कुछ लोग मानते समझतें हैं ,ज्यादा एल्कोहल लेने के बाद आदमी की असलियत बाहर आजाती है .वास्तव में बेहिसाब की पी लेने से हम अपने मालिक अपने नियंत्रक ,मोडरेटर नहीं रह जातें हैं .पहल शराब के हाथ में आजाती है फिर वह टकीला हो या और कुछ ।
नियंत्रण स्वयं पर से हठने के बाद कई लोग इक दम से बहुत ही स्नेहिल हो जाते हैं कई बेहद यौन -उन्मुख ,सेक्स्युअल .ऐसे में गलत और सही का फैसला करने वाला चेतन्य स्वरूप आत्म (सेल्फ )उदासीन होकर सब कुछ की अनदेखी करने लगता है .यही वो क्षण हैं जिनमे कुछ अ -नैतिक कृत्यहमारे खुद के मूल्यों के विपरीत हमसे हो सकता है ।
सावधानी हठी दुर्घटना घटी ।
लेकिन यही एल्कोहल अपने प्रभाव में लेकर कई को बेहद गमज़दा,दुःख से भर देती है ।
बेशक कुछ लोग आवेश में भी आ सकतें हैं ,एंग्री "मीन ड्रंक "चाहें तो आप इन्हें कहलें ।
लेकिन यह गुस्सा इनके अन्दर भरा हुआ दबा हुआ था ,विवेक और सामाजिकता इसे रोके हुई थी ,शराब की बोतल,टकीला में नहीं था यह गुस्सा .
अलबत्ता कुछ लोग पीते कम हैं कपड़ों पर छिड़क कर अभिनय ज्यादा करतें हैं शराब की आड़ में "होली "खेलतें हैं प्रतिशोध की .
शनिवार, 2 अप्रैल 2011
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