रविवार, 4 अक्टूबर 2015

कालिया काम का प्रतीक है। कृष्ण काम का दमन करते हैं। वासना का विस्तार अनंत है ,कृष्ण वासनाओं को नष्ट करते हैं कालिया की

सत्संग के झरोखे से प्रेम फुलझड़ियाँ :

हरी नाम है हीरा ,

बामे जंग लगे न कीड़ा। 

सनातन गो स्वामी जी के जीवन से एक प्रसंग :

एक बार की बात है सनातन गोस्वामी जी की कुटिया पर एक गरीब ब्राह्मण आया। कहने लगा महाराज घर में बीबी बच्चे हैं खाने कु कुछ भी नहीं है कई दिनों से कुछ भी नहीं खाया है। आपकी कृपा हो जाए मुझ अकिंचन पर। महाराज बोले मेरी कुटिया के पिछवाड़े में एक पारसमणि पड़ी है वह तुम ले लो। मेरे तो किसी काम की है नहीं अलबत्ता मैं इस पर लघुशंका करने जाता हूँ। तुम ले जाओ तुम्हारे काम आएगी। ब्राह्मण खुश होकर कुटिया के पीछे गया जल से धोकर कुछ मन्त्रों का जाप करके पारसमणि को शुद्ध किया। हाथ में एक ताम्बे का तसला था। उससे पारसमणि का स्पर्श करवाया देखा वह तसला सोने का हो गया। ब्राह्मण सोचता हुआ आगे बढ़ा कि चलते चलते सोचने लगा जब लघुशंका के लिए वह इस कीमती मणि का इस्तेमाल करता है तो उसकी तिज़ोरी में तो क्या न होगा। 

वह उलटे पैर दौड़ा। कुटिया में पहुँच कर बोला महाराज आपके पास सबसे कीमती क्या है बस  दिखाए दो एक बार भले देना नहीं। गोस्वामी बोले ब्राह्मण मैं दिखा तो दूँ पर वह चीज़ तेरे किसी काम की नहीं है तू उसे नहीं लेगा। ब्राह्मण बोला महाराज जो हो एक मर्तबा दिखला भर दो। फिर देखा जाएगा। 

सनातन गोस्वामी बोले -मेरे पास भगवन नाम प्रेम रुपी मणि है इससे ज्यादा कीमती मेरे पास और कोई चीज़ नहीं है बोलो -

हरे कृष्णा हरे कृष्णा ,कृष्णा कृष्णा हरे हरे ,हरे रामा , हरे रामा ,रामा रामा हरे हरे 

एहि कलिकाल न साधन दूजा ,

जोग  जज्ञ जप  ,तप ,व्रत पूजा। 

सीधी  बात है -कोई ताम तमूरा नहीं। 

राम ही सुमरिये ,राम ही गाइये ,राम ही जपिए।

कालिया दमन लीला :

कालिया काम का प्रतीक है। कृष्ण काम का दमन करते हैं। वासना का विस्तार अनंत है ,कृष्ण वासनाओं को नष्ट करते हैं कालिया की। धर्म सम्मत काम तो एक पुरुषार्थ है।

चीर हरण लीला :

कृष्ण गोपियों के पुराने वस्त्र लेकर नए वस्त्र प्रदान करते हैं। पुराने वस्त्र वासना हैं नए उपासना। चीर हरण लीला अविद्या निवारण लीला है।

ब्रह्मज्ञ श्रीशुकदेव राजा परीक्षित से कहतें हैं -खट्वांग को एक पल में  ही ज्ञान प्राप्त हो गया था। तुम्हारे पास तो पूरे सात दिन हैं ,सात दिन तक तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी इतना तो निश्चय है जबकि जीव की मृत्यु तो किसी भी क्षण आ जाती है। एक पल में मुक्ति हो जाती है ज्ञान प्राप्ति के बाद। गजेन्द्र मोक्ष की कथा में गजेन्द्र नाम का हाथी जीव का प्रतीक है और वह सरोवर जिसमें अपनी प्यास बुझाने के लिए वह उतरता  ये संसार  है। ग्राह (मगरमच्छ )ही मृत्यु है जो पैदा होते ही जीव का पाँव पकड़  लेती है  । हरि नाम ही उस पाँव को छुड़ाता है । ये जीव भी उस हाथी की तरह परिवार प्रेमी है। माया  के कुनबे को  अपना समझने की  निरंतर भूल कर रहा है. इसलिए पुनरपि  जनमं पुनरपि मरणम् ....  

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