They may make up just 5% of all new mothers today ,but their numbers are swelling.These are 40-plus women who put off motherhood for years ,till they first actualize their other aspiration-a career that rocks
MUMBAI FOR WOMEN /THE TIMES OF INDIA/TIMES CITY ,MARCH 20 ,2013,P4
प्रिया शाह एक कामयाब व्यवसाई महिला हैं ,बिजनेस वुमेन हैं .बारह साला वैवाहिक जीवन के इस चरण में आके जब वह चालीसा छूने लगी महसूस हुआ कुछ तो है जीवन में जो उनके पास नहीं है .४ १ साल की हैं अब वह कल ही की बात है उनकी गोद भरी है नन्नी किलकारी से .संतान को मुल्तवी रखना अदबदाकर था .जीवन में और ज्यादा ज़रूरी कामकाजी प्राथमिकताएं थीं व्यवसायिक सफलता का एक शिखर था .संतान सुख उन्हें इनविट्रो फरटीलाईजेशन(IVF) ने मयस्सर करवाया है .इस कामयाब परखनली गर्भाधान का श्रेय लीलावती अस्पताल की स्त्रीरोगों की माहिरा डॉ नंदिता पाल्शेत्कर को जाता है .बेशक यह दंपत्ति इस ओर से लापरवाह है इनकी यह संतान जब दस साला होगी दम्पति पचासे के पार जा चुका होगा .
यही नया सामाजिक सच है जिसके बीज समाज में पड़ चुके हैं .प्रिया शाह हालाकि एक विरल (बिरले ही जो देखने को मिलता है ) वर्ग का ही प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं लेकिन मुंबई स्वप्न नगरी में अब मिड थरटीज केरीयर की भेंट चढ़ रहा है .देर से माँ बनना धीरे धीरे रिवाज़ बन चला है .भले इस दरमियान फर्टिलिटी के मौके नदारद होते चले जाएँ .
यही प्रेक्षण हैं अब समाज विज्ञानी और चिकित्सा माहिरों के ,फर्टिलिटी एक्सपर्ट के .शिक्षा और व्यवसाय की प्राथमिकता ऊपर चली आई है मातृत्व की अभिलाषा गहरे दफन हो गई है ,मुल्तवी हो गई है .
देर से मातृत्व हासिल करना जीवन शैली चयन हैं स्वेच्छिक है किसी ने थोपा नहीं हैं .महत्व कान्क्षाओं का अपना आकाश और भंवर है .
Dr Firuza Parikh ,director ,department of assisted reproduction and genetics at Jaslok Hospital , a leading pioneer in IVF ,says ,"We see young women in their early 30s who are very sure about pursuing their careers come to us to understand their options ."
Parikh ,though ,says most women are aware that the clock is ticking and start slowing down in their late 30s ."Sometimes it takes them several years to climb high enough on the career ladder before they can commit to a family."
एक और चलन भी देखने में आया है .दूसरे बच्चे के आने को अदबदाकर मुल्तवी रखा जा रहा है .पहला बच्चा समय से उसके बाद पूरी तवज्जो कामकाजी सफलता पर व्यवसाय गत तकाजों पर .दूसरी मर्तबा गर्भ धारण न कर पाने की स्थिति में ऐसी महिलाएं ही फिर से फर्टिलिटी माहिरों के पास पहुँच रहीं हैं .
मुंबई महानगरी में चालीसा के पार अब माँ बनने वाली महिलाओं की तादाद ५ % है .पद प्रतिष्ठा को काबिज रखना ,सास ससुर से अलग एक घरौन्दा बनाना खुला बड़ा आवास हासिल करना अब प्राथमिकताओं में ऊपर आ रहा है .परिवार का आकार इसी के अनुरूप सिमट रहा है .
फिर भी तीस के पार माँ बनने का चलन मुंबई में अभी भी बना हुआ है चालीस के पार माँ बनने का चलन अमरीका और इंग्लैण्ड की तरह यहाँ अभी नहीं पसरा है .दिखाई ज़रूर दिया है .
एक ख़ास व्यवसाय -सचेत वर्ग में देर से मातृत्व हासिल करने वाली पढू(पढ़ाकू ) महिलाओं की संख्या ज़रूर बढ़ रही है .
This pool of older mothers is growing within such a career -oriented segment ,which itself is growing .
यहाँ भारत में इस बदलते चलन को लेकर कोई सूक्ष्म सर्वे भी पश्चिम की तरह नहीं हुए हैं .
In the UK ,last December the National Health Service said there was a 15 % increase in deliveries of women in their 40s over the past five years.
इंग्लैण्ड में जनवरी २ ० १ ३ में यु के आफिस आफ नेशनल स्टेटिस्टिक्स ने बतलाया -कुल पैदा हुए बच्चों में अब पचास फीसद ऐसे नौनिहालों का है जिनकी माताएं तीस साला या उससे भी ज्यादा उम्र की हैं .अमरीका में अब अधिकाधिक महिलाएं ३५ साल की उम्र के पार ही पहली मर्तबा माँ बन रहीं हैं .
