शुक्रवार, 11 सितंबर 2009

याद रखने में मददगार भी हो सकता है -धूम्र पान .

धूम्रपान के खतरे जगजाहिर हैं ,लेकिन एक अध्धय्यन के मुताबिक हाल ही में बीती बातों को बेहतर ढंग से याद रखने में भी मददगार हो सकती है -धूम्रपान की आदत (स्मोकिंग )।
इस अध्धय्यन को सम्पन्न किया है -बेलूर कालिज आफ मेडिसन के शोध छात्रों ने -परसों रात आपने क्या खाया था ,उस रात औ क्या हुआ था ,किया था आपने यह बात गैर -धूम्र -पानियों की बनिस्पत धूम्र -पानियों को अच्छी तरह याद रहती है ।
दरअसल ऐसा उस लत -कारी (एडिक्टिव पदार्थ निकोटिन )की वजह से होता है ,जो सब कुछ अच्छा अच्छा होने का एहसास (ऐ फीलिंग आफ वेळ -बींग) कराती रहती है ,औ बस घटनाओं के साथ एक लिंक ,असोसिएष्ण ,जुडाव सा पैदा हो जाता है ।
अक्सर मौजमस्ती के वक्त ,यार दोस्तों के संग सुरापान ,डिनर करते यहाँ तक की काम से घर लौटते वक्त आदमी सिगरेट सुलगा लेता है -बस यहीं से एक संकेत ग्रहण कर लेता है हमारा दिमाग -यूफोरिया रच लेता है .,होनी अनहोनी ,करनी नाकरनी के प्रति ।
सन्दर्भ सामिग्री :स्मोकिंग केनहेल्प किरिएत स्ट्रांगर मेमोरीज़ (टाइम्स आफ इंडिया ,पृष्ठ २१ ,सितम्बर ११ ,२००९ )
विशेष कथन :धूम्र पान १६ -१७ साल करने ,नुकसानी उठाने के बाद ,जब हमने छोड़ दिया तो एक्स -स्मोकर होने के नाते अपने साथियों को भी छोड़ने के लिए प्रेरित किया .उनमे से कई ने बतलाया ,हमें फटकारा -आपकी सोसल टालरेंस कम है ,धूम्र -पानियों को पर्सनल स्पेस दीजिये -हमने पूछा आपको लत कैसे पड़ी -कईयों ने बतलाया -साधू -फ़कीर -दार्शनिक -बड़े बड़े विज्ञानी सब ही तो चेन स्मोकर्स रहें हैं (लेकिन हुज़ूर वो धूम्र -पान करने की वजह से महान नहीं थे ,ये महान लोग धूम्र -पान भी करते थे ,आदमी जिस काम को करता है ,उसे जस्टिफाई भी करता है ,उसकी वकालत भी करता है )हमारे दोस्तों ने भी ऐसा ही किया ,हमारे अलावा सब ही इतेलेक्चूअल थे ।
बहर सूरत हार हम भी कहाँ मानने वाले थे ,एक मिशन की तरह लगे रहे ,लोगों को समझाने -बुझाने ,विज्ञानिक जानकारी औ सौन्दर्य बोध का हवाला दिया कभी तो कभी स्मोकर्स के सामाजिक -पारिवारिक -आर्थिक दाइत्व का .अर्थ शास्त्र भी समझाया स्मोकिंग पर आए मासिक खर्च का ।
मेरे कई साथी धीरे -धीरे मेरे करीब आए ,खुश है आज ,धूम्र -पान छोड़ कर .एक टोयोटा तो में भी सिगरेट के धुएँ में उड़ा चुका हूँ ,ओपिन हार्ट सर्जरी आन पम्प उसी का नतीजा थी ।
मुक्तावली (दन्तावली तो हमसे कब की रुखसत हो चुकी है ,हमारी बीवी की तरह वह भी असमय ही हमारा साथ छोड़ गई .अब तो हमारे पास दिखाने के भी दांत नहीं हैं ,खीसे निपोरें तो कैसे ?)
वीरेंद्र शर्मा .

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