कैंसर से जुड़े आमफहम मिथ और यथार्थ
मिथ 1:कैंसर का नाम कान में पड़ते ही पहला ख्याल आता है मन में -अरे मुझे कैसे हो सकता है कैंसर ,मुझे नहीं हो सकता ,कभी नहीं हो सकता .
बेहतर है इस तरफ से आँखें मूंदे रहा जाए क्योंकि अगर सचमुच में यह कैंसर ही है तो फिर तो गए काम से .मौत का वारंट होता है कैंसर .
ये दोनों ही बातें महज़ मिथ हैं मौत की असली वजह कैंसर का देर से इल्म होना है देर से ही इलाज़ के लिए आगे आना है .७ ० %मामलों में लोग रोग के आखिरी चरणों में टर्मिनल स्टेज में ही आगे आते हैं तब तक कैंसर फ़ैल चुका होता है बढ़कर लाइलाज हो चुका होता है .यही कहना है डॉ सुरेन्द्र शाष्त्री जी का आप टाटा मेमोरियल सेंटर मुंबई में बचावी कैंसर चिकित्सा के मुखिया है (Head of preventive oncology).
मिथ २ :हरेक गांठ (अर्बुद या ट्यूमर )कैंसरमय होता है ,कैंसर गांठ होती है
दोनों तरह के जोखिम तत्व मौजूद रहते हैं -both modifiable and non -modifiable risk factors
भले हरेक गांठ कैंसर गांठ न भी हो नैदानिक परीक्षण हरेक ट्यूमर का किया जाना चाहिए .हर माहवारी में रक्तस्राव के बाद सातवें दिन दोनों स्तनों की संभावित गांठ के लिए खुद घर पे ही हर माह जांच की जानी चाहिए . देखा जाता है महिलाएं अपनी सेहत को कोई एहमियत नहीं देती हैं यही वजह है कैंसर का इल्म होते होते बहुत देर हो जाती है .यही कहना है डॉ नीता नायर का आप अशोशियेट प्रोफ़ेसर हैं सर्जिकल आन्कोलोजी की .टाटा मेमोरियल सेंटर में .हर साल टाटा मेमोरियल अस्पताल में ही कैंसर के ३,० ० ० मामले आते हैं .
टाइम्स आफ इंडिया ने एक दुतरफा संवाद टाटा मेमोरियल सेंटर के सहयोग से प्रायोजित किया था इसमें अधिकांश्तया महिलाओं ने ही शिरकत की थी .पता चला १ ६ - ६ ९ साला शहरी महिलाओं में केवल ४ .९ महिलाएं ही गर्भाशय ग्रीवा कैंसर (Cervical cancer)जांच के लिए हर तिमाही आगे आती हैं .
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं :
(१)रजोनिवृत्ति के काफी अरसे बाद भी योनी से रक्त स्राव का होना
या फिर बिना माहवारी के रक्तस्राव होना .
(२)मैथुन रत होने के बाद दर्द होना
माहिरों के अनुसार -ये दोनों ही लक्षण खतरे की घंटी हैं .
Dr Sharmila Pimple ,Professor of preventive oncology said ,that getting the HPV virus also should not be perceived as sexual promiscuity.
HPV-HUMAN PAPILLOMAVIRUS
मिथ ३ :महज़ मिथ है ऐसा मानना ,मर्द ही मुख कैंसर (Mouth cancer)का शिकार होते हैं डॉ गौरी पन्त्वैद्य के अनुसार कुल मुख कैंसर मामलों में २ ५ % महिलाएं होती हैं .यह महिलाओं को होने वाला चौथे नंबर का कैंसर है .
१. ५ -२ . ५ %महिलाएं स्मोक पैसिवली .कितनी ही गुटखा खाती हैं ,पान मसाला और सुपारी खाती हैं बदले में ओरल कैंसर की सौगात मिलती है .
