मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

Concept of soul and the Supreme soul


मैं कौन हूँ ?

दुखों का कारण है हमारा देह अभिमान .खुद को देही (देह का मालिक )न समझ सिर्फ देह भान में रहना .हम जानते ही नहीं है अपना सही परिचय .परिचय के अभाव में हम अशांत विचलित रहते हैं .हमारे कर्मों को दिशा नहीं मिलती है .

अपनी काया के श्रृंगार .बनाव और ठवन में ही लगे रहतें हैं हम .अपने स्वभाव से संस्कार से आत्म तत्व चेतना ,सचेतन ऊर्जा ,अपने अ -शरीरी -पन  से ,सूक्ष्म रूप ,प्रकाश स्वरूप ,शांत स्वरूप ,ज्ञान और अपने मूल स्वभाव में आनंद  स्वरूप अपनी आत्मा से हमारा संपर्क कट गया है .अपरिचय व्याप्त है .

इसीलिए किसी किसी को कह देते हैं इसकी तो आत्मा ही मर चुकी है .भले बुरे का इसे विवेक ही नहीं है निरा भॊगी  बनके रह गया है यह .

शरीर तो  जड़तत्व है .क्षय होते होते कोशा के स्तर पर (cellular level )एक दिन साथ छोड़ जाएगा उस मूल तत्व का जो पञ्च भूत से परे है .यानी आत्मा का .

वही  सूक्ष्म तत्व ज्योति बिंदु स्वरूप आत्मा  है जो वर्तमान का कर्म भोग भुगता कर शरीर छोड़ जाता है .  आत्मा .शिव का वंश है .शिवत्व इसका स्वभाव है .देह अभिमान ने खुद को महज़ काया मान लेने के बोध में हमें उलझाया हुआ है .मेरा तेरा की माया में डाल  दिया है हमारे मन को बुद्धि को संस्कार को .यही आत्मा के तीन अलंकरण हैं  ,अधीन हैं आत्मा के    .आत्मा के गुण हैं .उपकरण हैं मन ,बुद्धि और संस्कार आत्मा के .कर्म से पैदा संस्कार आत्मा पे रिकार्ड होता चला जाता है .

जबकी आत्मा मन से भी सूक्ष्म तत्व है .बुद्धि योग से मन को, कर्म को, वचन को सही दिशा बोध दे सकती है .कैसे यह पढ़िए 'परमात्मा का परिचय 'पोस्ट में .

फिलाल याद रखिये मैं इस देह से परे ,देह के जड़त्व से परे ,एक दिव्य ज्योति हूँ .शान्ति ,आनंद ,ज्ञान ,प्रेम मेरा गुनियादी गुण हैं .मैं आत्मा देह से अलग एक अकाल मूर्त सत्ता हूँ .मेरा क्षय नहीं हो सकता .काल मुझे खा नहीं सकता .अग्नि मुझे जला नहीं सकती .जलता तो शरीर है जो पञ्च तत्वों का संयोजन है .मैं तो एक शरीर छोड़ दूसरा ग्रहण कर लेती हूँ .

इसीलिए कबीर ने कहा -

हाड़ जरे ज्यों लाकड़ी ,केश जरे ज्यों घास ,

सब जग जलता देख के कबीरा भया उदास . 

परमात्मा का परिचय 
परमात्मा निराकार है .ज्योतिबिंदु स्वरूप है .शिव उसका गुणवाचक नाम है .परमात्मा ज्ञान का प्रेम का आनंद  का सागर है।शान्ति का सागर है .
आत्मा भी ज्योति बिंदु स्वरूप है उसका आकार परमात्मा के आकार  के समान ही है .परमात्मा शिव का वंश है (अंश नहीं है ,क्योंकि  अंश फिर पूरे अंशी को नहीं देख सकता ) ,दिव्य बुद्धि से ही ,ज्ञान से ही हम अपने निराकार आत्म स्वरूप का दर्शन कर सकते हैं .नाक के ऊपर जो नेत्र हैं उनसे नहीं .परमात्मा को भी बुद्धि चक्षु से देख सकते हैं महसूस कर सकते हैं .ज्ञान नेत्र खुलने पर उसकी भासना कर सकते हैं .

आत्मा सो परमात्मा नहीं है 

आत्मा पुत्र है शिव पिता है समस्त आत्माओं का .पिता सो पुत्र  कैसे हो सकता है  .अलबत्ता वंश वेळ(Genealogy) एक है कुनबा एक है गुण एक हैं दोनों के .आत्मा में भी शिवत्व है लेकिन सीमित मात्रा में .बुद्धि योग से निराकार शिव को जाना जा सकता है सिमरा जा सकता है इन गुणों को बढ़ाया  जा सकता है .आत्मा का क्षय नहीं होता .आत्मा कर्म भोग से बंधी है .कर्म भुगताने के लिए उसे शरीर में आना पड़ता है एक से दूसरे  जन्म में जाना पड़ता है एक शाश्वत चक्र है यह .

