Spare the rod ,spare the child
पेरेंटिंग के उद्भव और विकास का प्रत्यक्ष प्रमाण है दो पीढ़ियों के बीच बढ़ते फासले ,चीज़ों को देखने का नज़रिया .मूल्य बोध .
गुजिस्ता पीढ़ी के माँ बाप बच्चों को डरा धमका के पढ़ने लिखने को प्रेरित करते थे .तुलसी बाबा भी लिख गए भय बिन होत न प्रीत गुसाईं .Spare the rod and spoil the child .बोले तो Read ,beat and teach technique.Scare and inspire .
आज की यम्मी मम्मियां बच्चों को बहु -विध चयन की आज़ादी देती हैं हरेक चीज़ के लिए खाने पीने की चीज़ों से लेकर पढ़ाई तक .
Today's Yummy Mummies follow an MCQ (Multiple Choice Questions For Every Task )format of parenting .
इस तरह शुरू होता है यम्मी मम्मियों का दिन .क्या खाओगे बच्चों नाश्ते में ?दिन कुछ इस तरह संपन्न हो सकता है 'Would you like a nightcap?'
इस तरह की कोई सख्त चौकसी खाने पीने के मामले में बच्चों की नहीं की जाती :अंडा फ़ौरन खत्म करो अभी की अभी ,पूरा खाओ ,छोड़ों मत .पूरा दूध खत्म करो .एक ग्लास दूध भी नहीं पी सकते .इत्ता सा तो ग्लास है .अगर तुमने सारे पाठ नहीं पढ़े तो छड़ी से पिटाई होगी .
आजकल बालक वृन्द सम्मान प्राप्त आदरणीय इकाई हैं .पहले बच्चे माँ बाप का आदर करते थे अब माँ बाप बच्चों को सम्मान देते हैं .पहले बच्चे माँ बाप की सीमाओं उनके अभावों के बीच खुद को ढाल लेते थे .पिटाई हो जाने पर अपनी गलती भी मान लेते थे भले गलती न भी हो .यही कहना है मनोरोगों के माहिर हरीश शेट्टी साहब का .देखते ही देखते पेरेंटिंग की शैली में ज़मीन आसमान का अंतर आ गया है .अब माँ बाप बच्चों से आदेश लेते हैं .पूछते हैं क्या करना है कहाँ चलना है .
"There is democracy in the air which is a good thing ,"shetty says ,adding today's parenting is all about "sharing and touching ".
Nirali Sanghi ,who manages a parenting websight ,points out that Indian parenting used to be a lot more authoritative ,similar to the Tiger Mom style that best -selling author Amy Chua wrote about ."We also believed in discipline .But while we do not necessarily drive the kids to achieve something ,now it is evolving towards achievements ,while authority has greatly been reduced ,"says Sanghi .
माँ बाप के आदेशात्मक आज्ञामूलक स्वर मंद्धिम पड़ते गए हैं .गुजिस्ता दिनों की टाइगर माम विलुप्त प्राय हैं .अब माँ बाब की आज्ञा लेने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती .उन्हें सूचित किया जाता है -हम फलानी जगह जा रहे हैं .उनके आदेश देने और उसका पालन कराने का अधिकार छीजता गया है .
If old is not gold ,is the new style of parenting right ?
निश्चयपूर्वक इस बाबत माहिर कुछ नहीं कह पा रहे हैं .चयन करने की आज़ादी का उपभोग करते करते बच्चों को अपनी हदों के बारे में इल्म नहीं रहता है .प्रजातांत्रिक चयन तथा ज़रुरत से ज्यादा बच्चे की देखभाल करने के बीच की विभाजक रेखा कभी भी टूट सकती है .बच्चे इसका कभी भी अतिक्रमण कर सकते हैं .बेहद का सर पे बच्चों को चढ़ाना कहाँ तक वाजिब है ?
बच्चे की हर छोटी उपलब्धि पर आप उसे आसमान से तारे तोड़के दे सकते हैं ?जबकि वह धीरे धीरे यही चाहने लगता है यह अधिक और बढ़िया देखभाल ज़रुरत से ज्यादा लाड़ का भी नतीजा हो सकता है .
