शनिवार, 2 मार्च 2013

आरोग्य प्रहरी

आरोग्य प्रहरी 

(१)प्यास लगने पर एल्कोहल और मीठे पेय से बचें (पहले पानी ही पियें ).यदि पानी के स्थान पर प्यास बुझाने के लिए एल्कोहल और अन्य मीठे पेयों का इस्तेमाल किया ,शरीर में और भी कमी हो जायेगी पानी की .एक बूँद एल्कोहल की जुबां से १ ० ० ० बूँद पानी खींच लेती है ,खासकर खालिस (Neat )पीने वाले नोट करें .जी करता है प्यास लगे ,लेकिन श्री मान कोक या कोई अन्य कोला पेय ऐसे में पीने से प्यास बुझती नहीं है बढ़ जाती है .

(२)अंगूर का ग्लाइसॆमिक इंडेक्स कम रहता है .खून में घुली शक्कर के संतुलन और इन्सुलिन के विनियमन (नियंत्रण ,रेगुलेशन )में यह सहायक रहता है .किसी ख़ास खाद्य खाने के बाद कितनी तेज़ी से आपका ब्लड शुगर लेविल ऊपर जाता है ,स्पाइक करता है इसी का सूचक होता है ग्लाइसॆमिक इंडेक्स .

निम्न ग्लाईसीमिक खाद्य खाने के बाद खून में शक्कर का स्तर धीरे धीरे और एक समान गति से बढ़ता है यकायक नहीं .

हाइपोग्लाइसीमिया (खून में शक्कर का स्तर यकायक गिर जाने ६ ० मिलीग्राम फीसद या और भी कम हो जाने पर )हाईग्लाईसीमिक खाद्य दिए जाते हैं ,कठोर परिश्रम ,कसरत के बाद भी ऐसा करते हैं ताकि ऊर्जा की भरपाई जल्दी से हो .  


(3)GENES THAT UP CARDIOVASCULAR DISEASE RISK FOUND

Studies screening the genome of hundreds of thousands of individuals (known as Genome wide association studies or GWAS )have linked more than 100 regions in the genome to the risk of developing cardiovascular disease .The findings were published in the Journal PLoS Genetics.






(४ )अंजीर का फल केल्शिअम से भरपूर है .इसका सेवन अस्थि घनत्व (हड्डियों की मजबूती ,BONE DENSITY)को बढ़ाता  है .

(५ )स्ट्राबरीज़ में ऐसे एंटीओक्सिडेंट तथा पादपरसायन (PHYTOCHEMICALS)मौजूद रहते हैं जो अनेक रोगों से  पूर्व की एक स्थिति इन्फ्लेमेशन को कम करते हैं .

(६ )योरपीय संघ की एक विज्ञान पत्रिका DIABETOLOGIA में प्रकाशित एक ताज़ा रिपोर्ट में उन लोगों को जिन्हें जीवन शैली रोग मधुमेह २(DT2,DAIBETES TYPE TWO) होने का ख़तरा ज्यादा है नियमित व्यायाम करने के अलावा कमसे कम बैठे बैठे काम करने तथा अधिक से अधिक चलते फिरते रहने की सलाह दी गई है .

(७ )FISH OIL CAN PROTECT AGAINST SKIN CANCER :STUDY

मच्छी के तेल का नियमित सेवन हमारे चर्म  कवच  प्रतिरक्षण(skin immunity )को मजबूती  प्रदान करता है .सौर विकिरण के हानिकारक अंश से बचाव करता है . 

Specifically ,it also reduced sunlight -induced suppression of the immune system ,known as immunosuppression ,which affects the body's ability to fight skin cancer and infection .

(८ )यूकेलिप्टस का तेल न सिर्फ पेशीय दर्द की उग्रता को कम करता है ,घावों को भरने , खुरदरी चीज़ से रगड़ घिसट खाके कटी फटी चमड़ी तथा कीट दंश में भी राहत दिलवाता है .चुपड़ लीजिये इसे असरग्रस्त चर्म के हिस्से पर .

(९ )प्लेन पॉप कोर्न सौ फीसद होल- ग्रेन है ,रेशा समोए है ,एंटीओक्सिडेंट से भर पूर है .

(१ ० )Pessimists On Top 

Remember that saying about happy people being healthy people?All wrong.A  new study at a German university has shown that pessimists are ,in fact likely to live longer ,healthier lives than optimists given that the former's outlook happens to be the realistic one more often than not .It's the devil's own choice -live a long ,miserable life or a shorter ,happier one.