जबकि परमात्मा शिव अजन्मा है .सृष्टि करता है .परमात्मा को त्रिकाल मूर्त भी कहा जाता है .क्योंकि वह त्रिमूर्ति ब्रह्मा -विष्णु -महेश का भी सृष्टा है रचता है ,रचनाकार है जब की ब्रह्मा -विष्णु -महेश (शंकर ) रचना हैं शिव की .शिव रचना कार है इन तीनों का .परमात्मा एक हैं देवता अनेक हैं .३ ३ करोड़ देवताओं का गायन है .

परमात्मा का अवतरण होता है एक कल्प के अंत में  जब ये सारी  कायनात गंधाने लगती है .पञ्च भूत विकार ग्रस्त (प्रदूषित )होकर अपनी तात्विकता खो देते हैं .जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश,धरती सब अपनी तात्विकता खो देते हैं .विकारों का रावण जब हमारे अन्दर महत्तम हो जाता है तब शिव का साधारण मनुष्य तन (ब्रह्मा के तन ) में अवतरण होता है .उसके मुख से निसृत गीता सुनके हमारा स्वभाव संस्कार बदलता है उसकी याद में रहके हम कर्म भोग को चुकता करके कर्म योगी बन आत्मा के मूल स्वरूप सुख शान्ति ,आनंद ,ज्ञान ,प्रेम को प्राप्त कर लेते हैं  .शिव प्रसूत ब्रह्मा मुख कमल से निसृत ज्ञान ही गीता है .जो इसे सुनता है धारण करता है कृष्ण बन जाता है .गीता कृष्ण की माँ है .ब्रह्मा ही सतयुगी कृष्ण है .कृष्ण के ही आठ जन्म हैं सतयुग में इसी लिए कृष्ण  जन्माष्टमी मनाते हैं .कृष्ण सूर्य वंशी हैं सोलह कला संपन्न देवता हैं .

त्रेता से राम का राज्य शुरू होता है श्री रामचन्द्र हैं चन्द्र वंशीय इसीलिए राम चन्द्र हैं .यहाँ आते आते दो कलाएं कम हो जाती हैं .१ ४ रह जाती हैं .चन्द्र वंशी राजा (देव गण )स्वेच्छया अपना प्रकाशमय शरीर छोड़ते हैं कुल बारह बार .

इसके बाद द्वापर है .यानी शरीर और आत्मा का द्वंद्व .खुद को शरीर मान लेने की भूल .फिर भी अपने देव स्वरूप की स्मृति है .उसी स्मृति से हम अपने ही देव स्वरूप को मंदिरों में  स्थापित कर देते हैं .देवता से पुजारी बन जाते हैं .

त्रेता तक एक ही आदि देवी देवता सनातन धर्म है .द्वापर में अनेक हो जातें हैं .इस्लाम ,बौद्ध ,क्रिश्चियन(ईसाई मत ) ,आदि शंकराचार्य का सन्यासी मत ,मुस्लिम धर्म वंश और आखिर में सिक्ख मत उसके बाद अनेक समाज और पंथ आते हैं .कलाएं घटके आठ रह जाती हैं .

इसके बाद तेज़ी से ह्रास होता है कलयुग में .हर लल्लू पंजू यहाँ अपने को भगवान् घोषित करता है .आत्मा जंग लगा लोहा हो जाती है .विकारों का रावण तमाम दुष्कर्म करवाता है .

ऐसे ही घोर अन्धकार में शिव का अवतरण होता है ब्रह्मा तन में .यहीं से पुरुषोत्तम संगम युग शुरू होता है .योग बुद्धि से हम कर्म भोग को काट के एक बार फिर पवित्र बनते हैं .पुरुषार्थ अनुसार .जिसका जैसा पुरुषार्थ उसकी वैसी गति .अंत मते सो गते .पुरुषोत्तम संगम युग से एक बार फिर हम अपने पुरुषार्थ अनुसार ,मेरिटवाइज़ सतयुग में आते हैं और यह अविनाशी चक्र eternal cycle चलता रहता है .सांप सीढ़ी का खेल है यह कर्म भोग .अलबत्ता सब के लिए समान अवसर हैं पुरुषार्थ करने के .श्री मत (ईश्वरीय श्रेष्ठ मत ,परमात्मा के निर्देशन में चलने के ,उसकी याद में रहते सब कर्म करने के .

  ज्योतिर्लिन्गम (शिव लिंग )शिव का प्रतीक चिन्ह है .रामेश्वरम हो जहां राम शिव की पूजा करते हैं या अमरनाथ और या फिर  पशुपति नाथ सब जगह एक ही निराकार ज्योति स्वरूप परमात्मा शिव ,निराकार शिव का गायन वन्दन है .ईश्वर एक ही है .ईसा मसीह भी यही कहते हैं -GOD IS KINDLY LIGHT.

