सोमवार, 20 जुलाई 2009

भारतीय संस्कृति में उपवास की महत्ता क्यों ?


भारत में सप्ताह के सातों दिवसों में से कभी भी लोग अपनी सृद्धा भक्ति ,आराध्य देव के हिसाब से उपवास रख लेतें है ,सोम के दिन शिव भक्त ,मंगल को हनु -मान ,बृहस्पति को साइन बाबा और बृहस्पति देव का दिन तो शुक्र वार संतोषी माँ को समर्पित ,शनि को शनि का व्रत ,रवि को सूर्य की उपासना ,अलावा इसके साल भर मनमाफिक तीज -त्योंहार व्रत उपवास ,साल में दो बार नवरात्र (मुस्लिम भाइयों में रमादान का महिना रोजों के निमित्त है .कभी देवुथ्थान एकादशी का वर्त तो कभी पूरनमासी (पूर्णिमा ),यहाँ वरतों का डेरा है गाहे बगाहे .क्या व्रत खाद्य सामिग्री बचाने का उपादान है ?या स्वाद बदल ,चटकारे मांगती जुबान की मांग ?दरअसल उपवास शब्द उपा +वास का योग है .उपा माने निकट तथा वास माने रिहाइश ,रहना .किसके निकट रहना है ?स्वाभाविक तौर पर उस परमेश्वर के ,जो मन और तन दोनों की शुद्धीका ज़रिया बनता है .उपवास सिर्फ़ उपयुक्त आहार चयन का अवसर ही नहीं है ,संकल्प शक्ति को भी बढाताहै कई लोग तो उपवास के दौरान जल भी ग्रहण नहीं करते ,निर्जला रहतें हैं .ज़ाहिर हैं :इन्द्रियों का मालिक बनाता है हमें उपवास .गीता में उपयुक्त उपहार का उल्लेख है ,उपहास पाचन तत्र को विराम देकर उसका विनियमन करता है .सत्य के आग्रह के लियें गांधीजी ने उपवास रखा ,नेता लोग आमरण अनशन पर बैठतें है .सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का नाटक (एकांकी )बकरी उनके उप्वासीय ढोंग की पोल खोलता है :अरे भाई आमरण अनशन नही सिर्फ़ उसकी धमकी देनी है ,भूखा नहीं रहना है ,रोज़ रत को मौसमी का जूस मिलेगा ,उपवास सांसारिक ढोंग से मुक्ति दिलवाता है ,तरह तरह के पकवान खाने के लिए नहीं है उपवास ,और न ही ये डाइटिंग है यहाँ तो संदेश है :सादाजीवन उच्च विचार जो हमें परमेश्वर के निकट लातें हैं ,इसीलियें कहा गया :जैसा अन्न ,वैसा मन ,जैसा पानी वैसी वाणी .इश्वर की याद में लिया गया अन्न सात्विक हो जाता है ,मन और शरीर को शांत करता है उत्तेजित नहीं ,भोजन में रोज़ खपने ,भोजन का चयन करने उसे बहुविध पकाने का समय बचता है ,हमारी ऊर्जा का संरक्षण करता है व्रत .जीवन को (देनन्दिन) एक ब्रेक देता है व्रत .सेहत के लियें व्रत रखिये ,स्वास्थ्य कर भोजन खाइए व्रत रखिये गाहे बगाहे ,तंदुरुस्त रहिएगा ,गारंटी है .यही व्रत का संदेश है ,व्रत रखने का व्रत लीजिये .

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