साथ में पढ़िए -

विज्ञान दिवस के इस बरस के प्रतिपाद्य पर विशेष 

पोस्ट :

आनुवंशिक तौर पर सुधरी फसलों की हकीकत  ,कितना खतरनाक है यह खेल जो खेला जा रहा है .(दूसरी क़िस्त )




ब्लॉगर रविकर 
धरती बंजर कर रहा, पौरुष पर आघात |
सत्यानाशी बीज का, छल कपटी आयात |

छल कपटी आयात, जड़ों हिजड़ों की पीड़ा |
करते दावा झूठ, फसल को खाता कीड़ा |

बढे कर्ज का बोझ, बड़ी आबादी मरती |
उत्पादन घट जाय, होय बंजर यह धरती ||

.




बढती आबादी का पेट भरने का नायाब नुस्खा बतलाया जा रहा है कथित आनुवंशिक तौर पर संशोधित फसलों 

को .दरहकीकत जीनीय स्तर पर इनके साथ अनुचित छेड़छाड़ की जाती है .हकीकत में कोई ऐसी आनुवंशिक 

तौर पर इन फसलों की सुधरी हुई कोई किस्म नहीं है जो प्रतिएकड़ ज्यादा फसल (उत्पाद )देती हो .अमरीकी 

कृषिविभाग को यदि प्रामाणिक मानें तो आनुवंशिक तौर पर संशोधित मक्का और सोयाबीन का प्रति -एकड़ 

उत्पाद इनकी परम्परागत किस्मों के बरक्स प्रति एकड़ कम ही रहता है .

न ही इनके साथ कीटनाशी ,अन्य नाशीजीव एवं खरपतवार नाशी के इस्तेमाल में कोई कमीबेशी आती है .महज़ 

मीडिया हाइप है यह कहना ,"इन फसलों को कीड़ा नहीं लगता ".

Charles Benbrook of the Washington State Universityke के माहिरों के अनुसार दावों के ठीक विपरीत १९ ९ ६ 

-२ ० १ १ के दरमियान अमरीका में कीटनाशियों के कुल इस्तेमाल में  १ ४ ४ मिलयन किलोग्राम की वृद्ध दर्ज़ हुई 

है .अलावा इसके ज़मीन का कोई १ ४ .५ मिलियन एकड़ रकबा 'सुपर वीड्स 'की चपेट में भी आया .इन 

खरपतवार नाशियों से पार पाना उतना आसान नहीं होता है .

संदूषण का आज आलम यह है ,कोई २ ३ किस्में खरपतवार की अब सुपरवीड्स की श्रेणी में चली आई  हैं .

          इन फसलों की कथित निरापदता भी हालिया दीर्घावधि  अध्ययनों से बे -साख्ता निशाने पे आई है .फ्रांस के माहिरों ने जब कोई दो साल तक चूहों को,मशहूर  बीज निगम द्वारा तैयार की गई  'Monsanto's Round -up -Ready GM maize खिलाई तब देखने में आया ,इनके गुर्दे आकार में बहुत बढ़ गए हैं .इनकी स्तन ग्रन्थियों में ट्यूमर (अर्बुद या कैंसर गांठ )बन गए हैं .

शरीर के अन्य प्रमुख अंगों में समस्याएं प्रगटित हुई .इनमें मृत्यु दर भी ज्यादा दर्ज़ हुई .

Against the usual practice of such studies involving feeding rats with GM foods for 90 days ,Giles -Eric Seralini ,a molecular biologist at the University of Caen in France had for the first time ever experimented with rats for two years ,which corresponds to the entire human lifespan .As expected ,the shocking results ,peer -reviewed and published in a respected scientific journal ,have already created quite a furore internationally .

ऐसे में कथित आनुवंधिक तौर पर सुधरी हुई फसलों की किसी भी  किस्म की बात करना वह भी आधुनिक मानव के इस्तेमाल के लिए दिमाग से पैदल होना ही कहलायेगा .  मानवीय स्वास्थ्य एवं हमारे पर्यावरण तंत्र के लिए ऐसे में खतरे ही खतरे  हैं .जबकि खाद्य पदार्थों की असल में कोई कमी भी नहीं है .

