शनिवार, 17 अक्टूबर 2015

वो आये बहारों में ,दीद हो गई , कोई माने या न माने ,अपनी तो ईद हो गई


कृष्ण रास छोड़कर क्यों अलक्षित अदृश्य हो गए थे ?

कहतें हैं जब भोले भंडारी भी नारी का वेश धरके चुपके चुपके रास लीला देखने चले आये ,इंद्र समेत सभी देवता ब्रज वासियों को प्रणाम करने लगे तब ब्रज वासियों ने इसे  बड़ों की  छोटों के प्रति विनम्रता ,छोटो को आदर देना नहीं माना। वे गुमान से भर गए। बस यकायक कृष्ण अलक्षित हो गए। इनका मानमर्दन करने के लिए कृष्ण गायब हो गए क्योंकि वह तो सदैव ही भक्तों के हितकारी हैं। फिर ब्रज मंडल पर तो ब्रज क्षेत्र पर तो उनकी विशेष कृपा भी रही है।  ब्रजवासी कृष्ण को भी एक साधारण ग्वाला मानने  समझने लगे। कोई कहता मेरे पाँव में दर्द है कृष्ण पाँव दबा देते।कोई कहता मेरा टकड़ा उठवा दो। कोई कहता गोबर पाथ दो। कंडे (उपले )बनवा दो। कोई गोपी कहती माखन दूंगी ग्लास भरके छाछ दूंगी बस एक ठुमका तो लगा दो। नांच के दिखा दो। 

आपने देखा होगा कभी कभार हमारा मन भी किसी काम में नहीं लगता। हम एक दम से श्रीहत हो जाते हैं निरानंद। उदास और खिन्न। ऐसा तब होता है जब हमें अपने रूप पर ,सम्पत्ति पर ज्ञान पर ,शोहरत पर गुमान हो जाता है। हम अहंकार से भर जाते हैं।

अंग्रेजी वर्णमाला का नौवां लेटर (स्वर )है आई (I).इसका अर्थ ही अहंकार है। "मैं " है। देखने में बड़ा सीधा लगता है खम्भे सा। लेकिन सीधा है नहीं हरयाणवी लठ्ठ सा है तना हुआ। झुकने को ज़रा भी तैयार नहीं। ये ही लेटर आई अगर लेट जाए (झुक जाए )तो एक सेतु बन जाए। आप उधर से इधर आजाये इस ब्रिज पर चल कर ,हम इधर से उधर चले जाएँ । हम और आप एक दूसरे से कनेक्ट हो जाएं।

जब हमारा संतों से संपर्क टूट जाता है हम ईश्वर की ओर पीठ कर लेते हैं हमारे अंदर अज्ञान बहुत बढ़ जाता है तब अंदर से प्रेम मर जाता है। बाहर की पद प्रतिष्ठा भले रह जाए। परस्पर सम्बंधों की आंच और आकर्षण समाप्त हो जाता है।

बुल्ले शाह का प्रसंग याद आ गया। एक बार उनके गुरु उनके यहां पधारे ,बुल्ले शाह ने बस उन्हें प्रणाम कहा और दौड़ पड़े गाँव की ऒर गुरु ने पूछा कहाँ चले। बुल्ले शाह बोले लोगन को बता तो दूँ आनंद हो गयो। आनंद आ गयो हमारे घर।

मन उनका उल्लास से भर गया। बांट लेना चाहते हैं वह इस उल्लसित मन की तरंग को सबके साथ।

वो आये बहारों में ,दीद हो गई ,

कोई माने या न माने ,अपनी तो ईद हो गई।

महाराष्ट्र में कहा जाता है :

साधू संत ऐते धरा,तोचि दिवाली दशहरा।

यानी जिस दिन साधू संत किसी के घर आ गए उसी दिन उसकी ईद हो गई ,दशहरा और दिवाली हो गई  .

दो तरह के लोग बताये गए हैं इस धरती पर :

मिलत एक दारुण दुःख देहहिं ,

बिछुडत एक प्राण हर लेहहिं।

पहले प्रकार के वो लोग हैं जिनमें अहंकार बहुत बढ़ गया है। वह कलहकार बन जाते पेशे से कलाकार होते हुए भी। घर बाहर सब जगह दोनों प्रकार के लोग आपको मिल जाएंगे।

जब अपनी गलती पता चल जाए प्रायश्चित कर लेना चाहिए। गलती न दोहराने का संकल्प लेना चाहिए। पश्चाताप तो घटना के बाद उसका ताप झेलते रहना भर है उससे कुछ नहीं होगा।

ब्रजवासियों को जब अपनी गलती का भान हुआ उन्होंने प्रायश्चित किया। और फिर कृष्ण लौट आये। रासलीला कभी थमती नहीं है। आज भी हो रही है नित्य लीला ब्रज में। संत का हृदय रखो तो दिखाई देगी।






Baba Kitne nirahankaari Bachhon Ko Namaste Karte Hain

  • 4 years ago
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Baba Kitne nirahankaari Bachhon Ko Namaste Karte Hain.

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