बच्चों में बढ़ रहा है मोटापा
सायन अस्पताल मुंबई के डॉक्टरों द्वारा संपन्न एक सर्वेक्षण अध्ययन के मुताबिक़ स्कूल के बच्चों में मोटापे का ट्रेंड देखने में आया है .खासकर स्कूल जाने वाले लड़कों में .दमा (asthma)और पुष्टिकर तत्वों की कमी से भी कितने ही नौनिहाल ग्रस्त पाए गए हैं .
अध्ययन कोलाबा और सायन के एक एक स्कूल से ताल्लुक रखता है .लेकिन स्कूल जाने वाले नौनिहालों की व्यापक स्तर पर आम तौर पर कमज़ोर सेहत तथा कबाड़िया बासा भोजन से चिपके रहने का यह एक प्रमाण और नतीजा दोनों है .
फरवरी २ ० १ ३ से मार्च २ ० १ ३ के दरमियान २ ,१ ० ० बच्चों की सेहत की पड़ताल की गई .आने वाले महीनों में और भी बच्चों की सेहत की जांच की जायेगी .
पता चला कोलाबा स्कूल के ५ - १ ५ साला बालकों और किशोर किशोरियों में ४ १ फीसद लड़के मोटापे की गिरिफ्त में हैं जो कक्षा १ से लेकर कक्षा ९ में पढ़ रहें हैं .
कुल ५ ९ ६ बालकों में ४ ५ फीसद को किसी न किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से ग्रस्त पाया गया .इनमें से २ ३ फीसद में श्वशन सम्बन्धी समस्या (respiratory problems ),तथा ४ .८ फीसद में दमा रोग पाया गया .
प्राइवेट स्कूल के कुछ बच्चे कुपोषण से ग्रस्त मिले .
सायन के राजकीय सहायता से चलने वाले स्कूल में १ ५ ६ ८ बालकों में से १ ० से १ ४ साला नौनिहालों को अपने माँ बाप द्वारा पर्याप्त पोषण नहीं मिल पा रहा था ,इनमें से २ १ फीसद कुपोषित थे .जबकि इनमें भी २ . ३ फीसद मोटापे की चपेट में थे .
अलावा इनके १ ३ फीसद और नौनिहाल खून की कमी से ग्रस्त थे .९ फीसद श्वशन सम्बन्धी दिक्कतों से .इन १ , ५ ६ ८ बालकों में से ६ ० फीसद कक्षा ५ से लेकर आठवीं में पढ़ रहे थे .
सायन अस्पताल की बचावी एवं सामाजिक चिकित्सा की माहिरा डॉ सुजाता पॉल के अनुसार मोटापे की दर सायन स्कूल के नौनिहालों में कमतर थी क्योंकि स्कूल में आउट डोर एक्टिविटीज़ को ज्यादा तवज्जो दी जाती है ..
लेकिन इनके पोषण का स्तर गया बीता ,कमज़ोर बहुत पूअर रहा है .लेकिन बालपन का मोटापा इसके बरक्स ज्यादा गंभीर समस्या समझा जाता है .
विश्वस्वास्थ्य संगठन के अनुसार ३ ० या ३ ० से ऊपर बॉडी मॉस इंडेक्स वाला व्यक्ति ओबीस माना जाता है .
बॉडी मॉस इंडेक्स =आपकी तौल (किलोग्राम )/हाईट (मीटर में )x हाईट (मीटर में )
यह अनुपात है आपके वजन (तौल जो किलोग्राम में लिखी जाए )और आपकी हाईट मीटर में लिखी हुई का वर्ग का .
BMI is defined as the ratio of body weight in kg and height expressed in meter squared.
ओबीस या फिर ओवरवेट बच्चे वयस्क(बालिग़ ) होने पर तौल से सम्बंधित समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं .मधुमेह होने का ख़तरा भी इनके लिए बढ़ जाता है .तथा दिल और ब्लड वेसिल्स (दिल और धमनी ,खून ले जाने वाली नालियों के रोग कार्डियोवैस्कुलर डिजीज )के रोग भी बालिग़ होने पर जल्दी ही सिर उठाने लगते हैं .
कोलाबा स्कूल में मोटापे की उच्चतर दर के बारे में डॉ पोल कहतीं हैं -पूछने पर इल्म हुआ इस स्कूल के बच्चे एक पेकिट चिप्स (आलू चिप्पड़ )का रोज़ खाते हैं . अलावा इसके जंक फ़ूड भी इनकी खुराक में शामिल रहता है .
