बुधवार, 10 अप्रैल 2013

Sweet seduction

मीठा विलोभ है, रोगकारी माया है चीनी .हो सकता है आपको इसकी लत भी पड़  चुकी हो .आइये देखते हैं क्या वास्तव में ऐसा ही है .मान लीजिये आपके पास एक चोकलेट चिप कुकी है बाद दोपहर  के चार बज रहें  हैं और आपको हुड़क उठ रही है तलब हो रही है इसे खाने की खाए बगैर आप रह ही नहीं सकते .आप तेज़ी से अपने स्थान से उठते हैं बेग खोलके इसे निकालते हैं और देखते ही देखते इसे चट कर जाते हैं .यदि रोज़ ब रोज़ ऐसा ही आपके साथ हो रहा है .आप चार बजे अपने को रोक नहीं पाते हैं कुछ मीठा  मीठा गड़प  कर लेने  से ,आप  sugar dependency की देहलीज़ पे खड़े हुए हो सकते हैं .

चिकनाई सने जंक फ़ूड की दिमाग को आदत पड़ने के बारे में कई अध्ययन   हो चुके हैं लेकिन चीनी के संभावित अ -वांछित खतरनाक परिणामों     की अक्सर अनदेखी ही की जाती रही है .मिठाई प्रेमियों मीठे खाद्यों के प्रति ललक रखने वाले लोगों पर किए गए अनेक सर्वेक्षणों से यह उजागर हुआ है इन पदार्थों के खा लेने के बाद ये लोग उत्तेजित हो जाते हैं मौज में आ जाते हैं .क्या इन्हें शुगर लती कहा जा सकता है ?

भारत में हर उत्सव मांगलिक पर्व पर मिठाई खाई जाती है .लड़का हुआ तो मिठाई खिलाओ ,इम्तिहान में पास हुए तो मिठाई खिलाओ नौकरी लगी है तो लड्डू खिलाओ ,पे ड़े खिलाओ .ज़ाहिर हैं यहाँ मीठे की लत पड़ने के मौके मौजूद रहते हैं .चिंता की बात यह है कौन कितनी शक्कर (चीनी )रोज़ गड़प लेता है इसका उसे इल्म ही नहीं है .

भारत में प्रतिव्यक्ति चीनी की खपत २ ० .२ किलोग्राम है जबकि भूमंडलीय स्तर पर आलमी स्तर पर यह औसतन २ ४ . ८ किलोग्राम है लेकिन भारत की चीनी के बाबत नीति तथा विश्व की शुगर इकोनोमी पर फिजी में २ ० १ २ में संपन्न शुगर कोंफरेंस में पता चला ,भारत में चीनी का चलन और सेवन आलमी औसत के बरक्स ज्यादा तेज़ी से बढ़ता जा रहा है .

गत पचास बरसों में भारत की शक्कर खपत पूर्व के ५ % से बढ़के १ ३ %पर आ गई है .यह १ ३ फीसद विश्वशक्कर उत्पादन का १ ३ % है .

क्या नुकसानी उठा सकते हैं आप शक्कर से ?

चीनी खाली (पोषण हीन ,पुष्टिकर तत्वों से शून्य )केलोरीज़ empty calories मुहैया कराती है .यह कृत्रिम नकली पोषण कहा जाएगा .बेशक इससे आपको एनर्जी (ऊर्जा )तो मिलती है लेकिन यह संपोषण के लिए आवश्यक आहार नहीं है .वास्तव में संशाधित चीनी में (शुगर मिल की चीनी )किसी भी प्रकार का कोई भी खनिज लवण (मिनरल )नहीं है .उलटे यह तो जोंक की तरह हमारे शरीर से मिनरल चूस लेती है .पोषक तत्वों को नष्ट कर देती है .

डॉ रॉबर्ट लुसटिंग बालरोगों  के स्रावी विज्ञानी हैं pediatric endocrinologist हैं केलिफोर्निया विश्वविद्यालय में .खुराक के विज्ञान पर आपकी शोध विश्वस्तरीय रही है .खुराकी विज्ञान के खुराक के हमारे शरीर पर पड़ने वाले असर के आप माहिर हैं .आपके अनुसार हमारी जुबां खट्टा ,मीठा ,तीखा ,नमकीन और रसीली (टमाटर जैसी जूसी ओमामी )चीज़ों के प्रति संवेद्य है .

