STRESS IS A PART OF LIFE .BUT NOT ALL IDEAS ABOUT IT ARE CORRECT .DANA BECKER ,A US PROFESSOR OF SOCIAL WORK ,HAS BUSTED SOME OF THE MYTHS ABOUT STRESS .
मिथ १ भरपूर नींद लेने ,नियमित व्यायाम और सही खान पान रखने से
तनाव
कम हो सकता (होता) है .
यथार्थ :अपनी सही संभाल से आपको बेशक भौतिक रूप से अच्छा महसूस होगा लेकिन दवाब की उग्रता कम नहीं होगी .प्रशमन नहीं होगा तनाव का .
मिथ २ तनाव लोगों के लिए बीमारियों के मौके बढ़ा देता है ,रोग प्रवणता
को बढ़ाता है दैनिक स्ट्रेस .
यथार्थ :माहिरों के अनुसार हमारा रोग प्रतिरक्षण तंत्र बेहद सक्षम और लचीला ,सुनम्य होता है और खासा
तनाव बर्दाश्त कर लेता है .ज़रूरी नहीं है व्यक्ति इससे दो चार होते हुए बीमार ही पड़े .
मिथ ३ सदमे से दो चार होने वाले लोग पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की चपेट में आ जाते हैं .मसलन अपने किसी सगे सम्बन्धी के आत्महत्या करने पर बेहद जलके मरजाने को देखकर घटना के बाद तनाव जन्य विकार से ग्रस्त हो जाते हैं .
यथार्थ :ज्यादातर व्यक्तियों के मामलों में ऐसी आकस्मिक दुर्घटनाओं का साक्षी मात्र होने से ऐसा नहीं होता है।
मिथ ४ :आनुवंशिक और हारमोन बुनावट में वैभिन्न्य की वजह से पुरुष और महिलाओं की प्रतिक्रिया एक समान स्ट्रेस के मामले में अलग अलग होती है .
यथार्थ :बेशक प्रतिक्रिया दोनों की भिन्न हो सकती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है ,दोनों की हारमोन बनावट अलग होने की वजह से ऐसा हो रहा है .
मिथ ५ :महिलाएं स्ट्रेस का सामना और प्रबंधन बेहतर तरीके से कर लेती हैं घर -दफ्तर के द्वंद्व को बढ़िया तरीके से समझ लेती हैं विभेदन कर लेती है इस कोंफ्लिक्ट का .
यथार्थ :घर दफ्तर का काम स्ट्रेस की वजह नहीं बनते हैं न ही इनमें विवाद और प्रतिकूलता रहती है .काम का स्वरूप कामकाजी जगह पर चलने वाली नीतियाँ ,कामकाजी जगह पर बच्चों की संभाल के लिए सुविधा का न होना इस स्ट्रेस की वजह बनते हैं .
बेकर कहते हैं यदि हम अपना नज़रिया स्ट्रेस के प्रति बदल लेते हैं इसे स्ट्रेस न मान परिश्थिति मात्र मान लेते हैं ,माहौल मान लेते हैं तथा इस दिशा में निरंतर प्रयत्न शील रहते हैं ,इसे बदला जाना चाहिए ,सामाजिक और राजनीतिक बदलाव होने चाहिए,तब इससे सभी लाभान्वित होंगें .तभी स्ट्रेस का सही समाधान हमें मिलेगा जब हमें इसकी असल वजह का इल्म होगा .
मिथ १ भरपूर नींद लेने ,नियमित व्यायाम और सही खान पान रखने से
तनाव
कम हो सकता (होता) है .
यथार्थ :अपनी सही संभाल से आपको बेशक भौतिक रूप से अच्छा महसूस होगा लेकिन दवाब की उग्रता कम नहीं होगी .प्रशमन नहीं होगा तनाव का .
मिथ २ तनाव लोगों के लिए बीमारियों के मौके बढ़ा देता है ,रोग प्रवणता
को बढ़ाता है दैनिक स्ट्रेस .
यथार्थ :माहिरों के अनुसार हमारा रोग प्रतिरक्षण तंत्र बेहद सक्षम और लचीला ,सुनम्य होता है और खासा
तनाव बर्दाश्त कर लेता है .ज़रूरी नहीं है व्यक्ति इससे दो चार होते हुए बीमार ही पड़े .
मिथ ३ सदमे से दो चार होने वाले लोग पोस्ट ट्रोमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की चपेट में आ जाते हैं .मसलन अपने किसी सगे सम्बन्धी के आत्महत्या करने पर बेहद जलके मरजाने को देखकर घटना के बाद तनाव जन्य विकार से ग्रस्त हो जाते हैं .