ये बच्चे या तो घर पे अध्ययन करते हैं या फिर टी वी देखते हैं .कसरत ,किसी भी किस्म की जिस्मानी हरकत इनमें बहुत कम है .
एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट से सम्बद्ध डॉ आशीष कोनट्रेकटर (Preventive Cardiologist )कहते हैं :बालकों में बढ़ते मोटापे के लिए इनके माँ बाप को कुसूरवार ठहराया जाना चाहिए .माँ बाप में आम तौर पर यह लाड़ चाव (प्रवृत्ति )रहता है मेरा बच्चा सब कुछ चखे .खाए पिए खूब .कोई ललक न बाकी रहे उनमे खाने पीने को लेकर .सारी समस्या की जड़ यही प्रवृत्ति है .
आपके अनुसार ५ से १ ५ साल ही वह उम्र में जिसमें बच्चों का खानपान को लेकर एक रुझान तय हो जाता है .स्वास्थ्य कर खानपान की आदत पड़ने की यही विधाई उम्र है .घडी की सुइयों को इसके बाद पीछे की और च -लाना बड़ा मुश्किल होता है .
स्कूल में भौतक गतिविधियों को पर्याप्त जगह और समय दिया जानी चाहिए .स्कूल की कैंटीन केवल स्वास्थ्यकर आहार और खाद्य पदार्थ ही बालकों को मुहैया करवाए यह आज ज़रूरी है .
बालरोगों की माहिरों की भारतीय आकदमी ने(The Indian Academy of Paediatricians) मोटापे को लगाम देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया है .मोटापा न सिर्फ अनेक रोगों की वजह बनता है खुद में भी एक रोग है यही कहना है बालरोगों के माहिर तथा उक्त अकादमी के पूर्व मुखिया डॉ रोहित अग्रवाल का .
(ज़ारी )
सायन अस्पताल मुंबई के डॉक्टरों द्वारा संपन्न एक सर्वेक्षण अध्ययन के मुताबिक़ स्कूल के बच्चों में मोटापे का ट्रेंड देखने में आया है .खासकर स्कूल जाने वाले लड़कों में .दमा (asthma)और पुष्टिकर तत्वों की कमी से भी कितने ही नौनिहाल ग्रस्त पाए गए हैं .
अध्ययन कोलाबा और सायन के एक एक स्कूल से ताल्लुक रखता है .लेकिन स्कूल जाने वाले नौनिहालों की व्यापक स्तर पर आम तौर पर कमज़ोर सेहत तथा कबाड़िया बासा भोजन से चिपके रहने का यह एक प्रमाण और नतीजा दोनों है .
फरवरी २ ० १ ३ से मार्च २ ० १ ३ के दरमियान २ ,१ ० ० बच्चों की सेहत की पड़ताल की गई .आने वाले महीनों में और भी बच्चों की सेहत की जांच की जायेगी .
पता चला कोलाबा स्कूल के ५ - १ ५ साला बालकों और किशोर किशोरियों में ४ १ फीसद लड़के मोटापे की गिरिफ्त में हैं जो कक्षा १ से लेकर कक्षा ९ में पढ़ रहें हैं .
कुल ५ ९ ६ बालकों में ४ ५ फीसद को किसी न किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से ग्रस्त पाया गया .इनमें से २ ३ फीसद में श्वशन सम्बन्धी समस्या (respiratory problems ),तथा ४ .८ फीसद में दमा रोग पाया गया .
प्राइवेट स्कूल के कुछ बच्चे कुपोषण से ग्रस्त मिले .
सायन के राजकीय सहायता से चलने वाले स्कूल में १ ५ ६ ८ बालकों में से १ ० से १ ४ साला नौनिहालों को अपने माँ बाप द्वारा पर्याप्त पोषण नहीं मिल पा रहा था ,इनमें से २ १ फीसद कुपोषित थे .जबकि इनमें भी २ . ३ फीसद मोटापे की चपेट में थे .
अलावा इनके १ ३ फीसद और नौनिहाल खून की कमी से ग्रस्त थे .९ फीसद श्वशन सम्बन्धी दिक्कतों से .इन १ , ५ ६ ८ बालकों में से ६ ० फीसद कक्षा ५ से लेकर आठवीं में पढ़ रहे थे .
सायन अस्पताल की बचावी एवं सामाजिक चिकित्सा की माहिरा डॉ सुजाता पॉल के अनुसार मोटापे की दर सायन स्कूल के नौनिहालों में कमतर थी क्योंकि स्कूल में आउट डोर एक्टिविटीज़ को ज्यादा तवज्जो दी जाती है ..