Psychologist Varkha Chulani says it's an age of the 'walking -on -eggshell parents .Parents want to be friends with their children ,and be easy -going ,not judgmental ."But ultimately ,we as parents have to bring up children to be healthy and intelligent"she adds.
eggshell parents को हर क्षण इस बात के प्रति चौकस रहना पड़ता है कहीं उनके बच्चे नाराज़ न हो जाएँ .छोटी सी बात पे ही ज्यादा लाड़ प्यार अतिरिक्त देखभाल में पले -बढ़े बच्चे बिफर सकते हैं .
आजकल के माँ बाप बच्चे की न तो जल्दी से आलोचना करते हैं न आदेश मूलक फैसला सुनाते हैं दोस्ताना रवैया रहता है उनका बालकों के संग हर मामले में .लेकिन आखिरकार हमें बच्चों की पालना ऐसे करनी पड़ती जिससे वह स्वस्थ भी बनें बुद्धमान भी कुशला बुद्धि भी .
क्या पेरेंटिंग (पालना )के इस छोर पर पड़े माँ बाप ऐसा कर पा रहे हैं ?पढ़िए अगली किश्त में .
(ज़ारी )
पेरेंटिंग का एक छोर यह भी है (II)
बाल रोगों के माहिर डॉ संदीप केलकर साहब इन दिनों मुंबई में माँ बाप और उनके बच्चों के लिए एक वर्कशाप चला रहे हैं .इसमें सारा फोकस सारा ध्यान बच्चों के संवेगात्मक कोशांक (EMOTIONAL QUOTIENT)के महत्व को दिया जा रहा है .
बकौल आपके माँ बाप को जोर शोर से आक्रामकता के साथ बच्चों से अपेक्षा रखने उनपे दवाब बनाए रहने और प्रत्याशा रखने के बीच क्या फर्क है इसका ज़रा भी इल्म नहीं हैं .
"दो धुर सिरे बन चुकें हैं पालना के ,परवरिश के ,पेरेंटिंग के जो मैं अपनी प्रेक्टिस के दरमियान देख रहा हूँ .जोर शोर से मांग बनाए रखने वाले माँ बाप अपने ख़्वाबों को अपने बच्चों में साकार होते देखना चाहते हैं
दूसरा छोर उन पालकों का है जो फख्र से कहतें हैं -हम न कोई अपेक्षा रखते हैं बच्चों से न उन पे किसी किस्म का दवाब ही बनाते हैं .वह अपने बच्चों को पढ़ाई करने के लिए कहने का भी कभी उन पर दवाब नहीं डालतें हैं .बच्चे से बस इतना पूछा जाता है क्या वह नृत्य का अभ्यास करना चाहता है .स्केटिंग के लिए जाना चाहता है .स्वीमिंग के लिए जाना चाहता है .उसे न कहने करने की छूट होती है .
कहीं बच्चे अतिरिक्त दवाब डालने पर अवसाद ग्रस्त न हो जाए आत्म हन्ता न बन जाएं ,आत्म ह्त्या न कर बैठें यही डर इन पालकों को बालकों के प्रति सॉफ्ट बनाए रखता है .नरम रवैया रखते हैं यह बच्चों के प्रति .
"What parents don't understand is that we ,as parents can have expectations from our children .We can expect them ,for instance ,to study well or give their best in a sport they want to pursue ,"said Dr Kelkar.
ज़ाहिर है बच्चों से प्रत्याशा रखना बुरा नहीं हैं .यह अपेक्षा भी की ही जाती है ,वह ठीक से पढ़ाई करें ,खेल कूद ,इतर शौक में बढ़िया प्रदर्शन करें .
(समाप्त )
पेरेंटिंग के उद्भव और विकास का प्रत्यक्ष प्रमाण है दो पीढ़ियों के बीच बढ़ते फासले ,चीज़ों को देखने का नज़रिया .मूल्य बोध .
गुजिस्ता पीढ़ी के माँ बाप बच्चों को डरा धमका के पढ़ने लिखने को प्रेरित करते थे .तुलसी बाबा भी लिख गए भय बिन होत न प्रीत गुसाईं .Spare the rod and spoil the child .बोले तो Read ,beat and teach technique.Scare and inspire .
आज की यम्मी मम्मियां बच्चों को बहु -विध चयन की आज़ादी देती हैं हरेक चीज़ के लिए खाने पीने की चीज़ों से लेकर पढ़ाई तक .
Today's Yummy Mummies follow an MCQ (Multiple Choice Questions For Every Task )format of parenting .
इस तरह शुरू होता है यम्मी मम्मियों का दिन .क्या खाओगे बच्चों नाश्ते में ?दिन कुछ इस तरह संपन्न हो सकता है 'Would you like a nightcap?'
