मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

शोध की खिड़की :चींटियाँ भूकंप को एक दिन पहले ही ताड़ लेती हैं

चींटियाँ भूकंप को एक दिन पहले ही ताड़ लेती हैं .जलजले के गुजर जाने के बाद भी इनके व्यवहार में परिवर्तन देखा जा सकता है .इनका दैनिक व्यवहार भू -दोलन के अगले चौबीस घंटे तक बदला रहता है .

जर्मन शोधकर्ताओं ने पता लगाया है ,चींटियाँ अपनी आवासीय कोलोनियाँ सक्रीय भ्रंश (Active faults )और चट्टानी दरारों (fractures )के गिर्द ही बनाती हैं .इन्हीं भ्रंश और दरारों में भू -कंप के दौरान फटन पैदा होती है .

जर्मनी के भू -विज्ञानियों ने जर्मन फाल्ट के गिर्द लाल चींटियों की एक किस्म (Red wood ants)के पंक्ति बद्ध १ ५ ० ० टीले अपने प्रेक्षण  में लिए हैं ,गौर से देखें हैं .

जर्मनी के Duisburg -Essen विश्वविद्यालय के Gabriele Berberich इस अभिनव शोध के अगुवा रहे हैं .२ ० ० ९ -२ ० १ २ की अवधि में यहाँ भू -कंप मापियों ने २ से लेकर ३ . २ ताकत (अंकों )के दस भू -कंप  (रिख्तर पैमाने पर ) दर्ज़  किए थे .अलावा इसके कितने ही कम शक्ति के भू -कंप भी इस अवधि में यहाँ आये हैं .

पता चला चींटियाँ अपने व्यवहार में केवल तब तबदीली लाती हैं जब ज़लज़ला रिख्तर पैमाने पर दो से ज्यादा अंक लिए रहता है .

दिन में चींटियाँ अपनी  सामान्य चर्या में रहतीं हैं  लेकिन रात होने पर इन्हें अपने टीलों से बाहर निकलते नहीं देखा गया है  .

लेकिन ज़लज़ले से पहले इन्हें अपने टीलों से बाहर निकल रात भर जागरण करते देखा गया .

पता चला ये नन्ने से कीट गैस स्राव में होने वाले बदलावों को ताड़ लेते हैं .पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले स्थानीय बदलाव भी ये भांप लेते हैं .

दूरी के साथ कार्बनडायआक्साइड के उत्सर्जन में आने वाले बदलाव (Carbon dioxide gradients )को ताड़ने के लिए ये कीट chemo-receptors (रासायनिक अभिग्राही )तथा विद्युत्चुम्बकीय क्षेत्रों (electromagnetic fields ) में भू -कंप से पैदा स्थानीय बदलावों  को चुम्बकीय अभिग्राहियों से जान लेते हैं .

सन्दर्भ -सामिग्री :-Ants can sense quakes a day before they strike /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,APRIL 15 ,2013 /P15

शोध की खिड़की  :क्या सोने के पेड़ लगाए जा सकतें हैं ?खेती की जा 

सकती है सोने की ?


क्या सोने के बाग़ लगाए जा सकते हैं ?

क्या सोने के पेड़ लगाए जा सकतें हैं ?रिसर्च कुछ कुछ इसी दिशा में इशारा कर रही है .इस कृषि प्रोद्योगिकी के

तहत पौधों पेड़ों की जड़ें सीधे सीधे मिट्टी  से ही स्वर्ण तत्व अवशोषित कर लेंगी .बेशक स्वर्ण धातु पानी में

अविलेय (अघुलनशील )रहती है (अलबत्ता दो तेजाबों हाइड्रोक्लोरिक तथा नाइट्रिक अम्लों को एक ख़ास

अनुपात ३:१ में मिलाने से जो घोल बनता है उसी में सोना घुलता है ,गली मोहल्ले में कई ठग स्वर्ण आभूषणों

को चमकाने की आड़ में इसी तरकीब से सोना लूट के ले जाते हैं जब तब ).

विज्ञानी अपने शोध कार्य से अब यह इशारा कर रहें हैं कुछ ख़ास परिश्थिति में स्वर्ण को जल में घुलनशील भी

बनाया जा सकता है .प्रकृति ने कुछ ऐसे पेड़ पौधे बनाए हैं जो निकिल ,केडमियम ,जिंक जैसे धातु अपनी जड़ों

द्वारा मिटटी से ही चूस लेते हैं .इन्हें हाइपरएक्युमलेटर (Hyper accumulators )कहा जाता है .अलबत्ता प्रकृति

में अभी ऐसे ही  गोल्ड एक्युमलेटर्स होने की कोई इत्तला नहीं है .

अब एक पर्यावरणी भू -रसायनज्ञ  Chris Anderson गोल्ड एक्युमलेटर्स पैदा कर लेने की ताक  में हैं .आप

Massey University ,New Zealand में शोध रत हैं .

बतलाते चलें आपको रसायन शाश्त्र का एक ऐसा अ -वैज्ञानिक दौर भी रहा है मध्यकालीन जब कीमियागर

(alchemist )अन्य सभी धातुओं को स्वर्ण में तब्दील करने की ,महाऔषधि (सुधा ,अमृत )बना लेने की बात

करते थे जो सब रोगों के लिए न सिर्फ राम बाण सिद्ध होगी अमृत्व भी प्रदान करेगी .लेकिन वैसा कुछ हुआ नहीं

.पारस मणि का मिथक भी मौजूद रहा आया है पारस पत्थर का भी .

बेशक अल्म्युनियम को उस पर कुछ नाभिकीय कणों  की  ज़ोरदार बमबारी करके स्वर्ण में तब्दील किया जा

सकता है लेकिन इस प्रक्रिया में ऊर्जा निवेश कुल खर्चा (इनपुट )प्राप्त स्वर्ण की मात्रा से बहुत अधिक होगा .यूं

समझ लीजिये जो स्वर्ण धातु आज ३ ० , ० ० ० रूपये में दस ग्राम उपलब्ध हो सकती उसे प्राप्त करने में इस

नाभिकीय प्रोद्योगिकी से लाखों रूपये लग जायेंगे .

यही बात समुन्दर के खारे पानी को पेय बनाने वाली प्रोद्योगिकी के रास्ते में बाधा के रूप में खड़ी हुई है वरना

प्रोद्योगिकी का सारा

तामझाम आज मौजूद है .एलिक्सिर आफ लाफ बना लेने की ताक  में भी विज्ञानी लगे हुए हैं .

देखना है सोने के पेड़ लगते भी हैं या नहीं ,लगेंगे भी तो कब लगेंगे ?

सन्दर्भ -सामिग्री :-Can gold be harvested from plants ?/SHORT CUTS/THE TIMES OF INDIA,MUMBAI ,APRIL 14 ,2013 P23

7 टिप्‍पणियां:

सदा ने कहा…

बेहतरीन प्रस्‍तुति
आभार

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत कुछ सीखा जा सकता है, जाना जा सकता है दूसरे जीव जंतुओं से भी ...
अच्छी जानकारी साझा की है आपने ... राम राम जी ...

Madan Mohan Saxena ने कहा…

अच्छी जानकारी .बेहतरीन प्रस्‍तुति.आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सबसे गये गुज़रे हम मानव ही, जिसे प्रकृति बस आश्चर्य चकित कर देती है।

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन जानकारी,अभी अभी यहाँ uae में भूकम्प के झटके महसूस किया गया है.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत रोचक और उपयोगी जानकरी मिली, आभार.

रामराम.

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बेहतरीन जानकारी देता रोचक आलेख,,,आभार,
RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.