शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

घर आँगन में पूजा घर क्यों ?

पहले तक़रीबन सभी भारतीय घरों में एक पूजा घर ,एक मन्दिर होता था .परम्परा से जुड़े घरों में आज भी है ,कहीं कहीं आधुनिक कहे समझे जाने वाले घरों में भी है ,कईओं के लियें पूजा गृह एक दकियानूसी चीज़ है .घर में उनके बार और एकता कपूर के सिरिअल्स के लिए अलग कमरा है ,डाइनिंग है ,लाबी है ,बेडरूम हैं ,एक नहीं २-२ ,रेस्ट रूम हैं ,कई कई लेकिन पूजा गृह नहीं है ,इसका होना दकियानूसी होना या फ़िर गैर -ज़रूरी समझा जाता है .दरअसल पूजा घर हमें याद दिलाता है ,हमारा अपना घर भी जो इस धरती पर है ,पट्टे पर है ,उसकी मिलकियत है ,जो सभी आत्माओं का पिता (घर वाला पिता हमारी देह का पिता है )है ,असली मालिक हमारे घर का वही है ,हम अधिक से अधिक केअर टेकर हैं ,घर के मालिक नहीं हैं .ये विचार रस नहीं आता न सही ,कमसे कम वह हमारा खास मेहमान है ,इसीलियें जसे घर के अलग अलग कमरों को हम उनके उपभोक्ता के अनुरूप सजाकर एक आशियाना बनाते हैं ,वैसे ही पूजा घर का एक अलग माहौल रचते हैं,चंदन अगरु ,धूप -दीप ,देव मूर्तियाँ स्थापित करतें हैं ,मन्दिर का एक अलग संस्कार ,एक अलग स्पंदन होता है ,घरके सदस्यों द्वारा नित्य आरती वंदन एक वाइब्रेशन चोदता है ,और इसीलियें पूजा घर में आकर हमारा सारा तनाव कपूर की तरह उड़ जाता है ,आप जानतें हैं ,कपूर (केम्फर पुरा जल जाता है ,अवशेष नहीं छोड़ता ,कार्बन नहीं बचता ,पूर्ण दहन है ये )वैसे ही पूजा घर में हमारा "मैं -भावः ",सारा गुमान गल जाता है .जब कभी तनाव ग्रस्त हों पूजा घर में आकर सो जाएँ (नींद की गोलियाँ वेस्तिजिअल ओरगन (अपेंडिक्स ) की तरह फालतू हो जायेंगी .

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