला से खता हो सकती है अपने ही गर्भस्थ के प्रति ज्यादती हो सकती है .
आइए देखें कैसे पहुँचती है केफीन पुरइन (Placenta )के पार गर्भस्थ तक :
पुरइन के पार आसानी से चली जाती है केफीन और एक बार वहां पहुँचने के बाद शरीर में इसकी मात्रा के पहले ही दाखिल हो चुकी मात्रा की तुलना में आधा रह जाने में कमसे कम पांच घंटे लगतें हैं .लेकिन आबादी के कुछ समूहों में जिनमें नौनिहाल भी शरीक हैं गर्भवती महिलाएं भी शरीर में पहुँचने के बाद इसे आधा रह जाने में तीस घंटे तक भी लग जातें हैं .
ऐसे में अजन्मे शिशु के कोमल यकृत(Liver) को नाहक ही केफीन की इस अवांछित मात्रा से जूझना पड़ेगा .इसके दीर्घावधि दुष्परिणाम सामने आ सकतें हैं .
RAM RAM BHAI !
डिमेंशिया (अल्ज़ाइमर्स भी इसकी एक आमफ़हम किस्म है )से बचाव के लिए पहेली बुझोवल .
रोज़ एक मगज पच्ची में उलझे रहिये दिमाग पे जोर देकर पहेलियों के हल ढूंढिए दिमाग भी धारदार रहेगा डिमेंशिया से बचाव भी होता रहेगा .सुडोकू हल कीजिए रोज़ -बा -रोज़ .अध्ययनों से पता चला है गहन चिंतन मनन के बाद कमसे कम दो घंटा मगज पच्ची के बाद पहेली सुलझाना बड़े काम की चीज़ है .शरीर और मन को इस तरह व्यस्त रखना डिमेंशिया से बचाए रह सकता है .कहतें हैं बुढापे में कितने ही लोग सठिया जातें हैं यह सठियाना नहीं है याददाश्त क्षय है एक प्रकार का डिमेंशिया ही है जिसे अल्ज़ाइमर्स कहतें हैं .बौद्धिक कसरत करते रहना इससे बचाव का कारगर उपाय सिद्ध हो सकता है .कुछ न कुछ नया सीखते रहो .
अलावा इसके बागबानी खाना बनाने का शौक ,गाना बजाना भी उन लोगों के दिमाग की सेहत को और गिरने से रोकेगा जिनमे डिमेंशिया की शुरुआत हो चुकी है .इसके बढ़ने को रोके रहेगा .शतरंज भी अच्छा है खेलना खेलते रहना नै नै चालें ईजाद करना
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9 टिप्पणियां:
शंखपुष्पी खाने को कहते हैं बुजुर्ग।
सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
बहुत अच्छी जानकारी!!!!!!!!!!!!!
अच्छी जानकारी दी आपने।
आजमाता हूं।
उपयोगी
डूबते को तिनके का ही सहारा होता है ।
एक किरण तो नज़र आई ।
बेहद उपयोगी लेख ....
इससे बहुतों को फायदा होगा !
आभार आपका !
जानकारी से भरपूर उम्दा लेख!
अच्छी जानकारी ...जरूरत पे आजमानी पड़ेगी ...
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