बुधवार, 29 जुलाई 2009

बनिथनि हमारी समधन

जीवन में बहुत कम लोग होतें हैं जो हमारी व्यक्तिगत संभाल करतेहै .हमारी नज़र उतारतें हैं .हमारी खान पान की आदतों से वो बावस्ता ही नहीं होतें ,उन्हें ख़याल रहता है ,हमें खाने में क्या पसंद है ,हम चाय कैसी पीतें हैं ,दूध -पानी एक कर उबाल खंगाल कर या फ़िर चाय की पत्ती केतली को गरम पानी से खंगाल कर गरम करने के बाद ,गरम पानी ऊपर से डाल केतली को टीकोजी से ढक संवार कर ऊपर से दूध मिलाकर ,चीनी का पात्र हमारे आगे कर देतें हैं .हमारे कपड़े लत्तों की ख़बर रखतें हैं ,हम कोई ज़रूरी कागज़ पत्तर उनके हवाले छोड़ कर निश्चिंत हो सकतें हैं .हमारे बीमार पड़ने पर वो हमारी नज़र भी उतारतें हैं ,घर से जब हम चलतें है याद दिलातें :मोबाइल वगैरा सब रख लिया ,कुछ रह तो नही गया .ऐसी हैं हमारी "बनी -ठनी".पतली पह्न्दी की क्रोकरी की तरह भरोसे बंद ,और पक्के रंग सी दृढ़ .तब हमें अपनी माँ भी याद आती है ,पिताजी भी .हमारी समधन का घर मेहमानों से खाली नहीं रहता .व्यक्ति वहीं जाता जहाँ हमारे पहुँचने पर ,कोई दिल से खुश होता है ,नाक भों नहीं सिकोड़ता .औरत घर को जोड़ती भी है ,तोड़ती भी औरत है .हमारी समधन ने हमारे समधी साहिब के घर को जोड़ा हुआ है ,वरना तो इतना बड़ा कुनबा है ,कितने भाई हैं हमारे समधी साहिब के ,लेकिन मेला यहीं लगता है .अनथक हैं हमारी समधन ,चाहे ,आधा कुंटल अनाज साफ़ करवालो ,चाहे सुबह से शाम तक खाना बनवालो .सबको गरम खाना परोसतीं हैं ,तन मन दोनों से संवृद्ध हमारी समधन इसीलियें तो हमने उनका नाम "बनिथनि "(सजी संवरी )रखा है .खूबसूरती सिर्फ़ तन की नहीं होती ,तन तो बहुतों का बेहिसाब सुंदर होता है ,लेकिन मन ?उनका मन और नाम दोनों जमुना है .सहेज के रख्खो ,संरक्षित करलो इनके जीवन खंडों (जींस )को .ये खानदानी लोग हैं ,याद रहतें हैं .

1 टिप्पणी:

Dr Ved Parkash Sheoran ने कहा…

smdhan ke guun gaate rhna
hammari bhee nmste khna