Age -old Depression fuelled by new -age factors
गत दस बरसों से रेखा अकेले ही गृहस्थी को संभाले हुए थी ,पति खाड़ी देश में काम की तलाश में चले गए थे रेखा अपने बीमार पिता की देखभाल भी कर रही थी .यही नव -सामाजिक यथार्थ है लड़कियां अब अपने माँ बाप का भी सहारा बन रही हैं .लड़का जब १ ८ बरस का हुआ रेखा ने एक मेडिकल ट्रान्सक्रिप्शन सेंटर पर नौकरी कर ली .पति -पुत्र -पिता तीनों को रेखा पर नाज़ था .लेकिन इन तीनों भूमिकाओं में खटते खटते खराब परिश्थितियों ने उसकी संवेदनाओं पर इतना कुठाराघात किया वह बात बात पर चीखने चिल्लाने रोने लगी .लोगों से मिलने जुलने में वह कतराने लगी .
उसने अपने आपको सबसे अलग कर लिया .किसी से मिलने में कोई रूचि नहीं रह गई थी रेखा की .रेखा हमारे समाज में अकेली औरत नहीं है प्रतिनिधिक औरत है आज की एक साथ तीन तीन भूमिकाओं में पिसती कुटती .रोग निदान के बाद रेखा को डिप्रेशन (अवसाद )की पुष्टि हो चुकी है .
मुंबई म्युनिसिपल कोर्पोरेशन द्वारा जुटाए गए आँकडों के अनुसार मुंबई में हर हज़ार के पीछे ३० .७ लोग
अवसाद की ज़द में आ रहे हैं .
मनोरोगों के माहिर इस नव -यथार्थ को MSD FACTOR कह रहे हैं .जहां औरत और मर्दों के घर से बाहर काम के घंटो में कोई फर्क नहीं रह गया है .
MSD बोले तो बहुरूपा नारी के तीन रोल -MOTHER ,SPOUSE AND DAUGHTER.तीनों ही भूमिकाओं का
सम्मिलित दवाब ही रेखा को अवसाद के ज़द में ले आया है .
आज शादी के बरसों बरस बाद भी एक महिला अपने माँ बाप की देखभाल में भी आगे बनी हुई है .वह मात्र माँ और पत्नी ही नहीं है एक दयालू सम्वेदना संसिक्त बेटी भी है .ये तितरफा भूमिकाएं ही एक ऐसे दवाब को निरंतर बानाए हुए हैं जिसके चलते इस स्वप्न नगरी की महिलायें अवसाद की ज़द में आ रहीं हैं .गौर तलब है माहिरों के अनुसार स्ट्रेस एक रिस्क फेक्टर है अवसाद प्रवणता के लिए .
अब लोगों को एक काम काजी कमाऊ महिला ही नहीं घरु महिला भी चाहिए जो घर में खाना भी पका सके .पेरेंट टीचर मीटिंग्स भी अटेंड कर सके .बच्चों को स्केटिंग के लिए भी ले जा सके .बच्चा बीमार पड़े तो माँ देखभाल करे ,होमवर्क भी वही कराये .
इसी सब के चलते मुंबई में हरेक पुरुष के पीछे दो महिलायें रोगनिदान के बाद अवसाद से ग्रस्त पाई जा रही हैं .
"The new woman can carry on a conflict with family ,be it over property or business .There is discord .This new dynamic means women are on the way to burnout or depression ,"said psychiatrist Harish Shetty.
सन्दर्भ -सामिग्री :-MUMBAI FOR WOMEN /TIMES CITY /Playing Multiple Roles Of Mother ,Spouse &Daughter Can Increase Stress In Women ,Especially If They Have Also Have Carrers to Chase/Health Check/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,MARCH 16 ,2013 P 2
WHAT IT IS
Depression is a common mental disorder characterized by sadness ,loss of interest or pleasure ,feelings of guilt or low self -worth ,disturbed sleep or appetite ,feelings of tiredness ,poor concentration .
It can be long lasting or recurrent ,impairing a person's ability to function at work or school .
When mild ,people can be treated without medicines ;when moderate or severe people may need medication and professional help .
Leading cause of disabilty for both males and females ,but burden of depression is 50%higher for females than males .
At its most severe ,can lead to suicide .There are an estimated 1 million deaths every year across the world.
Worldwide ,over 350 million people of all ages suffer from depression .
