रविवार, 19 जुलाई 2009

पिस्तकों ,कागजपत्रों ,जीवित प्राणियों को हम पाँव नहीं लगाते ,क्यों ?

पुस्तकें हमारे यहाँ सृष्ठी के आरम्भ से ही पूज्य रहीं हैं ,होमोसपिएंस (आधुनिक मानव ) ने भोज पत्रों को भी पूजा है ,फ़िर किताब तो ज्ञान का खजाना हैं ,सभी विद्या पूज्य रहीं हैं ,वर्गीकरण सुविधा की दृष्टि से ही किया गया है ,सभी ज्ञान विज्ञान ही तो है ,ज्योतिष हो या ज्योतिर्विज्ञान (खगोल विज्ञान या अस्त्रोनामी ),या फ़िर धार्मिक ग्रन्थ ,सभी स्तुत्य रहें हैं .ज्ञान की देवी ,सरस्वती है ,विद्या या किसी भी प्रकार की पढने पढाने के काबिल सामिग्री को pair नहीं लगाया जाता ,आकस्मिक तौर पर पाँवकर पड़ जाने पर तत्काल सामिग्री का स्पर्श क्षमा मांगी मांग ली जाती है हाथ का आंखों से mastak कर माफ़ करो "maaf karo विद्या देवी कह दिया जाता है .विद्या की देवी सरस्वती है ,इसीलियें मीठी वाणी बोलने वाले को कहा जाता है :इसकी वाणी में सरस्वती का वास है .और क्योंकि सभी प्राणियों में उसी देवता का वास है ,मानव और मानव देह सप्राण (लिविंग तेम्पिल ) मन्दिर हैं ,इसीलिए बच्चे बड़े किसी को भी पाँवसे छुना,स्पर्श करना वर्जित है ,देवता का अपमान है ,उस आत्मा का अपमान है देह जिसकी अमानत है ,मन्दिर है .ज्ञान को पवित्र माना गया है ,इसीलियें साल में एक मर्तबा कहीं विजय दसमी (दुशेहरा )के दिन तो कहीं सरस्वती पूजा दिवस पर तो कहीं अयोध्या दिवस पर पुस्तकें ,वाहन तथा संगीत वाद्य पूजे जातां हैं .ऊंचा बहुत ऊंचा और पाकीजा मुकाम हासिल रहा है ,विद्या को ,पुस्तक और तमाम पुस्तकीय सामिग्री को .बच्चो को आरम्भ से ही सिखाया जाता है :पुस्तकें आदरणीय हैं ,स्तुत्य हैं ,देवस्वरूप हैं .विद्या देवी है ,वन्द्य है .नालिज इकानामी की बात अब होने लगी है ,भारतीय समाज एक ज्ञान आधारित समाज रहा है .चाहें गीता बांचिये ,या पढिये पुराण(कुरान ),तेरा मेरा प्रेम ही हर पुटक का ज्ञान .

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