शनिवार, 24 अक्टूबर 2015

अहिल्या होने का मतलब

अहिल्या होने का मतलब 

एक ऐसा आश्रम राम को दिखाई दिया जहां कोई सिसक रहा है। कौन है जो सिसकियाँ ले रहा है कौन है जो बार बार रुदन कर रहा है। कौन है जो मुझे याद आ रहा है मुझे बुला रहा है। क्या पिता दशरथ मुझे याद कर रहें या माता कौशल्या। नहीं ऐसा हो नहीं सकता है। कौन है जो सिसकियाँ ले रहा है। वन में गुरुविश्वामित्र बहुत आगे निकल गए थे राम ठिठक कर खड़े हो गए। सिला के नज़दीक पहुंचे ,वह सिला ही सिसक रही है। आसपास सरोवर सूखा है पेड़ तो हैं आसपास ,पर पल्लव नहीं हैं ,लता वल्लरियाँ नहीं हैं। पशु पक्षी नहीं हैं ,बस सब कुछ सुनसान उजाड़ ,बस रोती  हुई सी एक सिला।वन तो जीवित होता है। ये कैसा वन है। राम ठिठक गए अचानक ठहर गए। चलते समय पिता ने कहा था देख राम मैं तुझे भेज तो रहा हूँ पर गुरु की छाया से कभी दूर न हो जाना। गुरु हर पल सिखाते हैं। वे जब बोलते नहीं हैं तब भी अपने  आचरण से  सिखाते हैं ,सिर्फ बोलकर ही नहीं सिखाते ,अपनी चेष्टाओं से अपने बहुत अद्भुत विचारों से भी सिखाते हैं ।उनके आसपास कब क्या विचार पैदा हो जाए वह क्या सिखा दें, इसलिए उनकी छाया से भी कभी अलग मत होना। वह गुरूजी की छाया को कभी नहीं छोड़ते  थे। लेकिन आज गुरु देव आगे निकल गए थे।   

राम ने गुरुदेव  के पास आकर पूछा ये सिला कौन है ,ये कौन पत्थर है जो मुझसे चीख चीख के कुछ कह रहा है। उस आश्रम के आँगन में एक बड़ा सा पत्थर एक बड़ी सी चट्टान एक सिला पड़ी थी वह सिला जैसे रो रही है। उस सिला में ही जैसे कुछ  गीलापन है। 
आश्रम दीख एक मग  माहिं  ,जीव जंतु खग मृग कछु नाहिं -
आश्रम देख एक रस्ते में -यहां पूरे आश्रम में घास तो है पर जली हुई सी। राम बहुत पीछे रह गए थे लौटकर आये गुरुदेव। राम ने चट्टान के पास आकर पूछा ये सिला कौन है ये कौन पत्थर है। गुरुदेव को अचानक ध्यान आया ये तो अहिल्या है। ये गौतम नारी है। पूरा इतिहास सुनाने लगे क़ि गौतम के आश्रम में कैसे यज्ञ आदि होते थे और जब गौतम आहुति देते थे तो देवता खुद लेने आते थे कहते थे हमारे हाथ पे ही हमारा हिस्सा रख दो इतना बल था उनके तप में।