In India & Mumbai
One in five Indians needs health councelling.
1% of Indians suffer from serious mental health disorders ;5 to 10%suffer from moderate disorders .
In Mumbai ,depression hits 30.7 out of 1,000 people,say BMC stats
GENDER GAP IN DEPR
Twice as many women as men experience depression .Hormonal changes could cause mood changes and depressed feelings ,but genetics and experiences also play a role.Some reasons:
Pubery Hormonal changes during puberty increase some girls' risk of developing depression .
Premenstrual problems
Pregnancy Hormonal changes can effect mood .
Postpartum depression
Perimenopause During transition to menopause , a stage called perimenopause ,hormone levels may fluctuate erratically.
Cultural/social reasons
Unequal power and financial status ; work and home responsibilities
;sexual/physical abuse.
The working women should prioritize between career and home,and
change her priorities as the
situation demands.As she does the balancing act ,the only person she
is liable to neglect is herself .She
feels guilty and does not eat or sleep properly ,which may cause
depression .But life is not about what
you can have ,it is about what you can not neglect .
-Says Anjali Chhabria PSYCHIATRIST
We have tested over 282 women since 2011 to check their fertilty chances through the Anti-Mullerian Hormone test.After the age of 35 ,there was a significant dip in ovarian reserve.But many women in their 40s want a baby .Women could check their egg reserve and plan their careers or lives accordingly .They may have to take some time out to start families ,and then go back to achieving what they aspire for .
-Vipla Puri Consulatant ,Dept Of Lab -Medicine ,Hinduja
मिथ 1:कैंसर का नाम कान में पड़ते ही पहला ख्याल आता है मन में -अरे मुझे कैसे हो सकता है कैंसर ,मुझे नहीं हो सकता ,कभी नहीं हो सकता .
बेहतर है इस तरफ से आँखें मूंदे रहा जाए क्योंकि अगर सचमुच में यह कैंसर ही है तो फिर तो गए काम से .मौत का वारंट होता है कैंसर .
ये दोनों ही बातें महज़ मिथ हैं मौत की असली वजह कैंसर का देर से इल्म होना है देर से ही इलाज़ के लिए आगे आना है .७ ० %मामलों में लोग रोग के आखिरी चरणों में टर्मिनल स्टेज में ही आगे आते हैं तब तक कैंसर फ़ैल चुका होता है बढ़कर लाइलाज हो चुका होता है .यही कहना है डॉ सुरेन्द्र शाष्त्री जी का आप टाटा मेमोरियल सेंटर मुंबई में बचावी कैंसर चिकित्सा के मुखिया है (Head of preventive oncology).
मिथ २ :हरेक गांठ (अर्बुद या ट्यूमर )कैंसरमय होता है ,कैंसर गांठ होती है
दोनों तरह के जोखिम तत्व मौजूद रहते हैं -both modifiable and non -modifiable risk factors
भले हरेक गांठ कैंसर गांठ न भी हो नैदानिक परीक्षण हरेक ट्यूमर का किया जाना चाहिए .हर माहवारी में रक्तस्राव के बाद सातवें दिन दोनों स्तनों की संभावित गांठ के लिए खुद घर पे ही हर माह जांच की जानी चाहिए . देखा जाता है महिलाएं अपनी सेहत को कोई एहमियत नहीं देती हैं यही वजह है कैंसर का इल्म होते होते बहुत देर हो जाती है .यही कहना है डॉ नीता नायर का आप अशोशियेट प्रोफ़ेसर हैं सर्जिकल आन्कोलोजी की .टाटा मेमोरियल सेंटर में .हर साल टाटा मेमोरियल अस्पताल में ही कैंसर के ३,० ० ० मामले आते हैं .
टाइम्स आफ इंडिया ने एक दुतरफा संवाद टाटा मेमोरियल सेंटर के सहयोग से प्रायोजित किया था इसमें अधिकांश्तया महिलाओं ने ही शिरकत की थी .पता चला १ ६ - ६ ९ साला शहरी महिलाओं में केवल ४ .९ महिलाएं ही गर्भाशय ग्रीवा कैंसर (Cervical cancer)जांच के लिए हर तिमाही आगे आती हैं .
