रविवार, 27 मार्च 2011

व्हाट इज ए रेड हैरिंग ?

व्हाट इज ए रेड हैरिंग ?
किसी अपराध कथा ,रहस्य मूलक कथानक में एक ऐसे पात्र को प्रवेश दिलावाना जिसका मूल अपराध या कथा से कोई लेना देना न हो साहित्य में "रेड हेरिंग" कहलाता है .यह पाठकको मिसलीड करने जैसा होता है .
भारत में आरुशी हत्या काण्ड में कितने रेड हेरिंग आये भी और गए भी सी बी आई को अभी भी इल्म नहीं .परिश्थिति जन्य साक्ष्य ही अब तलवार दम्पति को सूली पर लटका रहा है जांच की ।
रहस्य रोमांच की फिल्मों में (बीस साल बाद ,गुमराह ,वो कौन थी ,महल )अकसर कथाकार रेड हेरिंग बुनता है । उन्हें विश्वशनीय बनाकर प्रस्तुत करता है ।
एडवेंचर गेम्स और पज़ल्स में अकसर रेड हेरिंग्स की दखल रहती है ।
राजनीति में तो यह रोज़ का खेल है किसी की हांडी किसी और के सिर पे फोड़ना .कोमन वेल्थ गेम्स ने कलमाड़ी को ",रेड हेरिंग" बना दिया जबकि वह खुद सी बी आई जांच की मांग करते रहें हैं ताकि दूध का दूध पानी का पानी हो जाए.अपनी शेव बनाकर साबुन रेड हेरिंग के मुह पर फैंकना राजनीति का शगल है।
वैसे साहित्यिक अभिव्यक्तियों में रेड हेरिंग एक मुहावरे दार अभिव्यक्ति ,एक वर्बा -तम है ,लोकलुभाऊ भाषा और गैर ज़रूरी अलंकरण है शब्दजाल और वाक्पटुता है .मकसद होता है असल बात के इधर उधर बाकी सब कुछ कह -जाना .असल बात का ज़िक्र टाल जाना .

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