लेकिन इनके पोषण का स्तर गया बीता ,कमज़ोर बहुत पूअर रहा है .लेकिन बालपन का मोटापा इसके बरक्स ज्यादा गंभीर समस्या समझा जाता है .
विश्वस्वास्थ्य संगठन के अनुसार ३ ० या ३ ० से ऊपर बॉडी मॉस इंडेक्स वाला व्यक्ति ओबीस माना जाता है .
बॉडी मॉस इंडेक्स =आपकी तौल (किलोग्राम )/हाईट (मीटर में )x हाईट (मीटर में )
यह अनुपात है आपके वजन (तौल जो किलोग्राम में लिखी जाए )और आपकी हाईट मीटर में लिखी हुई का वर्ग का .
BMI is defined as the ratio of body weight in kg and height expressed in meter squared.
ओबीस या फिर ओवरवेट बच्चे वयस्क(बालिग़ ) होने पर तौल से सम्बंधित समस्याओं से ग्रस्त हो जाते हैं .मधुमेह होने का ख़तरा भी इनके लिए बढ़ जाता है .तथा दिल और ब्लड वेसिल्स (दिल और धमनी ,खून ले जाने वाली नालियों के रोग कार्डियोवैस्कुलर डिजीज )के रोग भी बालिग़ होने पर जल्दी ही सिर उठाने लगते हैं .
कोलाबा स्कूल में मोटापे की उच्चतर दर के बारे में डॉ पोल कहतीं हैं -पूछने पर इल्म हुआ इस स्कूल के बच्चे एक पेकिट चिप्स (आलू चिप्पड़ )का रोज़ खाते हैं . अलावा इसके जंक फ़ूड भी इनकी खुराक में शामिल रहता है .
ये बच्चे या तो घर पे अध्ययन करते हैं या फिर टी वी देखते हैं .कसरत ,किसी भी किस्म की जिस्मानी हरकत इनमें बहुत कम है .
एशियन हार्ट इंस्टिट्यूट से सम्बद्ध डॉ आशीष कोनट्रेकटर (Preventive Cardiologist )कहते हैं :बालकों में बढ़ते मोटापे के लिए इनके माँ बाप को कुसूरवार ठहराया जाना चाहिए .माँ बाप में आम तौर पर यह लाड़ चाव (प्रवृत्ति )रहता है मेरा बच्चा सब कुछ चखे .खाए पिए खूब .कोई ललक न बाकी रहे उनमे खाने पीने को लेकर .सारी समस्या की जड़ यही प्रवृत्ति है .
आपके अनुसार ५ से १ ५ साल ही वह उम्र में जिसमें बच्चों का खानपान को लेकर एक रुझान तय हो जाता है .स्वास्थ्य कर खानपान की आदत पड़ने की यही विधाई उम्र है .घडी की सुइयों को इसके बाद पीछे की और च -लाना बड़ा मुश्किल होता है .
स्कूल में भौतक गतिविधियों को पर्याप्त जगह और समय दिया जानी चाहिए .स्कूल की कैंटीन केवल स्वास्थ्यकर आहार और खाद्य पदार्थ ही बालकों को मुहैया करवाए यह आज ज़रूरी है .
बालरोगों की माहिरों की भारतीय आकदमी ने(The Indian Academy of Paediatricians) मोटापे को लगाम देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया है .मोटापा न सिर्फ अनेक रोगों की वजह बनता है खुद में भी एक रोग है यही कहना है बालरोगों के माहिर तथा उक्त अकादमी के पूर्व मुखिया डॉ रोहित अग्रवाल का .
(ज़ारी )
7 टिप्पणियां:
गंभीर समस्या ...यह कई और रोगों को न्योता देती है
Bahut hi chintajanak sthiti hai
Ramram
मोटापे के कारण कई रोग होते हैं..लेकिन हर माँ को तो अपना बच्चा दुबला-पतला ही दिखता है..
आज बच्चों में मोटापा एक गम्भीर समस्या बनी हुई है,शुरूआती स्टेज में यदि सम्भाल ले तो हद तक काबू पाया जा सकता है.बेहतरीन आलेख.
मोटापा समस्या का कारण तो है ही। खासकर बच्चे इसकी गिरप्त में हों तो स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएं और बढ़ जाती हैं। उपयोगी आलेख।
बेहद उपयोगी जानकारी देता आलेख...
आभार
शरीर हल्का रहे तो स्फूर्ति बनी रहती है।
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