इस तरह की कोई सख्त चौकसी खाने पीने के मामले में बच्चों की नहीं की जाती :अंडा फ़ौरन खत्म करो अभी की अभी ,पूरा खाओ ,छोड़ों मत .पूरा दूध खत्म करो .एक ग्लास दूध भी नहीं पी सकते .इत्ता सा तो ग्लास है .अगर तुमने सारे पाठ नहीं पढ़े तो छड़ी से पिटाई होगी .
आजकल बालक वृन्द सम्मान प्राप्त आदरणीय इकाई हैं .पहले बच्चे माँ बाप का आदर करते थे अब माँ बाप बच्चों को सम्मान देते हैं .पहले बच्चे माँ बाप की सीमाओं उनके अभावों के बीच खुद को ढाल लेते थे .पिटाई हो जाने पर अपनी गलती भी मान लेते थे भले गलती न भी हो .यही कहना है मनोरोगों के माहिर हरीश शेट्टी साहब का .देखते ही देखते पेरेंटिंग की शैली में ज़मीन आसमान का अंतर आ गया है .अब माँ बाप बच्चों से आदेश लेते हैं .पूछते हैं क्या करना है कहाँ चलना है .
"There is democracy in the air which is a good thing ,"shetty says ,adding today's parenting is all about "sharing and touching ".
Nirali Sanghi ,who manages a parenting websight ,points out that Indian parenting used to be a lot more authoritative ,similar to the Tiger Mom style that best -selling author Amy Chua wrote about ."We also believed in discipline .But while we do not necessarily drive the kids to achieve something ,now it is evolving towards achievements ,while authority has greatly been reduced ,"says Sanghi .
माँ बाप के आदेशात्मक आज्ञामूलक स्वर मंद्धिम पड़ते गए हैं .गुजिस्ता दिनों की टाइगर माम विलुप्त प्राय हैं .अब माँ बाब की आज्ञा लेने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती .उन्हें सूचित किया जाता है -हम फलानी जगह जा रहे हैं .उनके आदेश देने और उसका पालन कराने का अधिकार छीजता गया है .
If old is not gold ,is the new style of parenting right ?
निश्चयपूर्वक इस बाबत माहिर कुछ नहीं कह पा रहे हैं .चयन करने की आज़ादी का उपभोग करते करते बच्चों को अपनी हदों के बारे में इल्म नहीं रहता है .प्रजातांत्रिक चयन तथा ज़रुरत से ज्यादा बच्चे की देखभाल करने के बीच की विभाजक रेखा कभी भी टूट सकती है .बच्चे इसका कभी भी अतिक्रमण कर सकते हैं .बेहद का सर पे बच्चों को चढ़ाना कहाँ तक वाजिब है ?
बच्चे की हर छोटी उपलब्धि पर आप उसे आसमान से तारे तोड़के दे सकते हैं ?जबकि वह धीरे धीरे यही चाहने लगता है यह अधिक और बढ़िया देखभाल ज़रुरत से ज्यादा लाड़ का भी नतीजा हो सकता है .
Psychologist Varkha Chulani says it's an age of the 'walking -on -eggshell parents .Parents want to be friends with their children ,and be easy -going ,not judgmental ."But ultimately ,we as parents have to bring up children to be healthy and intelligent"she adds.
eggshell parents को हर क्षण इस बात के प्रति चौकस रहना पड़ता है कहीं उनके बच्चे नाराज़ न हो जाएँ .छोटी सी बात पे ही ज्यादा लाड़ प्यार अतिरिक्त देखभाल में पले -बढ़े बच्चे बिफर सकते हैं .
आजकल के माँ बाप बच्चे की न तो जल्दी से आलोचना करते हैं न आदेश मूलक फैसला सुनाते हैं दोस्ताना रवैया रहता है उनका बालकों के संग हर मामले में .लेकिन आखिरकार हमें बच्चों की पालना ऐसे करनी पड़ती जिससे वह स्वस्थ भी बनें बुद्धमान भी कुशला बुद्धि भी .
क्या पेरेंटिंग (पालना )के इस छोर पर पड़े माँ बाप ऐसा कर पा रहे हैं ?पढ़िए अगली किश्त में .
