शनिवार, 30 अप्रैल 2011

राज रोग है चिठ्ठागिरी .

चिठ्ठा -गिरी को कुछ माहिरों ने राज -रोग इसलिए कहा है जिसे ये रोग लग जाता है बाकी रोग पीछे पीछे खुद -बा -खुद चले आतें हैं .यहाँ कुछ का नाम लेलेना अप्रासंगिक नहीं होगा -
(१)ब्लोगों -मोर्फिक -डिस -ऑर्डर ।
(२)ब्लोगोमेनिया ।
(३)ब्लोगों -फ्रेनिया ।
(४)ब्लोगों -प्रेसिव -डिस -ऑर्डर ।
(५)ब्लोग्सिसिज्म पर्सनेलिटी डिस -ऑर्डर ।
ब्लोगर एक डिस -ऑर्डर्स अनेक. इस लघु लेख में सबकी चर्चा करना मुमकिन नहीं है ।
बहर -सूरत "ब्लोगों -मोर्फिक -डिस -ऑर्डर "को लेतें हैं :इस रोग में चिठ्ठाड़ी(इसे लिखाड़ी का पर्यायवाची न समझें )को यही चिंता खाए जाती है उसके "चिठ्ठे "की रूपाकृति में कोई कमी रह गई है .तमाम तरह के गेजेट्स ,का -उन -टार्स(इसे -गिन -टू पढ़ें ),चल -कतरने,कोलाज़ ,छवियाँ ,अनेक -रूपा नारी कीछवियाँ इसके चिठ्ठे पे आपको मिलेंगी .साला मर्द तो होता ही है एकहरा ,एक -आयामी .यूनी पोलर ,बहु -रूपा तो बस नारी ही है .इसलिए मर्द की एक भी तस्वीर इसके चिठ्ठे पे आपको नहीं मिलेगी .परफेक्शन चाहता ढूंढता है यह ब्लोगोमोर्फिक प्राणि.इसलिए एक दिन में कई कई बार भी अपने छिठ्ठे की कोस्मेटिक सर्जरी करते हुए इसे आप पा सकतें हैं ।
(२)ब्लोगों -मेनिया :इन्हें आप ब्लोगों -मेनियाक भी कह सकतें हैं .इन्हें भ्रम हो जाता है .यह "महा -प्राण -ब्लोगर -आला "हो गए हैं .चिठ्ठा -गिरी का श्रेष्ठतम पुरूस्कार इनके चिठ्ठे को मिल चुका है ।
(३)ब्लोगोफ्रेनिया :इस चिठ्ठा खोर को लगता है सब उसी का चिठ्ठा निहार रहें हैं ,उसी के विचार चुरा रहें हैं .उसी के विचारों और चिठ्ठे की दुनियाभर में चर्चा है .यह अपने चिठ्ठे को बार खोल के देखता है इसका चिठ्ठा (ब्लॉग )चोरी तो नहीं हो गया .
(४)ब्लोगोप्रेसिव डिस -ऑर्डर :यह चिठ्ठा -बाज़ अवसाद ग्रस्त रहता है .इसके चिठ्ठे पर कोई टिपण्णी नहीं करता दिन रत यही हताशा और अवसाद इसे खाए जाता है .यह उस दिन को कोसता रहताहै जिस दिन इसनेइस सत्यानाशी सर्व -ग्रासी , चिठ्ठा -खोरी ,चिठ्ठा गिरी के बारे में जाना ।
इसका रोग ठीक हो सकता है यदि लोग इसके चिठ्ठे पर कुछ दिन रोज़ -बा -रोज़ आयें ।
(५)ब्लोगी -सिसिज्म :यह चिठ्ठा सम्बन्धी व्यक्तित्व विकार औरतों को मर्दों से दस गुना ज्यादा होता है .कारण आत्म -विमोह ,आत्म -रति ,आत्म श्लाघा कुछ भी हो सकता है .हर कविता ,हर ग़ज़ल में इसकी खुद की ही तस्वीर चस्पा होती है .अपने चिठ्ठे पे ज्यादा रीझता है या खुद पे माहिर इसका अन्वेषण कर रहें हैं .कारण अभी अज्ञात बना हुआ है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :सुनील कुमारजी का आलेख जिसमे ब्लोगर और मंचीय कवियों की तुलना की गई है ।
तमाम ब्लोगर कुमार और ब्लोगर कुमारियों से क्षमा याचना सहित ,
चिठ्ठा प्रेमी आपका
वीरुभाई ।
४३३०९,सिल्वर वुड ड्राइव ,केंटन ,मिशिगन -४८ १८८ -१७८१ ।
दूरध्वनी :००१ ७३४ ४४६ ५४५१

1 टिप्पणी:

Arvind Mishra ने कहा…

बहु -रूपा तो बस नारी ही है
कितना सटीक आब्जर्वेशन