गुरुवार, 23 जुलाई 2009

ग़ज़ल :दुनिया आनी जानी देख ,,है ये बात पुराणी देख

दुनिया आनी जानी देख ,है ये बात पुरानी देख /फसल उजडती जाती है ,बादल दूंढ पानी देख /किस किसको हड़काता है ,एक दिन थोड़ा रूककर देख ,/अपने ढंग से चलती है ,दुनिया बहुत सयानी देख /छुटते-छुटते छूटती है ,बचपनकी नादानी देख /खेल बिगड़ता रहता है ,नदी ,आग और पानी देख /पहले जैसी आंच कहाँ ,रिश्ते तू बर्फानी देख /दुपहर की गर्मी भूल ,उतरी शाम सुहानी देख -मेरी ये पहली ग़ज़ल थी जो दैनिक ट्रिब्यून ,चंडीगढ़ से प्रकाशित हुई थी ,इसकी शल्य चिकित्सा डोक्टर .श्याम सखा श्याम ने की थी ,इसे ग़ज़ल का रूप आपने ही दिया था ,विचार और बिखरे अक्षर मेरे थे ,लय- ताल आपने ही दी ,इसे काफिया कहो या रदीफ़ ,मैं क्या जानू ,मैं क्या समझू ,हर पल मानू कल क्या होगा मैं क्या जानू /है अपना भी बेगाना सा / अब ये मानू -वीरेंदर शर्मा (वीरुभाई )