Human tongue is sensitive to five tastes -sweet ,salty ,sour ,bitter and umami (tomatoes have lots of umami taste ).Sugar "covers up the  other four tastes .so you can't taste the negative aspects of foods ".

That's why ,he says ,'You can make dog poop taste good with enough sugar".

उमामी कहतें हैं रसीला को ,जूसी चीज़ को .मीठा ,नमकीन ,खट्टा ,तीखा तो आप जानते हैं उमामी नहीं किसी भी चीज़ में ज्यादा शक्कर डाल  दीजिये वह उमामी हो जायेगी चाहे फिर वह कुत्ते की बिष्टा (टट्टी ,छी छी )ही क्यों न हो .मीट भी दो तरह का होता है ड्राई और उमामी .रेड मीट ज्यादा उमामी  होता है .

सीमा निर्धारित कीजिये चीनी की रोजमर्रा की खपत की 

STICK TO A LIMIT 

यदि दिन भर में कई मर्तबा आपको मीठी चीज़ खाने की तलब होती है ललक बनी रहती है sugary snacks की तो इसे शुगर गुलामी ,चीनी की लत ही कहा जाएगा .भले आप इसे बुरी आदत (तलब )कहें,खानपान सम्बन्धी विकार ईटिंग डिसऑर्डर कहें ,या तलब आप मुश्किल में पड़ सकते हैं यदि ऐसा ही है और यह सब आगे भी ज़ारी रहता है  .

पुणे की पोषण विज्ञानी अमिता गाद्रे केलकर  कहतीं हैं मीठा हम सब पसंद करते हैं क्योंकि   बच्चे का प्राथमिक आहार स्तन पान मीठा होता है .इसीलिए बच्चे जन्म से ही मीठी चीज़ों के दीवाने होते हैं .फिर भी -

विश्व्यापी अनुशंषा के अनुसार महिलाओं को दिन भर में छ :तथा पुरूषों को आठ चम्मच से ज्यादा शक्कर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए .

भारतीयों के सन्दर्भ में यह परिसीमा पांच चम्मच प्रतिदिन ही बतलाई जाती है .क्योंकि भारतीयों के मधुमेह की चपेट में आने के मौके कुदरती तौर  पर ज्यादा रहते हैं .

"Since Indians have a higher tendency towards sugar intolerance and diabetes ,we should stick to no more than five teaspoons of added sugar per day ,"Kelkar suggests.

हम लोग रोज़ इस सीमा का अतिक्रमण करते हैं .ज़रा सोचिए दो क्रीम युक्त बिस्किट में ही चार चम्मच चीनी होती है .एक लिटर पेप्सी ,कोक आदि में १ ६ चम्मच चीनी रहती है .छोटी सी फ्रूटी में चार चम्मच चीनी रहती है .

(ज़ारी )

(गत चिठ्ठी ,पोस्ट  से आगे )


क्या चीनी एक लतिकारक पदार्थ है ?

IS IT ADDICTIVE ?

Princeton के एक मनोविज्ञानी (अब स्वर्गीय )Bart Hoebel ने अपने शोध कार्य से पहले पहल  यह प्रमाणित किया था की चीनी की भी लत पड़ जाती है यह एक लतिकारक पदार्थ है .आपकी रिसर्च टोली ने चूहों के दिमागी रसायन शाश्त्र पर चीनी के असर का अध्ययन किया था ,पता चला इसका दिमाग पर असर लतिकारक पदार्थों यथा हेरोइन (मार्फीन से उत्पन्न एक शक्तिशाली गैर -कानूनी नशीला पदार्थ )कोकेन ,मार्फीन और निकोटीन जैसा ही पड़ता है .

