शनिवार, 31 जुलाई 2010

अब दवा डिलीवरी के लिए तेज़ रफ्तार लेज़र पल्ज़

लाइटनिंग शोट /वेक्सिनेसंस एट दी स्पीड ऑफ़ लाईट ,कर्ट्सी लेज़र्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,जुलाई ३१ , २०१० ,पृष्ठ१९ )।
सीधे सीधे कोशा के कवच को बींध अब दवा और असरकारी वेक्सीन मरीज़ के शरीर में पलांश में ही पहुंचाई जा सकेगी .इसका श्रेय जाता है "जोर्जिया टेक "के साइंसदानों को जिन्होनें दवा को सीधे सीधे कोशाकी झिल्ली के पार पहुंचाने में लेज़र पल्स का पहली मर्तबा स्तेमाल किया है ।
यूं कोशिका के प्रतिरक्षा कवच में सैंध लगाकर दवा के अणु छोड़ना कोई आसान काम नहीं है .बेशक कई विषाणु भी नौक दार ,सुईं -नुमा नीडिल लाइक अपेंडेज़ का स्तेमाल कोशा को बींधकर आनुवंशिक पदार्थ अन्दर ठेलने में करतें हैं .कोशा के सारे दिफेंसिज़ धरे के धरे रह जातें हैं उस पल- छिन.
वास्तव में प्राणी कोशायों की हिफाज़त वह झिल्लियाँ करतीं हैं जो कोशा को घेरे रहतीं हैं .यह अन्दर का कोशीय पदार्थ बाहरी हमले से बचाए रहतीं हैं .इन्हीं कोशाओं की झिल्लियों के पार दवा को पहुंचाना साइंसदानों का लक्ष्य रहा है .यही हासिल है इस रिसर्च का .इस तजुर्बे का ।
यह काम लेज़र बीम से किया गया .अवरक्त प्रकाश की स्पन्दें (पल्सिस ऑफ़ इन्फ्रा रेड लाइट्स )डालकर कार्बन नेनो -कणों की मदद से .ठीक कोशा तक पहुंचाए गये येब्लेकिंड नेनो -पार्तिकिल्स .बस लेज़र पल्स से पैदा ताप ने सूट(ब्लेकिंड कार्बन नेनो -कणों ) को गर्म किया .देखते ही देखते एक अति सूक्ष्म बबिल(बुलबुला )इसके गिर्द बन गया .स्पन्द के चुकते ही बुलबुला एक आवेग के साथ फट जाता है .इससे एक शोक वेव बनती है .यही कोशा की झिल्ली में सूराख बना देती है .जेवरात की सफाई भी अल्ट्रा साउंड वेव्स की मदद से इसी तरह की जाती है ।
बस दूसरे ही पल सेल मेम्ब्रेन अपनी क्षति पूर्ती कर पूर्व स्थिति में आ जाती है अपनी मरम्मत ,हील कर लेती है खुद से खुद को.लेकिन शोक वेव्स के असर से दस फीसद कोशायें पूरी तरह नष्ट भी हो जातीं हैं ।
इस लिए दवा पहुंचाने के इस तरीके को दुधारी तलवार पर चलने की तरह ही समझा जा रहा है .रणनीति यह है ,सूराख ठीक इतना बड़ा किया जाए ,दवा भी अन्दर दाखिल हो जाए ,सूराख भी भर जाए .कोशा भी बच जाए .यानी सांप भी मर जाए लाठी भी ना टूटे ।
इस अल्प कालीन अवसर को भुना कर किमो -थिरेपी के लिए रसायन ,तथा वेक्सीन के डी एन ए कोकोशिका के अन्दर दाखिला दिलवाना एक एहम मुद्दा है .
नेचर नेनो -टेक्नोलोजी में यह अध्धय्यन प्रकाशित हुआ है .

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