शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

क्या है ,प्राकृत चिकित्सा ?

हमारा ये भौतिक शरीर हमारी धरती का लघु रूप है ,जिस प्रकार आज पृथ्वी का आँचल नुचा -नुचा सा है ,हमारी करतूतों से ,इस ग्रह का प्राकृत संतुलन टूटने लगा है ,ठीक वैसे ही जब हमारी आतंरिक एवं बाहरी जीवन शैलियों का आपसी तारतम्य टूटने बिखरने लगता है ,तब हमारा ये भौतिक शरीर बीमार हो जाता है .लेकिन जब हम ये संतुलन अन्दर -बाहर का बनाए रखतें हैं ,तब बाहरी रोग -कारकों (पेथोजंस )के हमले को ये शरीर कुदरती इलाज़ के तहत झेल जाताहै ,और फलतया कुछ ही समय में रोग मुक्त हो जाता है .इस बाहरी संतुलन को बनाए रखने के लिए सादा भोजन (नियमित खुराख के तौर पर लिया जाना ज़रूरी है ),अलावा इसके १० -१२ गिलास ताज़ा पानी ,भरपूर नींद और आराम करना भी उतना ही लाजिमी है .हमारा धंधा -धौरी रुचिकर हो ,नियमित और सामर्थ्य के मुताबिक (उम्र के अनुकूल ) व्यायाम भी अपरिहार्य है .हमारा माहौल (पर्यावरण ) साफ़ सुथरा ,जीवन सोद्देश्य तथा सम्बन्ध सार्थक और अनुकूल हों .नशा पत्ता ना करें हम लोग .क्योंकि इस कायिक शरीर (काया )के अलावा हमारा एक सूक्ष्म शरीर भी है ।
यह निर्कायिक सूक्ष्म शरीर ही हमारी लाइफ फोर्स एनर्जी है ,जीवन ऊर्जा है ,चेतना है .अति सूक्ष्म मार्गों से ,मेरिदिअन्स से होकर प्रवाहित होती है ,ये संजीवनी -ऊर्जा .यही शरीर के बहु चर्चित ऊर्जा केन्द्र (पावर हाउसिस )हैं ,चक्र हैं .साधक इन्ही अवरुद्ध पड़े ,सुप्त मार्गो को खोल देता है ,अंत -तया ऊर्जा निर्बाध प्रवाहित होने लगती है ,और हमारा संवेगात्मक ,मानसिक और भौतिक संतुलन दोबारा कायम हो जाता है .यही और बस इतना ही तो है कुदरती इलाज़ का आधार .सभी प्राणियों में यही जीवन ऊर्जा ,कास्मिक सूप जीवन मृत्यु चक्र को चलाये हुए है .भौतिक पदार्थ (गोचर जगत ) ऊर्जा की विविध आव्रित्त्यों (फ्रिक्वेंसिज़ ) के कारण ही ठोस द्रव और विरलतम गैसीय रूप में मौजूद है .ठोस पदार्थ में परमाणु पास पास बने रहतें हैं ,अपना स्थान नहीं छोड़ सकते ,कम्पित ज़रूर होतें हैं ,लो फ्रिक्वेंसिज़ पर ,तरल (द्रव )और गैसीय अवस्था में उच्च आवृति का कम्पन है .बुद्धिस्म ,चाइनीज़ सिस्टम आफ मेडिसन ,वैदिक साइंस में इस ऊर्जा का समझ बूझ भरा संज्ञान है ,जान कारी है .हमारे पल्ले उतना नहीं पड़ता ये ज्ञान (जीवन -ऊर्जा संबोध ).परमात्मा भी तो यही परम जीवन ऊर्जा है ,असीम -अपार .सार्वकालिक सार्वदेशीय ,युनिवर्सल लाइफ फोर्स एनर्जी .सभी जीव रूपों में इसी ऊर्जा का स्पंदन है ,रूपायित है ,यही परम जीवन ऊर्जा .(गाड ).उसी के साथ योग ,मिलन ,कनेक्टिविटी प्रार्थना अर्चना -पूजा के ज़रिए प्राप्य है .यही स्वस्थ तन ,निरोग काया ,अद्ध्यात्मिक स्वास्थ्य की बुनियाद है .जब सुबह सवेरे खेत खलियानों ,दरिया के किनारे हम सैर करतें हैं तब इसी प्रकृति से होता है हमारा साक्षात् कार .तभी हमारा अन्दर बाहर का खोया टूटा तार जुड़ता है ,संतुलन कायम होता है .नियम ध्यान भी इसीलियें बहुत ज़रूरी है .प्रकिरती से हमारा तादात्मय होता है ,हम एक बड़ी कहानी का हिस्सा मात्र होतें हैं .हमारे सुप्त पड़े ऊर्जा केन्द्र खुल जातें हैं जागृत हो जातें हैं .हम तन और मन से ही नहीं आध्यात्मिक सेहत के भी मालिक बन जातें हैं .खुशी मन की एक अवस्था ही है ,बाहर नहीं हैं ,भौतिक जगत में उसकी प्रतिच्छाया है . शान्ति और आनंद अन्दर है ,मन के ,बाहर नहीं हैं .शोर का ना होना शान्ति नहीं हैं भ्रान्ति है .।

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