अच्छी बात यही है संभवतया आज भी मुंबई में पहली मर्तबा माँ बनने वाली महिलाओं की औसत उम्र २ ५ ,२ ६ ,२ ७ के गिर्द ही है (Mid 20 s ).
But the urban women who pursues higher education and sets for herself high career goals often puts the demanding boss before even attempting to make demanding babies.
भारतीय मानकों के अनुसार आज भी ३ ४ साल की उम्र में पहली मर्तबा माँ बनना देर से माँ बनना समझा जाता है .और इस उम्र में अगर गर्भ गिर जाए फिर सालों बाद भी IVF का ही सहारा लेना पड़ता है .
अब अधिकाधिक महिलाओं और भी दम्पति को भी पहले सलीका दार ज़िन्दगी चाहिए बड़ा आवास चाहिए ,बच्चा पैदा करने से पहले बढ़िया स्कूल ही नहीं Day care centre की भी आश्वस्ति चाहिए .पारिवारिक कोर्ट कचहरी में भी अब निस्संतान दंपत्ति सुलह सफाई से परस्पर सहमती से तलाक के लिए आगे आ रहे हैं .यह एक नया चलन है .बच्चा होना न होना उस रूप में प्राथमिकताओं में है ही नहीं .
विशेष :इसी श्रृंखला में आगे पढ़िए एक और ट्रेंड -ऐसी महिलाएं भी है जो जीवन से परम संतुष्ट हैं मातृत्व उनकी प्राथमिकताओं में होना दूर की बात ही नहीं दकयानूसी भी है , गैर ज़रूरी बात है .अगर आप स्वार्थहीन हैं ,बच्चा गोद लीजिए ,अपना बच्चा तो स्वार्थी लोग पैदा करते हैं जिससे आगे जाके मिलता कुछ नहीं है बदले में सिवाय छलावे के .
MUMBAI FOR WOMEN /THE TIMES OF INDIA/TIMES CITY ,MARCH 20 ,2013,P4
प्रिया शाह एक कामयाब व्यवसाई महिला हैं ,बिजनेस वुमेन हैं .बारह साला वैवाहिक जीवन के इस चरण में आके जब वह चालीसा छूने लगी महसूस हुआ कुछ तो है जीवन में जो उनके पास नहीं है .४ १ साल की हैं अब वह कल ही की बात है उनकी गोद भरी है नन्नी किलकारी से .संतान को मुल्तवी रखना अदबदाकर था .जीवन में और ज्यादा ज़रूरी कामकाजी प्राथमिकताएं थीं व्यवसायिक सफलता का एक शिखर था .संतान सुख उन्हें इनविट्रो फरटीलाईजेशन(IVF) ने मयस्सर करवाया है .इस कामयाब परखनली गर्भाधान का श्रेय लीलावती अस्पताल की स्त्रीरोगों की माहिरा डॉ नंदिता पाल्शेत्कर को जाता है .बेशक यह दंपत्ति इस ओर से लापरवाह है इनकी यह संतान जब दस साला होगी दम्पति पचासे के पार जा चुका होगा .
यही नया सामाजिक सच है जिसके बीज समाज में पड़ चुके हैं .प्रिया शाह हालाकि एक विरल (बिरले ही जो देखने को मिलता है ) वर्ग का ही प्रतिनिधित्व कर रहीं हैं लेकिन मुंबई स्वप्न नगरी में अब मिड थरटीज केरीयर की भेंट चढ़ रहा है .देर से माँ बनना धीरे धीरे रिवाज़ बन चला है .भले इस दरमियान फर्टिलिटी के मौके नदारद होते चले जाएँ .
यही प्रेक्षण हैं अब समाज विज्ञानी और चिकित्सा माहिरों के ,फर्टिलिटी एक्सपर्ट के .शिक्षा और व्यवसाय की प्राथमिकता ऊपर चली आई है मातृत्व की अभिलाषा गहरे दफन हो गई है ,मुल्तवी हो गई है .
देर से मातृत्व हासिल करना जीवन शैली चयन हैं स्वेच्छिक है किसी ने थोपा नहीं हैं .महत्व कान्क्षाओं का अपना आकाश और भंवर है .
Dr Firuza Parikh ,director ,department of assisted reproduction and genetics at Jaslok Hospital , a leading pioneer in IVF ,says ,"We see young women in their early 30s who are very sure about pursuing their careers come to us to understand their options ."
Parikh ,though ,says most women are aware that the clock is ticking and start slowing down in their late 30s ."Sometimes it takes them several years to climb high enough on the career ladder before they can commit to a family."
