विकिरण की मार दूरी के साथ तेज़ी से घटती है .चेर्नोबिल ख़तरा एकआकलित पैमाने पर ७ के स्तर पर था ,दाइची से यह ख़तरा अभी ६ पर ही टिका हुआ है .चेर्नोबिल की दूरी लोस एन्जीलीज़ से ६२४६ मील थी जबकि दाइची पावर प्लांट ५३६८ मील की दूरी पर ही है ।कोई ख़ास अंतर नहीं है इन दूरियों में वैसे भी दूरी के साथ विकिरण की मारक क्षमता तेज़ी से घटती है .
हवा का रुख और बरसात का गिरना और संयंत्र से दूरी तय करेगी किसको कितना ख़तरा है ,है भी या नहीं .वैसे भी जो कुछ वायुमंडल में दाखिल हो रहा है वह गैसों का सैलाब ही है ,हाइली दाय्ल्युतिद स्टफ ही है ।
"इट इज नोट लाइक देयर इज ए बिग ब्लोब ऑफ़ इट एंड इज आल गोइंग टूस्टे टुगेदर" .रफ्ता रफ्ता और तनुकृत हो जाएगा यह गैसों का फैलाव .
दाइची के बोइलिंग वाटर रिएक्टर में युरेनियम पेलेट्स का ईंधन के रूप में स्तेमाल किया गया है जिससे उप -उत्पाद के रूप में रेडियो सीजियम और रेडियो आयोडीन ही बहुलांश में रिस रहा है .यह दोनों ही रेडियो -धर्मी विकिरण बरसाती पानी में घुल जातें हैं ।
अलावा इसके रेडिओ -आयोडीन १३१ पहले अन -स्टेबिल ज़ीनोंन में डिके करता है फिर स्टेबिल में .स्टेबिल ज़ीनोंन कोई नुकसान नहीं पहुचा सकता है ।
चेर्नोबिल एटमी दुर्घटना की बात और है वहां रेडियो -आयोडीन फाल आउट के ज़रिये उस घास में आ मिला था जिसे चारे के रूप में गाय खातीं हैं .ये तमाम दुधारू गायें थीं जिनका दूध पीने से बच्चों को थाइरोइड का कैंसर हुआ था ।
अलावा इसके आयोडीन का पता लगाने के लिए जापान और अमरीका दोनों के ही पास अति -परिष्कृत प्रोद्योगिकी है इसलिए आयोडीन वाटर या आयोडीन मिल्क की बात न करें .पानी और दूध दोनों का ही आयोडीन की मौजूदगी के लिए भरोसे मंद परीक्षण किया जा सकता .
यह अफ -वाहों का दौर है और अफवाह के पंख नहीं होते बिना पाख(पंख ) का पाखी(पक्षी ) है जो ऊंची से ऊंची उड़ान भरता है .अफवाहों से ऊर्जा लेता है .इधर भारत के चेन्नई में खामखा रेडियो -एक्टिव रेन की बात भी हुई है ,सुपर -मून के प्रस्तावक इसे लूनर पेरिजी का किया धरा मान रहें हैं जबकि लूनर पेरिजी और अर्थ -क्युवेक्स (सीज्मिक एक्टिविटीज़ )में कोई ख़ास रिश्ता भू -विज्ञानी नहीं बतलातें हैं .
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