मनुष्यों में चीनी का सेवन  हमारे दिमाग में  एक जैव -रसायन Dopamine के स्राव को एड़ लगा देता है .यह जैव रसायन दिमाग के जिस हिस्से में बनता है वह किसी चीज़ की लत पड़ने के लिए जिम्मेवार समझा जाता है .लम्बी मैराथन दौड़ के धावक दौड़ के फ़ौरन बाद एक विशेष सुखानुभूति इसी जैवरसायन के स्राव की वजह से करते हैं .नशीली दवा के सेवन के बाद भी दिमाग को ऐसी ही अनुभूति (drug like high )होती है .समय के साथ दिमाग को उतनी ही आनन्दाभूति के लिए पहले से ज्यादा उतरोत्तर ज्यादा शुगर की ज़रुरत पड़ती जाती है .

RUSH OF SIMPLE CARBS

जब आप एक केक का टुकडा गप करते हैं ,तेज़ी से खाते हैं इसमें मौजूद सिम्पिल कार्बोहाइड्रेट जल्दी ही रक्त प्रवाह में शामिल होकर ग्लूकोज़ में तबदील  हो जाते हैं .सिम्पिल कार्बोहाइड्रेट (खासकर सिरप ,कोला पेय ,अमरीका में इसे तथा अन्य तमाम मीठे पेयों को ही सोडा कहते हैं ,मिठाई तथा टेबिल शुगर सिम्पिल कार्बोहाइड्रेट ही हैं )सीधे सीधे खाने पर देखते ही देखते हमारे खून में तैरती शक्कर(ब्लड शुगर ) का स्तर बढ़ जाता है . ब्लड शुगर लेविल्स के बढ़ने के साथ ही इन्सुलिन का स्तर भी बढ़ जाता है जो इस अतिरिक्त शक्कर को ठिकाने लगाने के बाद भी खुद उच्च स्तर पर बना रहता है .नतीजा होता है ब्लड शुगर के स्तर का आगे और भी गिर जाना .अब आप को फिर तलब होती है वैसी ही जो केक का टुकड़ा खाने के पहले हुई था .आप और केक खाते हैं ,खून में पहले शक्कर फिर इन्सुलिन का स्तर फिर बढ़ता है .फ़ालतू शक्करफिर ठिकाने लग जाती है .इन्सुलिनका स्तर उच्च ही बना रहता है .फिर ब्लड शुगर में डिप फिर तलब और बस आप एक दुश्चक्र में फंस जाते हैं .इस तरह आप का मूढ़ 'हाई' और 'लो' होता रहता है .बस यही तो है क्रेविंग ललक ,लत .

(ज़ारी )






14 टिप्‍पणियां:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

चीनी के दांत खट्टा करता चिंतनीय विश्‍लेषण। निश्‍चय ही अति चीनी निर्भरता, शरीर परिश्रम और सन बाथ के बिना प्राणघातक है।

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

छुपी हुई मात्रा ज्यादा जाती है .....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

ना खाइये , ना पीजिये , बस मीठा मीठा बोलिए।
बहुत अच्छी काम की बातें बताई हैं चीनी के बारे में।
चीनी कभी रास न आयेगी / आयेंगे।

रविकर ने कहा…

यथार्थ-
आभार भाई जी-

SM ने कहा…

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

चीनी के प्रति मोह के लिए जागरूक करता लेख

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
नवसम्वत्सर-२०७० की हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

क्या करें हम, हमें तो भोजन के बाद मिठाई सूझती है।

Rajendra kumar ने कहा…

चीनी के बिना जीवन में मिठास ही नही,यहीं ज्यादतर की सोंच है इसके नुकसान के बारे में भी जानना चाहिए,बेहतरीन आलेख.

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

अधिक शक्कर की मिठास अंत में जीवन को कड़ुआहट ही देती है-अच्छा सावधान कर दिया आपने !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

Bahut upyogi salah aur jankari mili

Ramram

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मीठी चीनी भी कितनी कड़वी होती है ...
बहुत काम की बातें ... तथ्यों के साथ ...
वाह जी वाह ... राम राम जी ..

Anita ने कहा…

सुना था कई बार चीनी मीठा जहर है..आज पढ़ भी लिया..कल अनुभव में भी आ ही जायेगा...