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर के कुछ आम लक्षण इस प्रकार हैं :
(१)रजोनिवृत्ति के काफी अरसे बाद भी योनी से रक्त स्राव का होना
या फिर बिना माहवारी के रक्तस्राव होना .
(२)मैथुन रत होने के बाद दर्द होना
माहिरों के अनुसार -ये दोनों ही लक्षण खतरे की घंटी हैं .
Dr Sharmila Pimple ,Professor of preventive oncology said ,that getting the HPV virus also should not be perceived as sexual promiscuity.
HPV-HUMAN PAPILLOMAVIRUS
मिथ ३ :महज़ मिथ है ऐसा मानना ,मर्द ही मुख कैंसर (Mouth cancer)का शिकार होते हैं डॉ गौरी पन्त्वैद्य के अनुसार कुल मुख कैंसर मामलों में २ ५ % महिलाएं होती हैं .यह महिलाओं को होने वाला चौथे नंबर का कैंसर है .
१. ५ -२ . ५ %महिलाएं स्मोक पैसिवली .कितनी ही गुटखा खाती हैं ,पान मसाला और सुपारी खाती हैं बदले में ओरल कैंसर की सौगात मिलती है .
Age -old Depression fuelled by new -age factors
गत दस बरसों से रेखा अकेले ही गृहस्थी को संभाले हुए थी ,पति खाड़ी देश में काम की तलाश में चले गए थे रेखा अपने बीमार पिता की देखभाल भी कर रही थी .यही नव -सामाजिक यथार्थ है लड़कियां अब अपने माँ बाप का भी सहारा बन रही हैं .लड़का जब १ ८ बरस का हुआ रेखा ने एक मेडिकल ट्रान्सक्रिप्शन सेंटर पर नौकरी कर ली .पति -पुत्र -पिता तीनों को रेखा पर नाज़ था .लेकिन इन तीनों भूमिकाओं में खटते खटते खराब परिश्थितियों ने उसकी संवेदनाओं पर इतना कुठाराघात किया वह बात बात पर चीखने चिल्लाने रोने लगी .लोगों से मिलने जुलने में वह कतराने लगी .
उसने अपने आपको सबसे अलग कर लिया .किसी से मिलने में कोई रूचि नहीं रह गई थी रेखा की .रेखा हमारे समाज में अकेली औरत नहीं है प्रतिनिधिक औरत है आज की एक साथ तीन तीन भूमिकाओं में पिसती कुटती .रोग निदान के बाद रेखा को डिप्रेशन (अवसाद )की पुष्टि हो चुकी है .
मुंबई म्युनिसिपल कोर्पोरेशन द्वारा जुटाए गए आँकडों के अनुसार मुंबई में हर हज़ार के पीछे ३० .७ लोग
अवसाद की ज़द में आ रहे हैं .
मनोरोगों के माहिर इस नव -यथार्थ को MSD FACTOR कह रहे हैं .जहां औरत और मर्दों के घर से बाहर काम के घंटो में कोई फर्क नहीं रह गया है .
MSD बोले तो बहुरूपा नारी के तीन रोल -MOTHER ,SPOUSE AND DAUGHTER.तीनों ही भूमिकाओं का
सम्मिलित दवाब ही रेखा को अवसाद के ज़द में ले आया है .
आज शादी के बरसों बरस बाद भी एक महिला अपने माँ बाप की देखभाल में भी आगे बनी हुई है .वह मात्र माँ और पत्नी ही नहीं है एक दयालू सम्वेदना संसिक्त बेटी भी है .ये तितरफा भूमिकाएं ही एक ऐसे दवाब को निरंतर बानाए हुए हैं जिसके चलते इस स्वप्न नगरी की महिलायें अवसाद की ज़द में आ रहीं हैं .गौर तलब है माहिरों के अनुसार स्ट्रेस एक रिस्क फेक्टर है अवसाद प्रवणता के लिए .
