शनिवार, 5 सितंबर 2009

आख़िर दादा जी ठीक ही कहते थे -समय पर भोजन .....

हर चीज़ का एक वक्त होता है ,प्रकृति औ हमारा शरीर भी अपने हिसाब से चलता है .सर्कादियन रिदम (जैव घड़ीअपने हिसाब से न सिर्फ़ चलती है ,हमें भी चलाती है ।
गडबड तब होती है जब इस जैव घडी को हम अपने हिसाब से चलाने की हिमाकत करने लगतें हैं .तब हमारी मेताबोलिज्म्म गडबडा जाती है ,जैव घडी कहती है हमारे शरीर से भाई सोना है ,हम खाना खा रहें होतें हैं ,ऐसे में जैव घडी केलोरी ठीक से खर्च नहीं कर पाती ।
नार्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के शोध क्षात्रों ने दादा जी की सीख पर अपनी मोहर लगाते हुए बतलाया है -सही समय पर खाना (एक सुनिश्चित समय पर ब्रेकफास्ट ,लंच डिनर )शरीर के वजन का विनियमन कर ,थुल थुल होने से आपको बचाए रख सकता है ,हालाकि स्वाथ्य्कर भोजन ,नियमित व्यायायाम का अपना महत्व है ।
काल सेंटर में काम करने वाली युवा भीड़ के अलावा औ भी कितने ही लोग हैं जो देर रात गए भोजन करतें हैं ,ऐसे में शरीर तो सोनाchaahtaa hai ,jaiv ghdi ke aadesh ke anukul ,au isiliye jaiv ghadi kelori theek se khrch kare to kaise ? मेटाबोलिस्म ऐसे मेंgdbdaa yegi hi .
बेशक वजन के निर्धारण में केलोरी इनपुट औ केलोरी आउट पुट के अलावा औ कई घटक काम करतें हैं .मौसम की तरह पेचीला है ,वजन का विनियमन ,हर घटक का अपना रोल है .यह कहना है -वां इन बर्ग कालिज आफ आर्ट्स एंड साइंसिज़ ,निदेशक ,सेंटर आफ स्लीप एंड सर्काडियन रिदम के फ्रेड त्युरेक का ।
प्रयोगों के दौरान देखा गया,vo maais jinhen -हाई फेट डाइट स्लीपिंग आवर्ज़ में दी गई उनका वजन ज्यादा बढ़ा बरक्स उनके जिन्हें यही खुराख खेल कूद के वक्त दी गई ।
ज़ाहिर है शरीर की अपनी एक ले ताल आंतरिक घडी है (जैव घडी )जो ऊर्जा का विनियमन औ खर्ची अपने तरीके से करती है .कितनी केलोरी कब किस मद पर खर्च करनी है ,अंदरूनी मेकेनिज्म बेहतर जानती है .हमारा रूटीन हमारा अपना है ,जो इस मिकेनिज्म के साथ अक्सर छेड़ छाड़ करता है .फैसला आप जाने .

2 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत ज्ञानवर्धक सार्थक लेख ..धन्यवाद.
नीरज

विवेक रस्तोगी ने कहा…

बहुत बढियाअ जानकारी, हम तो बचपन से ही जैव घड़ी के हिसाब से ही रहने की कोशिश करते हैं।