गुरुनानक देव एकहु ओंकार निराकार (ईशवर एक है )कहतें हैं .GOD IS INCORPOREAL कहते हैं .

Buddhist in Japan call it Chinkoseki ,meaning one who gives peace.

मक्का में भी संग -ए -असवद (एक पवित्र काला पथ्थर इसी शिव लिंग का स्वरूप है ).

In the old Testament also ,it is mentioned that Moses had a vision of this form of God near the bush on the Mount.

वृन्दावन का गोपेश्वरम मंदिर हो या वाराणसी का विश्वनाथ मंदिर  सब जगह शिवलिंग का ही बखान है .नंदी बह्मा है जिसके शरीर में  शिव का अवतरण होता है .शालिग्राम हम आत्माएं हैं .

ईश्वर कण कण में व्याप्त नहीं है 

एक तरफ हम उसे नाम रूप से न्यारा कहते हैं दूसरी तरफ उसे कण कण में कह देते हैं ,यह विरोधाभास है .

आज  कितने लोग नंगे भूखे हैं .भिखारी बने भीख मांग रहें हैं .क्या ये सब परमात्मा है .ज़ाहिर है कण कण में उसकी व्याप्ति नहीं है .जो जहां होता है वहां से अपने होने की खबर देता है आभास कराता है फिर वह शान्ति का शीतलता का तेजोमय सागर अपने होने की खबर नहीं देगा ?


9 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बेहतरीन सशक्त विश्लेषण ,,,

RECENT POST: मधुशाला,

राहुल ने कहा…

आपके अब तक के पोस्ट से एकदम अलग... मगर बेहद जानदार.....

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

sukshm vishleshan ....bahut badhiya .....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काश अपने आप के पहचान पाता,
कौन हूँ मैं, काश विधिवत जान पाता।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

यह शुद्ध तत्व ज्ञान से भरी पोस्ट पढकर मन प्रफ़ुल्लित हो गया. तत्व ज्ञान को इस रूप में शब्द देना हर किसी के बस की बात नही है, आपकी सोच शक्ति और लेखनी को नमन.

रामराम.

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर विश्लेषण,बेहतरीन आलेख.

virendra sharma ने कहा…

ताऊ सा ये सारा कमाल राज योग का है .अपने आत्म स्वरूप को पहचान शिव की याद में बैठने का है .एक ही मूल मन्त्र है :

हमसो सोहम (सोऽहं )-हम ही देवता थे फिर हम ही देवता बनेंगे .पुजारी से पूज्य बनेगें .

शिवोहम नहीं है यानी मैं स्वयं शिव नहीं हूँ शिव तो परम आत्मा है .जिसकी अपार ज्योति ,असीम गुण कभी छीजते नहीं है .हम आत्मा छीजती हैं .छीजते छीजते सतो प्रधान (सत युग)से तमो -प्रधान कलयुग (लौह युग )में चले आते हैं अपना दिव्य स्वरूप गंवाकर रावण बन जाते हैं .इस समय पूरी दुनिया ही लंका है (एक श्री लंका ही नहीं है )रावण का राज्य है पूरी दुनिया पर .

इस समय सृष्टि तमोप्रधान हो गई है सारी कायनात गंधाने लगी है .हमारी ,हवा ,पानी, मिट्टी ,धरती ,आकाश सभी तो विकार ग्रस्त हो बेहद की प्रदूषित हैं .काया में फिर प्रदूषण क्यों नहीं आयेगा जो इन्हीं पञ्च तत्वों का जमा जोड़ है गठबंधन है गठ्बंधनिया प्रदूषित सरकारों की तरह .

इसी समय शिव शक्तियां भी पृथ्वी पर अवतरित हैं .इसी घोर कलयुग में शिव का अवतरण हो चुका है .कोई उसे पहचान रहा है कोई नहीं भी .अविश्वास से भरा हुआ भय भीत है चलते फिरते जो पहचान नहीं रहा है .

काया का बाजा बजाना अपने बस में करके कर्मयोगी बनो .हर कर्म शिव की याद में रहते करो .कर्मेन्द्रियाँ शुभ कर्म करने के लिए ही मिली हैं .सन्यासी बन हट योग में बैठने के लिए नहीं .

यह राजयोग है आत्मा का शिव से (निराकार शिव परमात्मा )से पलक झपकते ही कनेक्ट होना है .यही ज्ञान और कर्म /भक्ति योग है .

ॐ शान्ति .

ताऊ सा आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस पोस्ट को गुनने का .हौसला अफजाई करने का .

ॐ शान्ति .

Arvind Mishra ने कहा…

विज्ञान का उत्स आध्यात्म है यह आपने साबित किया !

डॉ टी एस दराल ने कहा…

गूढ़ ज्ञान से ओत प्रोत सार्थक पोस्ट के लिए बधाई वीरुभाई।