एक और चलन भी देखने में आया है .दूसरे बच्चे के आने को अदबदाकर मुल्तवी रखा जा रहा है .पहला बच्चा समय से उसके बाद पूरी तवज्जो कामकाजी सफलता पर व्यवसाय गत तकाजों पर .दूसरी मर्तबा गर्भ धारण न कर पाने की स्थिति में ऐसी महिलाएं ही फिर से फर्टिलिटी माहिरों के पास पहुँच रहीं हैं .
मुंबई महानगरी में चालीसा के पार अब माँ बनने वाली महिलाओं की तादाद ५ % है .पद प्रतिष्ठा को काबिज रखना ,सास ससुर से अलग एक घरौन्दा बनाना खुला बड़ा आवास हासिल करना अब प्राथमिकताओं में ऊपर आ रहा है .परिवार का आकार इसी के अनुरूप सिमट रहा है .
फिर भी तीस के पार माँ बनने का चलन मुंबई में अभी भी बना हुआ है चालीस के पार माँ बनने का चलन अमरीका और इंग्लैण्ड की तरह यहाँ अभी नहीं पसरा है .दिखाई ज़रूर दिया है .
एक ख़ास व्यवसाय -सचेत वर्ग में देर से मातृत्व हासिल करने वाली पढू(पढ़ाकू ) महिलाओं की संख्या ज़रूर बढ़ रही है .
This pool of older mothers is growing within such a career -oriented segment ,which itself is growing .
यहाँ भारत में इस बदलते चलन को लेकर कोई सूक्ष्म सर्वे भी पश्चिम की तरह नहीं हुए हैं .
In the UK ,last December the National Health Service said there was a 15 % increase in deliveries of women in their 40s over the past five years.
इंग्लैण्ड में जनवरी २ ० १ ३ में यु के आफिस आफ नेशनल स्टेटिस्टिक्स ने बतलाया -कुल पैदा हुए बच्चों में अब पचास फीसद ऐसे नौनिहालों का है जिनकी माताएं तीस साला या उससे भी ज्यादा उम्र की हैं .अमरीका में अब अधिकाधिक महिलाएं ३५ साल की उम्र के पार ही पहली मर्तबा माँ बन रहीं हैं .
अच्छी बात यही है संभवतया आज भी मुंबई में पहली मर्तबा माँ बनने वाली महिलाओं की औसत उम्र २ ५ ,२ ६ ,२ ७ के गिर्द ही है (Mid 20 s ).
But the urban women who pursues higher education and sets for herself high career goals often puts the demanding boss before even attempting to make demanding babies.
भारतीय मानकों के अनुसार आज भी ३ ४ साल की उम्र में पहली मर्तबा माँ बनना देर से माँ बनना समझा जाता है .और इस उम्र में अगर गर्भ गिर जाए फिर सालों बाद भी IVF का ही सहारा लेना पड़ता है .
अब अधिकाधिक महिलाओं और भी दम्पति को भी पहले सलीका दार ज़िन्दगी चाहिए बड़ा आवास चाहिए ,बच्चा पैदा करने से पहले बढ़िया स्कूल ही नहीं Day care centre की भी आश्वस्ति चाहिए .पारिवारिक कोर्ट कचहरी में भी अब निस्संतान दंपत्ति सुलह सफाई से परस्पर सहमती से तलाक के लिए आगे आ रहे हैं .यह एक नया चलन है .बच्चा होना न होना उस रूप में प्राथमिकताओं में है ही नहीं .
विशेष :इसी श्रृंखला में आगे पढ़िए एक और ट्रेंड -ऐसी महिलाएं भी है जो जीवन से परम संतुष्ट हैं मातृत्व उनकी प्राथमिकताओं में होना दूर की बात ही नहीं दकयानूसी भी है , गैर ज़रूरी बात है .अगर आप स्वार्थहीन हैं ,बच्चा गोद लीजिए ,अपना बच्चा तो स्वार्थी लोग पैदा करते हैं जिससे आगे जाके मिलता कुछ नहीं है बदले में सिवाय छलावे के .
4 टिप्पणियां:
यह सामाजिक परिवर्तन का सच तो है, पर क्या यह सच सही है, गड्ढे में जाने के लिए हो रहे हैं ये परिवर्तन। बहुत भ्रमित हो गया है आदमी इक्कसवीं सदी मे। जाने आगे क्या होगा। एक पोस्ट पर टिप्पणीद्वय हेतु धन्यवाद।
देर से मातृत्व हासिल करना जीवन शैली चयन हैं स्वेच्छिक है किसी ने थोपा नहीं हैं .महत्व कान्क्षाओं का अपना आकाश और भंवर है .bahut hi samvedanshil bat par aapki sarthak prastuti ke liye dhanyavad ....sahi hi hai kasturi kundali base ..mrig dhundhe wanmahi .....asli khushi ko chhod log paison aur tathakathit cairiar ke pichhe bhag rahe hain.....
Yes its truth and its difficult to change
नौकरी में ऊपर बढ़ने की चाह अपनी जगह है, सन्तान सुख अपनी जगह। समय रहते प्राथमिकतायें भी रहती हैं।
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