बेशक अमरीकी दवा संस्था ऍफ़ डी ए के सलाहकारों ने अभी कुछ और अध्ययन कर लिए जाने की सलाह दीहै ताकि फ़ूड डाईज-ए डी एच डी लिंक की बेहतर पड़ताल हो सके .लेकिन चर्चा इस विषय पर ज़ारी है .उन पेरेंट्स ने भी अपने उदगार ज़ाहिर कियें हैं जिनके बच्चे इनसे असरग्रस्त हो चुकें हैं ।
डॉ .मौरीन लम्म जो तीन बच्चों की माँ हैं बा -कायदा एक वेब साईट (डब्लू डब्लू डब्लू .एम् ओ एम् एस ए बी सी एस .कोम )पर उपभोक्ताओं को इन डाईज के संभावित नुक्सानात के बारे में आगाह कर रहीं हैं ।
डॉ .जिम स्टीवेंसन (साउथ -एम्प्तन विश्व -विद्यालय )कहतें हैं हमें अपने अध्ययन में पता चला ,सोडियम बेन्जो -एट की खाद्य संरक्षीके रूप में कुछ कृत्रिम रंगों के साथ खुराक में उपस्थिति ने तीन तथा ८-९ साला बच्चों में औसत स्तर हाई -पर -एक्टिविटी का बढा दिया है ।
२००७ में साउथ -एम्प्तन विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया ,कृत्रिम रंजकों (आर्टिफीशियल डाईज )के साथ -साथ सोडियम बेन्जो -एट की खाद्यों में उपस्थिति ने ए डी एच डी के लक्षणों को हाई -पर -एक्टिव तथा नॉन -हाई -पर -एक्टिव दोनों ही समूह के बच्चों में बढादिया है .
इसी समूह ने २०१० में फ़ूड डाईज -ए डी एच डी -हिस्टामिन अंतर -सम्बन्ध की पड़ताल की .हिस्टामिन एक ऐसा रसायन है जिसे हमारा दिमाग तब तैयार करता है जब हमारे अन्दर कोई प्र्त्युर्जात्मक प्रति -क्रिया (एलर्जिक रिएक्शन )संपन्न होती है ।
बहस मुबाहसे का यह सारा सिलसिला १९७५ में तब शुरू हुआ जब अपनी किताब "व्हाई योर चाइल्ड इज हाई -पर -एक्टिव "में डॉ .बेंजामिन फेंगोल्ड ने बतलाया ,यदि आप अपनी खुराक से आर्टिफिशियल डाईज को बे -दखल करदें ,ए डी एच डी के मामले कम हो जायेंगें .बेशक इस अध्ययन के पुनाराकलन में आंकड़ों को खंगालने के बाद किसी अंतर सम्बन्ध की पुष्टि नहीं हुई थी ,लेकिन चर्चा तभी से ज़ारी है ,रुक रुक कर ।
कहा गया जिन रंजकों का डॉ बेंजामिन ने ज़िक्र किया है वे एक मिश्र के रूप में परखी गईं थीं ,अलग अलग से नहीं ।
जो हो योरोप की कम्पनियों ने खाद्य निगमों ने ,ब्ल्यू नंबर -१ ,यलो -५ ,और यलो -६ तथा कुछ और रंजकों की जगह अब कुदरती रंगों का स्तेमाल शुरू कर दिया है ।
जबकी सिर्फ और सिर्फ नैन -सुख (कथित सौन्दर्य बोध )के लिए अमरीका में "साइट्रस रेड -२ ","रेड -३ ",रेड -४० ,ब्ल्यू -१ ,ब्ल्यू -२ ,ग्रीन -३ ,यलो -५ ,यलो -६ का चलन डिब्बा बंद खाद्यों में मकारोनी से लेकर चीज़ और ईस्टर केंडीतक में ज़ारी है .
आलोचकों का कहना है आखिर ये डाईज खाद्यों में पसरी हुई क्यों हैं जबकी ये संदेह के घेरे में आ चुकीं हैं ।
कमसे कम इनके संभावित पार्श्व प्रभावों का तो खुलकर इनसे सनी हुई खाद्य सामिग्री ज़िक्र करे ।
"सेंटर फॉर साइंस एंड पब्लिक इंटरेस्ट "के पूर्व अधिशाषी निदेशक कहतें हैं :इनके संभावित अवांछित प्रभाव हो सकतें हैं ,प्रति -बंधित न सही इन प्रभावों के बारे में तो जन शिक्षण होना चाहिए ,चेतावनी लिखी होनी ही चाहिए .
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें