शनिवार, 19 मार्च 2011

जटिलताएँ ही जटिलताएँ हैं मधुमेह रोग में अगर ....

मधुमेह रोग जटिल -ताओं का पिटारा है यदि यह काबू में न रहे तो .शरीर के तमाम प्रमुख अंगों यहाँ तक की कामेच्छा को भी असरग्रस्त कर सकता है मधुमेह फिर चाहे वह अंग आपके नेत्र हों ,नसें हों या चमड़ी ,गुर्दे (किडनी )हों या आपका दिल ,ब्लड वेसिल्स हों या पाँव मष्तिष्क को भी यह प्रभावित करता है ।
गुर्दों के ज़रिये (गुर्दे खराब हो जाने पर )यह शरीर के दूसरे अंगों को भी असरग्रस्त करता है ।
घाव तो देर से भरतें ही हैं रोग संक्रमण का ख़तरा भी बढ़ जाता है .
मधुमेह में ब्लड सुगर कंट्रोल पूअर बना रहे तो ट्यूबरक्लोसिस (कोक्स सिंड्रोम ,तपेदिक ),न्युमोनिया ,सेप्तीसेमिया भी आ धमकतेंहैं .मधुमेही इनकी चपेट में जल्दी आजाता है ।
आइये एक विहंगावलोकन करतें हैं इन जटिलताओं का :
(१)मधुमेह अनियंत्रित बना रहने पर न सिर्फ बीनाई (विज़न )ही कमज़ोर पडती है ,डायबेटिक रेटिनो -पैथी ,केतेरेक्त भी दीर्घावधि में असर ग्रस्त करतें हैं हमारी आँखों को .ग्लूकोमा भी अन्यों की बनिस्पत ज्यादा हो सकता है ।
डायबेटिक रेटिनो -पैथी का पता न चलने पर या इसकी अनदेखी ,इसके प्रति रोग निदान के बाद भी लापरवाही बरतने पर रेटिना की ब्लड वेसिल्स से रक्त स्राव हो सकता है .ब्लड वेसिल्स कैन लीक ।ऐसे में रौशनी चली जाती है .
(२)किडनीज :ब्लड सुगर बे -काबू बना रहने पर गुर्दे खराब हो जातें हैं जो हमारे शरीर के सफाई कर्मचारी हैं दिन रात जिन्हें काम करना पड़ता है व्यर्थ पदार्थों की निकासी का ऐसे में इन छलनों(फिल्टर्स ) के खराब होने पर मूत्र के साथ आवश्यक तत्व भी शरीर से बाहर जाने लागतें हैं .यही डायबेटिक नेफ्रो -पैथी है (डिजीज ऑफ़ दी किडनीज काज्ड बाई डायबिटीज़ )।
(३)नर्वस सिस्टम :स्नायुविक तंत्र भी अनियंत्रित ब्लड सुगर कंट्रोल से असर ग्रस्त होता है .मष्तिष्क ,स्पाइनल कोर्ड ,मसल्स सभी को असर ग्रस्त करता है रक्त में ग्लूकोज़ का बेकाबू स्तर ।
रक्त प्रवाह में बाधा आने के अलावा ब्लड ग्लूकोज़ का बढ़ा हुआ स्तर हमारी नाड़ियों(नर्र्व्ज़ )को भी नष्ट कर देता है .यही अवस्था "न्यूरो -पैथी /डिजीज ऑफ़ दी न्र्व्ज़ काज्ड बाई डायबिटीज़ )"कहलाती है .
(४)इरेक्टाइल डिस -फंक्शन /लिंगोथ्थान अभाव ,कामेच्छा में कमी /नपुंसकता :अनियंत्रि ब्लड सुगर रक्त प्रवाह और हमारे ऑटो -नोमिक सिस्टम दोनों को प्रभावित करता है .रक्त प्रवाह की कमी से पीनाइल आर्तरीज़ तक कामोत्तेजना के लम्हों में भी पूरा रक्त नहीं पहुँच पाता यही है इरेक्टाइल डिस -फंक्शन है ।
(५)स्किन ,हमारी चमड़ी :छोटी परत नलिकाओं के नष्ट होने के कारण कुछ मधुमेह रोगी चर्मरोगों और चर्म संक्रमण के शिकार हो जातें हैं .फलस्वरूप चमड़ी की ऊपरी परत छीजने लगती है ,थिन हो जाती है एपिडर्मिस (चमड़ी की बाहरी परत )।
यही अवस्था "नेक्रो -बायोसिस -लिपोइदिका "कहलाती है ।
(६)आर्टरीज :दीर्घावधि रोग की अवस्था में न सिर्फ पाँव में रक्त प्रवाह धीमा पड़ जाता है ,धमनियां भी लोच खोकर कठोर अन्दर से खुरदरी पड़ जातीं हैं .ऐसे में कोरोनरी -आर्ट -री -डिजीज का ख़तरा बढ़ जाता है ।
धूम्रपान और डायबिटीज़ डेडली कोम्बिनेशन है ऐसे में हृद रोगों का ख़तरा और भी बढ़ जाता है .मोटापा भी खतरे को बढाने के अलावा ब्लड सुगर कंट्रोल को और भी मुश्किल बना देता है .इससे भी बचे रहने में ही भलाई है .याद रहे मधुमेह रोग पूरे परिवार का रोग बन जाता है .तीमारदार हर तरह से पिटताहै रोग के आखिरी चरणों में चलते चले जाने के साथ .तन से धन से मन से ।
(७)पाँव :रक्त नलिकाओं के संकरा पड़ जाने पर मधुमेह में रक्त प्रवाह में कमी आजाती है .पांवों की यह(रक्त ) पेरिफरल ब्लड वेसिल्स तक नहीं पहुंचपाता है .
ऐसे में मधुमेही के पाँव सर्दी ,संक्रमण तथा चोट ग्रस्त जल्दी हो जातें हैं .लेकिन साथ ही पाँव दर्द तथा तापमान के प्रति संवेदन शीलता खो बैठता है .(ठण्ड में रोगी का पाँव रजाई से बाहर रहता है उसे खबर ही नहीं रहती .पाँव में जलन भी होती है ।
मधुमेह में रोग बढ़ने पर पांवों पर विशेष तवज्जो देनी पड़ती है .विशेष जूते पहनने पड़ते हैं .उँगलियों के बीच की जगह को साफ़ रखना पड़ता है . नमी से बचाना पड़ता है .
पाँव में बारहा चोट आना ,घाव का न भरना ,रोग संक्रमण ,खतरे का सूचक है .पाँव को ऐसे में सूखापन भी महसूस हो सकता है .यह डायबेटिक गैंग्रीन की ओर इशारा है .जिसमे रोगी का पाँव काटने के अलावा और कोई चारा नहीं रहता है कई मर्तबा .लापरवाही बरतने पर सारे शरीर का रोग बन जाता है मधुमेह .

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