जिसके पास ये तीन चीज़ें हैं :चिंतन की शुद्धता ,चरित्र की उच्चता  और व्यवहार की पारदर्शिता। उसके पास सारा सौंदर्य आ जाता है। ये तीन चीज़ें बहुत बड़ी हैं। अनिंद्य सुंदरी थीं अहिल्या। इंद्र देखकर चकित हो गए। ठगे से रह गए इंद्र और वह उसी रात चन्द्र की मदद से उस  आश्रम में पहुंचे जहां अहिल्या अपने पति के साथ भूमिशयन कर रहीं थीं। चन्द्र ने आधी रात को मुर्गा बनकर बांग दी इंद्र के आदेश पर। अचानक गौतम उठे -आधी रात कब हो गई ?भोर हो गई मेरा संयम कहाँ गया क्या मैंने गलत भोजन कर लिया?। ध्यान रहे -हम वही होते हैं जो हमारी थाली में होता है। अब ये  मुर्गा मुझे जगायेगा।मेरा तप बल संयम सब कहाँ गया ?बस गौतम ऋषि अचानक उठे और कमण्डलु लेकर गंगा की तरफ दौड़े। लेकिन गंगा बड़ी उपेक्षणीय लगी गंगा जैसे कह रही हो यहां से भाग। गंगा का जल उन्हें उदास लगा गौतम ने आकाश की तरफ देखा। आकाश में तारे निकल रहें हैं।ये तो आधी रात है।  चन्द्रमा कहाँ हैं आज तो पूर्णिमा है। बस गौतम ऋषि समझ गए मेरी कुटिया में कोई छल हो रहा है। दौड़े कुटीर की ओर। 
इंद्र इसी ताक में था। 
अहिल्या ने एक साथ दो गौतम देखे एक वह जो उनके आँचल को उघाड़ रहा है उनके अंगों का स्पर्श कर रहा है। एक वह जो द्वार से अभी अभी अंदर घुसा है। अहिल्या मुस्कुराईं। प्रणाम करके कहना चाहतीं है मेरा कोई दोष नहीं हैं।उधर गौतमवेशधारी  इंद्र उनका आँचल अभी उघाड़ ही रहा था। अहिल्या चौंकी ये द्वार पर कौन हैं मेरा पति तो गंगा नहाने गया  थे। लौटकर इतना शीघ्र आने वाला फिर यह कौन है।  

लेकिन उनकी मुस्कुराहट देख कर गौतम ऋषि क्रोध में आ गए।अहिल्या कहतीं ही  रह गईं। आप क्रोध में हैं इससे आपका तप क्षीण हो जाएगा। आप ऐसा न करें मेरा कोई कुसूर नहीं है। आप बहुत अपछ्तायेंगे बाद में।  जब किसी को क्रोध आये तो उसे उत्तेजित मत करो। क्रोध विजातीय वस्तु है क्रोध बाहर से आता है। आपका स्वभाव नहीं है क्रोध। विवेक छीन  लेता है आपसे आपका क्रोध। आप बिखर जाते हैं छिन्नभिन्न ,विच्छिन्न हो जाते हैं।बहुत देर हो चुकी होती है जब क्रोध उत्तर जाता  है और आप को अपना आपा याद आता है ।  

जब कोई आपसे नहीं बोलता तब आप चट्टान जैसे हो जाते हो। जब आप बिलकुल अकेले पड़  जाते हैं तब पत्थर जैसे हो जाते हैं जब अपनी सी कहने वाला कोई न हो आपके पास कोई  संवेदना व्यक्त करने वाला न हो तब आप सिला ही तो हो जाते हैं ।पर गौतम तो क्रोध में आकर शाप दे चुके थे। "जा तू शीला बन जा। सिसक सर्दी में तप झुलस भीषण गर्मी में भीग वर्षा में निर्जन वन में। जहां न कोई खग हो न मृग। 
गौतमी बोली अब मेरे उद्धार का उपाय तो बता दो ऋषिवर । मैं कैसे इस शाप से मुक्त  होवूँगी। इतना तो उपकार कर दो मुझ पर।

जब कोई हमारे बहुत निकट का व्यक्ति हो तो समझ जाए क्रोध भी ज्यादा ही करेगा। तब आप सारा स्ट्रेस निकाकर शांत  हो जाइए।आप उसे प्रोवोक (भड़काइये मत )मत कीजिये  

गौतम ने कहा  ये ठीक है तू निर्दोष है पर तुझे पर -पुरुष का स्पर्श पता क्यों नहीं चला जबकि उसमें न कोई शील होता है न संकोच।अहिल्या बार बार प्रणाम कर रहीं है दोहरा रहीं हैं मेरा कोई कसूर नहीं हैं लेकिन तब तक गौतम ऋषि जल छिड़क चुके थे। शाप दे दिया। इंद्र को भी कहा अब तू स्वर्ग का राजा नहीं रहेगा।इसी पल से तेरा इन्द्रत्व चला गया।  भागा चन्द्र , भागकर शिव के आश्रम में पहुंचा-बोला प्रभु मेरी रक्षा करो गौतम ऋषि मुझे छोड़ेंगे नहीं । ऋषि ने उसे छोड़ ज़रूर दिया लेकिन आज भी चाँद में दाग दिखाई देता है वह दे -दाग नहीं है.  