(ज़ारी )
पेरेंटिंग का एक छोर यह भी है (II)
बाल रोगों के माहिर डॉ संदीप केलकर साहब इन दिनों मुंबई में माँ बाप और उनके बच्चों के लिए एक वर्कशाप चला रहे हैं .इसमें सारा फोकस सारा ध्यान बच्चों के संवेगात्मक कोशांक (EMOTIONAL QUOTIENT)के महत्व को दिया जा रहा है .
बकौल आपके माँ बाप को जोर शोर से आक्रामकता के साथ बच्चों से अपेक्षा रखने उनपे दवाब बनाए रहने और प्रत्याशा रखने के बीच क्या फर्क है इसका ज़रा भी इल्म नहीं हैं .
"दो धुर सिरे बन चुकें हैं पालना के ,परवरिश के ,पेरेंटिंग के जो मैं अपनी प्रेक्टिस के दरमियान देख रहा हूँ .जोर शोर से मांग बनाए रखने वाले माँ बाप अपने ख़्वाबों को अपने बच्चों में साकार होते देखना चाहते हैं
दूसरा छोर उन पालकों का है जो फख्र से कहतें हैं -हम न कोई अपेक्षा रखते हैं बच्चों से न उन पे किसी किस्म का दवाब ही बनाते हैं .वह अपने बच्चों को पढ़ाई करने के लिए कहने का भी कभी उन पर दवाब नहीं डालतें हैं .बच्चे से बस इतना पूछा जाता है क्या वह नृत्य का अभ्यास करना चाहता है .स्केटिंग के लिए जाना चाहता है .स्वीमिंग के लिए जाना चाहता है .उसे न कहने करने की छूट होती है .
कहीं बच्चे अतिरिक्त दवाब डालने पर अवसाद ग्रस्त न हो जाए आत्म हन्ता न बन जाएं ,आत्म ह्त्या न कर बैठें यही डर इन पालकों को बालकों के प्रति सॉफ्ट बनाए रखता है .नरम रवैया रखते हैं यह बच्चों के प्रति .
"What parents don't understand is that we ,as parents can have expectations from our children .We can expect them ,for instance ,to study well or give their best in a sport they want to pursue ,"said Dr Kelkar.
ज़ाहिर है बच्चों से प्रत्याशा रखना बुरा नहीं हैं .यह अपेक्षा भी की ही जाती है ,वह ठीक से पढ़ाई करें ,खेल कूद ,इतर शौक में बढ़िया प्रदर्शन करें .
(समाप्त )
13 टिप्पणियां:
बच्चों के विषय,उनकी पढ़ाई-लिखाई,खेलकूद,आज्ञा-अवज्ञा,रुचि-अरुचि जैस अनेक पहलुओं को विशेषज्ञों की सहायता से विश्लेषण करता उपयोगी आलेख।
अब देखिए खुल जाएगी। सेटिंग गड़बड़ा गई थी।
सुन कर बड़ा दुख हुआ कि आपको भी इस सीजीएचएस मारीचिका से गुजरना पड़ा। श्रीमान इस प्रकार की विकट त्रासदियों से मन खिन्न होता है बस, और कुछ नहीं। लेकिन मन की आशा हमें बांधे रखती है नए कल के सुन्दर होने की। आपके सार्थक प्रत्युत्तरों हेतु धन्यवाद पु:न।
छोटी सी बात पे ही ज्यादा लाड़ प्यार अतिरिक्त देखभाल में पले -बढ़े बच्चे बिफर सकते हैं .
biphar rahe hain .......bahut uljhne paida ho rahi ...satik lekh ...
सर जी, बेहद गंभीर विषय है बच्चों
को हैंडल करने के लिए विशेश्य्ग्यों
से निरंतर राय लेते रहना चाहिए उपयोगी लेख
आज के बच्चों को संभालना टेढ़ी खीर है . फिर भी अभिभावक कोशिश करते ही रहते हैं .
अभिभावकों के लिए सार्थक जानकारी लिए है ये लेख श्रृंखला ...आभार
आज के बच्चे भी ज्यादा रोक टोक पर अवहेलना करना शुरू कर देते हैं.सामंजस्य बना कर चलना ही पड़ता है.
क्या सही है क्या गलत ये शायद भविष्य के गर्भ में छिपा है अभी तक ... समय बतायगा ...
न ज्यादा लाड-प्यार और न ज्यादा सख्ती...संतुलन बनाये रखना होगा..जरा भी डाँट-डपट न मिलने पर भी बच्चे कमजोर रह जाते हैं.
सुन्दर प्रस्तुति -
आभार आदरणीय-
अभिभावकों के लिए विचारनीय है
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