गुरुवार, 21 मार्च 2013

Is childfree the way to be ?

 बुरी खबर  हमारे मुल्क में बहु -अर्थी होती है लेकिन अच्छी खबर एक अर्थी ही रहती है .शादी के बाद घर बाहर के लोग एक ही खबर देर सवेर दम्पति से सुनना चाहतें हैं .कितने साल हो गए शादी को लोगों की आँखों में तरह तरह के सवाल तैरने लगते हैं .खुद भावी माताएं मन्नत मांगतीं हैं व्रत   रखती हैं पीर संतों फकीरों ज्योतिष  के माहिरों के पास जाती हैं .संतान के लिए .

मिलिए पवई की उद्यमी  ३ ६ साला संतोष जी से।क्या कहतीं हैं आप - मेरी शादी को छ :साल हो गए निस्संतान रहना मेरा चयन है .हम अपने में पूर्ण समर्थ हैं संतान प्राप्ति की कोई इच्छा नहीं है .जीवन में सब सुख हैं परिपूर्णता है और क्या चाहिए .

बकौल संतोष एक परम संतुष्ट  माँ की गर्वोक्ति है घिसीपिटी बात  है यह कथन -औरत माँ बनने के बाद ही सम्पूर्णता को प्राप्त होती है .मातृत्व शिखर है उसके होने का ,नारीत्व का .

संतोष 'Childfree By Choice India'समुदाय का एक हिस्सा है बिरादरी है .इस बिरादरी में पूरे देश के ऐसे ही दम्पति शामिल हैं जो आपस में विमर्श करते हैं . सभी के सभी निस्संतान अदबदाकर हैं .

जवाहरलाल यूनिवर्सिटी ,नै दिल्ली की एक  रिसर्चर अमृता नंदी  ने अपनी शोध का विषय' Motherhood and choice 'को ही बनाया है इसी सिलसिले में आपने मुंबई में रह रहीं ऐसी ही नान मदर्स से बातचीत की है .बकौल आपके ये बहुत कामयाब महिलाएं हैं जो अपनी अलग शिनाख्त और मकसद बहुत गंभीरता से ले रहीं हैं .इनमें शरीक हैं लेखिकाएं ,बैंकर्स ,जनसंचार से जुड़ी  बेहद कामयाब महिलाएं ,वकील और पर्यावरणविद .इनका मानना है बच्चे पैदा करना अपना कार्बन फुट प्रिंट बढ़ाना है .घर बनाने के लिए बाज़ार से ऋण उठाओ ,भाग दौड़ करो एक से दूसरे शहर में जाओ .

इनमें ही शामिल हैं ५ ४ साला मुंबई में ही पैदा हुईं पली बढ़ी कामयाब पब्लिक रिलेशन प्रोफेशनल ज्योति .उम्र के चौथे दशक की समाप्ति  से पहले ही late 30 s में माँ बनने की संभावना को खारिज करने के लिए आपने  अपनी नलबंदी करवा ली थी .

शेट्टी चार बहनों में सबसे बड़ी थीं इन दिनों पुणे में रहतीं हैं .आपने बड़े परिवार में पलने बढ़ने को नज़दीक से देखा है महसूस किया है बड़े परिवार में कैसे सबसे बड़ा बच्चा उपेक्षा का शिकार बनता है कैसे माँ बाप की प्राथमिकताओं का निर्धारण होता है जिनके पास बच्चों के लिए कोई वक्त नहीं होता है .ज्योति कहतीं हैं आज के इस महंगाई और मुद्रा प्रसार के दौर में उनका चयन निस्संतान बने रहने का अक्लमंदी का काम है .

ऋतू खाबिया  को अपनी आज़ादी से प्यार रहा है .उनके लिए वह क्षण बहुत ना -गँवारी के और वाहियात होते जब वह किसी दोस्त से बात कर रहीं हैं कुछ पढ़ रहीं हैं  आराम कर रहीं है या साथी  के साथ अपने निजी लम्हें बिता रहीं हैं और औलाद नाम की कोई शै उनका ध्यान भंग करके खुद के लिए तवज्जो चाहती .खौफनाक मंजर होता उनके लिए यह .आप एक होम -मेकर हैं और एक वायुसेना अधिकारी की पत्नी हैं .कल्पना कीजिए उन बिगडैल  सपूतों की जिनके लिए आप खुद का जीवन होम कर देते हैं दांव पे लगा देते हैं .बड़े होने पर यही लाडले खुद में ही तल्लीन  होकर  रह जाते हैं आपके लिए इनके पास कोई वक्त नहीं होता .(क्या कीजिएगा ऐसी औलाद का ?).