वरदान दिया ऋषि गौतम ने -इसी रास्ते से यहां राम आएंगे तुझे छूएँगे मेरे तप का सारा लाभ तुझे मिलेगा और तेरा उद्धार हो जाएगा। जब सारी दुनिया आपसे अलग हो जाए तब भी राम आपसे अलग नहीं हो सकता। ईश्वर जीव से कभी अलग हो ही नहीं सकता हम ही अलग हो जाते हैं।अपना स्वभाव भूलकर जीते रहते हैं। 

राम ने विश्वामित्र के कहने पर अपना पाँव धीरे से उठाया उसमें से रज कण टपके चट्टान पर पड़े और अहिल्या प्रकट हो गईं और अश्रुपूरित नेत्र लिए भगवान के पैर पकड़ लिए कहते हुए -मैंने आज तक किसी पर -पुरुष का स्पर्श नहीं किया लेकिन आज मैं आपके पाँव नहीं छोडूंगी। 
राम ने अहिल्या को अपना धाम दे दिया -कहा मन तो लौकिक पदार्थों का आकांक्षी  है मैंने तुझे अपना धाम दे दिया ।तू विष्णु रूप हो वैकुण्ठ में रह। 

वैकुण्ठ जानते हैं किसे कहते हैं -जहां कोई कुंठा न हो। 

 उसने कहा मैं मनवांछा फल चाहतीं हूँ आपका दिया हुआ वरदान मुझे नहीं चाहिए। मैंने सुना है भगवान मनवांछा फल देता हैं ,मनोकामना पूर्ण करते हैं। 

मैं स्त्री हूँ मेरे पति अशांत होंगे। मुझे देखकर ही शांत होंगें -बस वे मुझ पर प्रसन्न हो जाएं मैं इतना ही चाहतीं हूँ।  मुझे उसी लोक में भेज दीजिये जहां मेरे पति हैं। 

धन्य है भारत की नारी। भगवान बोले उसने तो तेरा अपमान किया तुझे शाप दिया तू उसी के पास जाना चाहती है। उस पति के लिए ही वर मांग रही है जिसने तुझे कष्ट दिया प्रताड़ित किया ,अपमान किया तेरा। शाप दिया तुझे । 

शुक्ल प्रतिपदा का द्वितीया का ,तृतीया (तीज ),चौथ ,नागपंचमी का व्रत  करती है दूज का व्रत करती है यम दुतिया का व्रत करती है ,चौदस- रूप चौदस का व्रत  करती है यही नारी ।षष्टि का व्रत रखके ये गंगा में खड़ी हो जाती है।अष्टमी का व्रत करती है ,रामनौवमी का व्रत करती है ,दशहरा का व्रत करती है।   
अमावस से पूर्णिमा तक सारे व्रत करती है भारत की नारी। लेकिन जब ये अपने पर आती है तो कमण्डलु का जल छिड़क कर ब्रह्मा विष्णु महेश को भी  बच्चा बना देती है ये अनसुइया बनकर । सावित्री बनकर अपने वाक्चातुर्य से यम से अपने पति के प्राण छुड़ा लेती है। जो काल का कोर बन गया है उसे वापस ले आती है। ये काली और तारा  बनके महिषासुर का वध करती है।पार्वती बनकर ये क्या नहीं करती।  

जयश्रीकृष्णा !


श्री राम चरण के सुखद स्पर्श से... (Ramayana)

  • 7 years ago
  • 44,634 views
Original edit (as telecast in DD days) from the epic Indian television series: Ramayana (the DVD contains a variation edit.)...



  
  

2 टिप्‍पणियां:

Anita ने कहा…

सुंदर कथा प्रसंग..

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut sundar prasng padhkar dil prasnn ho gaya .