अब लोगों को एक काम काजी कमाऊ महिला ही नहीं घरु महिला भी चाहिए जो घर में खाना भी पका सके .पेरेंट टीचर मीटिंग्स भी अटेंड कर सके .बच्चों को स्केटिंग के लिए भी ले जा सके .बच्चा बीमार पड़े तो माँ देखभाल करे ,होमवर्क भी वही कराये .
इसी सब के चलते मुंबई में हरेक पुरुष के पीछे दो महिलायें रोगनिदान के बाद अवसाद से ग्रस्त पाई जा रही हैं .
"The new woman can carry on a conflict with family ,be it over property or business .There is discord .This new dynamic means women are on the way to burnout or depression ,"said psychiatrist Harish Shetty.
सन्दर्भ -सामिग्री :-MUMBAI FOR WOMEN /TIMES CITY /Playing Multiple Roles Of Mother ,Spouse &Daughter Can Increase Stress In Women ,Especially If They Have Also Have Carrers to Chase/Health Check/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,MARCH 16 ,2013 P 2
WHAT IT IS
Depression is a common mental disorder characterized by sadness ,loss of interest or pleasure ,feelings of guilt or low self -worth ,disturbed sleep or appetite ,feelings of tiredness ,poor concentration .
It can be long lasting or recurrent ,impairing a person's ability to function at work or school .
When mild ,people can be treated without medicines ;when moderate or severe people may need medication and professional help .
Leading cause of disabilty for both males and females ,but burden of depression is 50%higher for females than males .
At its most severe ,can lead to suicide .There are an estimated 1 million deaths every year across the world.
Worldwide ,over 350 million people of all ages suffer from depression .
In India & Mumbai
One in five Indians needs health councelling.
1% of Indians suffer from serious mental health disorders ;5 to 10%suffer from moderate disorders .
In Mumbai ,depression hits 30.7 out of 1,000 people,say BMC stats
GENDER GAP IN DEPR
Twice as many women as men experience depression .Hormonal changes could cause mood changes and depressed feelings ,but genetics and experiences also play a role.Some reasons:
Pubery Hormonal changes during puberty increase some girls' risk of developing depression .
Premenstrual problems
Pregnancy Hormonal changes can effect mood .
Postpartum depression
Perimenopause During transition to menopause , a stage called perimenopause ,hormone levels may fluctuate erratically.
Cultural/social reasons
Unequal power and financial status ; work and home responsibilities
;sexual/physical abuse.
The working women should prioritize between career and home,and
change her priorities as the
situation demands.As she does the balancing act ,the only person she
is liable to neglect is herself .She
feels guilty and does not eat or sleep properly ,which may cause
depression .But life is not about what
you can have ,it is about what you can not neglect .
-Says Anjali Chhabria PSYCHIATRIST
We have tested over 282 women since 2011 to check their fertilty chances through the Anti-Mullerian Hormone test.After the age of 35 ,there was a significant dip in ovarian reserve.But many women in their 40s want a baby .Women could check their egg reserve and plan their careers or lives accordingly .They may have to take some time out to start families ,and then go back to achieving what they aspire for .
-Vipla Puri Consulatant ,Dept Of Lab -Medicine ,Hinduja
7 टिप्पणियां:
bahut sahi avm upyogi jankari ...generaaly...mahilaayen is bare me anjaaan rahti hain ...
जी आदरणीय-
गलतफहमियां दूर हुईं-
आभार
नाम सुन के डर तो लगता है ... पर कई केंसर आज ठीक हो जाते हैं ... हमारे ऑफिस में एक व्यक्ति का गले का केंसर ठीक हुआ है ... इलाज लंबा चला पर आबू धाबी में एक केंसर इंस्टिट्यूट है वहाँ उसने लाज कराया अब ठीक है ...
आपकी सलाह उपयोगी है।
आज की भयावह बीमारी.दिगम्बर नासवा जी की बात का सहमत हूँ,मैंने भी यहाँ आबुधाबी में देखा है कैंसर के आपरेशन के बाद ठीक होते हुए.
इन मिथकों से कितनों की जान चली जाती है इसलिए जागरूकता का प्रसार आवश्यक है .
thank u sir to sharing with us this important information ....i have lost my father because of cancer 6yrs back ...
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