ऋतू को उनके खैरख्वाह आगाह करते हुए कहतें हैं -बच्चों के बिना आपकी शादी कायम नहीं रह पायेगी .एक और उनकी सखी कहतीं हैं यदि आपकी शादी में दम है कामयाब है आपकी शादी तो आपके बच्चे भी होंगें .

ज्योति जब उम्र के उस पडाव में अपनी नलबंदी करवाने पहुंची थीं उनकी स्त्रीरोगों की माहिरा ने भी उन्हें फटकारा था .मना किया था यह कदम उठाने को .लेकिन ये तमाम महिलाएं अपने निश्चय पर कायम हैं दृढ हैं .

Some reactions come in the form of silent judgements .Anu Santosh ,who recalls a colleague remarking that women who don't want kids were "off their rockers" ,.Even her family is convinced Santosh and her husband will change their mind eventually ."If we do ,I am pretty sure we will adopt and not have our own .Would it then be fare for me to call mothers with biological children selfish for not caring for the helpness ?asks Santosh, adding that she knows a lot of  mothers would find this accusation absurd ."Perhaps then they can learn to mind their business."

(ज़ारी )

अगली किश्त में पढ़िए :'6 0 % post -40 women need help to conceive'

THE RIGHT AGE TO HAVE A BABY?

6 टिप्‍पणियां:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

अदबदाकर..........सर्वप्रथम तो इस शब्‍द के मायने बताने का कष्‍ट करें। आपकी इस पोस्‍ट ने इत्‍मीनान से टिप्‍पणी करने को प्रेरित किया। बहुत अच्‍छा विषय है यह। बहुत से विवाहित पति-पत्‍नी का नि:संतान रहने का विचार आज के विचित्र सामाजिक विघटन, मानवीयता ह्रास, मुद्रा समेकित मनुष्‍य लालसा को देखते हुए बहुत सही निर्णय है। और तन्‍त्र बच्‍चों के नैतिक और मौलिक बने रहने के लिए कौन सी जिम्‍मेदारी का निबाह कर रहा है, जो नव-दम्‍पति बच्‍चे होने देने को प्रेरित हों। आज की तन्‍त्र-व्‍यवस्‍था मुद्रा और मशीन तक सिमट गई है। इसके रहते हो रहे खतरनाक समाजिक विचलन की उसे कतई चिंता नहीं है। ऐसे में परिवार इकाई (परिवार) के रुप में रहे भी तो कैसे? इसीलिए नि:संतान रहने की नवदम्‍पत्ति की इच्‍छा उचित है। अभी इसका प्रारम्‍भ है इसलिए इस प्रेरणा को रोकने के लिए कोई कानून नहीं बना। कल सरकार को तन्‍त्र और व्‍यापार मन्‍त्र संभाल के लिए जब पर्याप्‍त मनुष्‍य श्रम उपलब्‍ध नहीं होगा तो शायद वह निसंतान रहनेवालों को गैर-कानूनी बता उन्‍हें संतानोत्‍पत्ति करने को बाध्‍य करें। या उन्‍हें बच्‍चे पैदा करने पर दाम और नाम का लालच दे। अजीब ध्रुवों में बंट चुका है समाज। क्‍या होगा आगे। भगवान जाने। राम-राम। आपकी टिप्‍पणियां पोस्‍ट का अच्‍छा सकारात्‍मक पोस्‍टमार्टम कर रही हैं। इस हेतु धन्‍य हैं आप।

Arvind Mishra ने कहा…

एक बहुत ही मौजू विषय लिया है आपने! खतरनाक ट्रेंड ! विकास बडोला जी के विचार सोचने को मजबूर करते हैं .निर्वाह करिए इस विषय का आगे भी -आयेगें

virendra sharma ने कहा…


अदबदाकर किया गया काम /फैसला ?

फैसला लेने से पहले किसी बात के सभी पहलूओं पे ठीक से सोच लेना ,किसीबात को पूरी तरह सोचना समझना ,तब सब कुछ जानते बूझते हुए ऐसा हुआ तो वैसा हो सकता है अंजाम की चिंता किए बिना कर लेना कुछ भी अदबदाकर करना कहलायेगा .

Harihar (विकेश कुमार बडोला) ने कहा…

मिल गया है अदबदाकर का मतलब।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नया विषय, गहरी जानकारी..

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

चाइल्ड फ्री एक नया विचारणीय विषय है
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