यथार्थ :ज्यादातर व्यक्तियों के मामलों में ऐसी आकस्मिक दुर्घटनाओं का साक्षी मात्र होने से ऐसा नहीं होता है।
मिथ ४ :आनुवंशिक और हारमोन बुनावट में वैभिन्न्य की वजह से पुरुष और महिलाओं की प्रतिक्रिया एक समान स्ट्रेस के मामले में अलग अलग होती है .
यथार्थ :बेशक प्रतिक्रिया दोनों की भिन्न हो सकती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है ,दोनों की हारमोन बनावट अलग होने की वजह से ऐसा हो रहा है .
मिथ ५ :महिलाएं स्ट्रेस का सामना और प्रबंधन बेहतर तरीके से कर लेती हैं घर -दफ्तर के द्वंद्व को बढ़िया तरीके से समझ लेती हैं विभेदन कर लेती है इस कोंफ्लिक्ट का .
यथार्थ :घर दफ्तर का काम स्ट्रेस की वजह नहीं बनते हैं न ही इनमें विवाद और प्रतिकूलता रहती है .काम का स्वरूप कामकाजी जगह पर चलने वाली नीतियाँ ,कामकाजी जगह पर बच्चों की संभाल के लिए सुविधा का न होना इस स्ट्रेस की वजह बनते हैं .
बेकर कहते हैं यदि हम अपना नज़रिया स्ट्रेस के प्रति बदल लेते हैं इसे स्ट्रेस न मान परिश्थिति मात्र मान लेते हैं ,माहौल मान लेते हैं तथा इस दिशा में निरंतर प्रयत्न शील रहते हैं ,इसे बदला जाना चाहिए ,सामाजिक और राजनीतिक बदलाव होने चाहिए,तब इससे सभी लाभान्वित होंगें .तभी स्ट्रेस का सही समाधान हमें मिलेगा जब हमें इसकी असल वजह का इल्म होगा .
16 टिप्पणियां:
तनाव और उसे कम करने को लेकर आपने दिलचस्प और बेहतरीन जानकारी दी है... आभार ....
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आदरणीय शर्मा जी, नमस्कार ...आपसे एक निवेदन है ...नीचे लिख रहा हूँ ...
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मिथ : एक ही पोस्ट पर कई बार टिप्पणी करने से अतिरिक्त ख़ुशी मिलती है और पोस्ट लिखने वाला भी गदगद होकर लोटने लगता है ....
यथार्थ : ब्लॉग के विशेषज्ञों और माहिरों के विचार को परे रख कर मेरा मानना है कि ऐसा करने से कम से कम मुझे तनाव होता है ..अच्छा नहीं लगता है .....
कृपया ..कृपया अन्यथा न लेंगे ..... सादर ...
baat to sahi hai!
बेहतरीन जानकारी देता आपका आलेख ...
आभार
aaj kal log tanav se bhari jindgi jine lage hai ...
din bhar kam or thakan se esa ho skta h..shayad...........
ye mere vichar hain
ye post upyogi jankari se bharpur hain ..
पधारिये : किसान और सियासत
आज के तनाव भरी जिंदगी पर बेहतरीन जानकारी.
अच्छा तो है कि तनाव हो ही नहीं। और हो तो उसे सहन कर सकें। लेकिन सहन करने की क्षमता सब की अलग अलग होती है। यही लोग मार खा जाते हैं।
जिंदगी के प्रति खुशनुमा रवैया बनाकर रखने से तनाव कम रहता है।
मान्यवर राहुल भाई !यह ब्लॉग जगत की दुनिया बड़ी निर्लिप्त (निर्मम )है .यहाँ संतुलन रखना पड़ता है बार्टर सिस्टम है एक टिपण्णी ले एक टिपण्णी दे अलबत्ता टिपण्णी दिल से हो जैसे आपकी है .शुक्रिया .आपके पेशकाश का ज़वाब भी टिपण्णी ही है .
अच्छी-अच्छी जानकारी और अच्छे विचारों से रु-ब-रु कराने का शुक्रिया ....
वीरू भाई जी राम-राम !
कुछ पुराना ज्ञान का बोझ कम हो गया।
तनाव कम करने की बेहतरीन जानकारी देने के लिए ..आभार,,,वीरू भाई जी,,,
Recent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
सर जी ,जिंदगी की अनेकों समस्याओं
से जुडी समस्या के निराकरण
का सुन्दर प्रस्तुतीकरण
सार्थक जानकारी
आप जागरूक आन्दोलन की मिशाल हैं
कई बार मिथ मिथ ही बने रहें तो अच्छा नहीं होता ... तनाव अगर किसी बी बात से कम हो उसे करना चाहिए ...
अच्छी जानकारी है. धन्यवाद
बहुत सारी बातों की असलियत पता चली..आभार!
महत्वपूर्ण जानकारी।
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