गुरुवार, 16 जुलाई 2009

शंख -ध्वनी और नाद ब्रहम

घर हो या मन्दिर या फ़िर कोई अन्य मांगलिक अवसर शंख ध्वनी का भारतीय संस्कृति में अपना महत्व है .हर की पौडी की आरती जिसने देखी है वह इस नाद -ब्रह्म ,ॐ की मांगलिक धवने की और खींचा चला आता है .महाभारत में युद्ध की शुरुआत और समाप्ति इसी धवनी से होती है .मेरा इस धवनी से पहला परिचय तब हुआ जब नन्हा बच्चा था .हमारी नानी ने ८५ वर्ष की उम्र में सधवा के बतौर शरीर छोडा था ,हमारे नाना जिंदा थे ,नानी का पार्थिव शरीर सजा धजा लाल वस्त्र से ढका था ,अर्थी उठी तो शंख धवनी हुई ,लगा एक आत्मा उर्ध्व गामी हो गई ,जैसे कोई जहाँ से उठता है ,तब इस शब्द के मानी भी कहाँ पता थे .कहते हैं जब ब्रह्मा जी ने सृष्ठी का निर्माण किया तब ॐ शब्द प्रस्फुटित हुआ ,यही नाद ब्रह्म था .ॐ मानीश्रीष्ठी (सृष्ठी )और उसके पीछे का सच .मैं एक शान्ति स्वरूप आत्मा हूँ .वेदों में निहित ज्ञान का यही मूल है ,यही धर्म है ,शंख से ही "थर्था "होली वाटर (मन्त्र अभिसिक्त जल )भक्तों को मुहैया करवाया जाता है ,यही बुद्धि को सच के करीब ले जाता है .शंख धवनी अवांछित शोर ,नकारात्मक को दिमाग से बाहर निकाल कर परिमंडल को अनुकूल बनाती है ,५०० मीटर के दायरे में तमाम पेथोजंस (विषाणु ,जीवाणु ,परजीवी ,इतर रोग कारको )को नष्ट कर देती है .कथा है :शंखासुर देत्तय(दानव ) ने देवों को पराजित कर वेदों को चुरा लिया .और गहरे समुन्दर (एबीस )में जा बैठा .देव भागे भागे विष्णुजी के पास गए ,जिन्होंने "मतस्य का रूप धरा (मतस्य अवतार )और गहरे समुन्दर में गोतालगाया ,शंखा -सुरा के कान की शंखा कारी हड्डी और सर समेत उड़ा दिया .इसी फूंक से ॐ अक्षर फूटा .वेद प्रकट हुए .वेदों का सारा का सारा ज्ञान इसी ॐ शब्द की व्याख्या करता है .शंखासुरा से ही शंख शब्द की व्युत्पत्ति हुई .विष्णुजी के इसी शंख को "पान्च्जन्नय"के नाम से जन जाता है .बीजेपी के पार्टी ओरगन (मुख पत्र ) का नाम भी यही पान्च्जन्नय है .धर्म और चारों पुरुषार्थ ,धर्मानुकुल आचरण का प्रतिक है शंख नाद .अ -धर्म पर धर्म की विजय का आवाहन है ये मंगल धवनी ."ये धवनी मंगल धवनी ,ॐ शान्ति ,ॐ ,बड़ा ही सुदर ये मन्त्र मनहर ॐ शान्ति ॐ ".भारत जो छोटे छोटे गावों में आबाद है ,यहाँ मंदिरों में जब शंख बजता था ,तो ये "ट्रेफिक ब्रेक " का प्रतिक बन जाता था ,ॐ ध्वनी सारे गाँव में फेल जाती थी ,सारे काम के बीच वो क्षण इश आराधना को समर्पित हो जाता था .आज शहरी शोर में दब गया है ,ये नाद .

1 टिप्पणी:

Dr Ved Parkash Sheoran ने कहा…

.भारत जो छोटे छोटे गावों में आबाद है ,यहाँ मंदिरों में जब शंख बजता था ,तो ये "ट्रेफिक ब्रेक " का प्रतिक बन जाता था Sahi kha aapne