गुरुवार, 17 मार्च 2011

डेडली डूओ:वोमेन विद डायबिटीज़ एंड डिप्रेशन .

एक अध्ययन के मुताबिक़ उन महिलाओं की हृद रोगों से मौत हो जाने का ख़तरा और भी बढ़ जाता जो मधुमेह के साथ-साथ अवसाद की मार भी झेल रहीं होतीं हैं ।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के रिसर्चरों की एक टीम ने फ्रेंक बी .हु के नेत्रित्व में किये गये इस अध्ययन में बतलाया ,डायबिटीज़ और डिप्रेशन से एक साथ ग्रस्त माहिलायें ऐसे दुश्चक्र में फंस जातीं हैं जहां एक रोग दूसरे की उग्रता को बढाता रहताहै .
मधुमेह से ग्रस्त महिलायें मर्ज़ से तंग आकर तनाव ग्रस्त रहने लगतीं हैं ,ऐसे में तनाव स्ट्रेस हारमोनों का स्राव करवाके मधुमेह की जटिलताओं में ज्यादा ख़म (पैच)डाल देता है .
दूसरी तरफ अवसाद ग्रस्त व्यक्ति अपने प्रति लापरवाह रहने लगता है ऐसे में ब्लड सुगर कंट्रोल बहुत खराब हो जाता है ,रोग और भी पेचीला होके मौत का ख़तरा बढा देता है ।
इसीलिए सेकेंडरी डायबिटीज़ और डिप्रेशन एक साथ होने पर दोनों का कुशल प्रबंधन ज़रूरी हो जाता है ।
स्वस्थ जीवन शैली ,व्यायाम के लिए अवकाश ,तनाव का प्रबंधन ,योग ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल में रखेगा जो डायबिटीज़ और डिप्रेशन से पैदा विषम हालातों में मौत की और ले जाता है इसीलिए डिप्रेशन होने पर दवा और मशविरा (क्लिनिकल कोंसेलिंग )दोनों नियमित लेनी होंगी ताकि स्थिति काबू में रहे ।
लार्ज स्केल स्टडी :सन २००० में हु ने अपनी टीम के साथ नर्सिज़ हेल्थ स्टडी के तहत ५४-७९ साला ७८,२८२ महिलाओं के बारे में आंकड़े जुटाए .२००६ के आते आते इनमे से ४६५४ स्वर्ग सिधार गईं ,इनमे से ९७९ की मृत्यु हृद -वाहिकीय (कार्डियो -वैस्क्युअलर डीज़ीज़) से हुई ।
सिर्फ मधुमेह ग्रस्त महिलाओं के लिए ३५%और मधुमेह के साथ अवसाद ग्रस्त महिलाओं के लिए मौत का ख़तरा ४४%बढाहुआ पाया गया ।
"आर्काइव्ज़ ऑफ़ जनरल साईक्येत्री"में यह अधययन प्रकाशित हुआ था जिसके अनुसार दोनों ही रोगों से एक साथग्रस्त महिलाओं के लिए मौत का ख़तरा भी दोगुना बढा पाया गया ।
लाइफ -स्टाइल -इम -पेक्ट :मधुमेह और अवसाद दोनों का ही सम्बन्ध अस्वस्थ जीवन शैली ,धूम्रपान ,दैनिकी में से व्यायाम का नदारद रहना पूअर डाइट बनता है ।आनुवंशिक वजहें भी बेशक कमोबेश रहतीं ही हैं .
अवसाद हमारे स्नायुविक तंत्र (नर्वस सिस्टम )को कुछ इस कदर असरग्रस्त करदेता है ,जो दिल के लिए और भी ज्यादा बुरा साबित होता है ।
दो करोड़ तीस लाख से भी ज्यादा अमरीकी अवसाद की चपेट में हैं (भारत में यह आंकडा १७ करोड़ के पार जा चुका है )इनमे से एक चौथाई अवसाद की चपेट में भी हैं ।
अवसाद की यह दर उन लोगों में पाए जाने वाले अवसाद की दर से दोगुना है जिन्हें डायबिटीज़ नहीं है .

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