असल बात है और  एहम बात है: खाद्य पदार्थों की बर्बादी पे लगाम लगाना .सब तक इसकी पहुँच के मौके पैदा 

करना .तथा खाद्य पदार्थों के न्याय संगत  वितरण को सुनिश्चित  बनाना  ,कोई सुन  रहा है आसपास ?


नेशनल साइंस डे पर विशेष :इस बरस  राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का प्रतिपाद्य रहा है :

आनुवंशिक  तौर पास संशोधित फसलें और खाद्य सुरक्षा .

खाद्य सुरक्षा और जीनीय हेराफेरी से तैयार फसलें :

चंद हफ्ता पहले वार्षिक ऑक्सफोर्ड फारमिंग कांफ्रेंस के समक्ष बोलते हुए अपने वक्तव्य में पर्यावरण विद्रोही Mark Lynas ने  विज्ञानों की राष्ट्रीय  अकादमी के परिपत्रों में प्रकाशित शोध के हवाले से बतलाया -आइन्दा बढती हुई  आबादी का पेट भरने  के लिए आज के बरक्स दोगुने खाद्यान्नों  की ज़रुरत पड़ेगी .आनुवंशिक तौर पर सुधरी फसलों की नस्ल ही इस मांग को पूरा कर सकती है . लक्षित वर्ष २ ० ५ ० का पेट भरने के लिए हमें आनुवंशिक तौर पर सुधरी हुई फसलें चाहिए जिनसे कम खाद पानी ,कम खरपतवार नाशी के   इस्तेमाल से ही प्रति एकड़ ज्यादा फसल (फसली उत्पाद )मिल सकती है .

चलिए खंगाल लेते हैं दोनों तर्कों को उपलब्ध तथ्यों के आईने में :

विश्व की आबादी आज सात अरब है जो २ ० ५ ० के बरस तक बढ़के ९ अरब हो जायेगी .संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार २ ० १ २ में दुनिया भर में ८ ७ करोड़ से भी ज्यादा लोग बे -साख्ता अल्पपोषित थे ,२ ५ करोड़  भारतीय भूख से बे हाल थे .इन आंकड़ों से यह भ्रम पैदा होता है दुनिया में सचमुच  खादायान्नों का तोड़ा है ".जीएम क्रोप्स " के समर्थन में हवा बनाने के लिए हर मंच, हर आलमी बैठक में ये ही आंकड़े उछाल दिए जाते हैं . 

हकीकत यह है: न आलमी स्तर पर और न भारत में ही खादायान्नों की कमी  है .चलिए वर्ष २ ० १ २ के (आलमी स्तर पर) कृषि उत्पाद पर नजर डालतें हैं . बावजूद इसके ,इस बरस अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ज़बरजस्त सूखे की लपेट में आये दुनिया में तब भी २ २ ३ ९ .४ मिलियन मीट्रिक टन अनाज पैदा हुआ .इससे १ ३ अरब लोगों का पेट भरा जा सकता है .हरेक के हिस्से में तब भी तकरीबन एक पोंड अनाज आयेगा .दूसरे  शब्दों में आज जितना अन्न भूमंडलीय स्तर पर पैदा होता है उतने से आज भी १ ४ अरब लोगों का पेट भरा जा सकता है .

प्रत्येक आदमी को आज भी ४ ६ ० ० केलोरीज़ वाला भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है जबकि सिफारिश २,४ ० ० केलोरीज़ प्रतिदिन की जाती है .(स्रोत : International Assessment  of Agriculture knowledge ,Science and Tecnology for Development (IAASTD).

कहाँ है अन्न संकट ?

संकट अन्न के  (कु )प्रबंध से जुड़ा है हर कोई आँख मूंदे है इस ओर  से .

अन्न की बर्बादी :

अमरीका ,कनाडा और योरोप में ४० % खाद्यान इस्तेमाल न होने के कारण फैंक दिया जाता है बर्बाद हो जाता है .

हर बरस अमरीकी १ ६ ५ अरब डॉलर का खाद्यान बेकार कर देते हैं .इतने से पूरे उपसहारवी अफ्रीका  का भरणपोषण हो सकता है .

इटली में जितना खाद्यान्न बेकार कर दिया जाता है उतने से हंगरी और इथियोपिया दोनों का पेट भर सकता है .आलमी स्तर पर पैदा किया गया ५ ० % खाद्यान्न बेकार चला जाता है .(स्रोत :UK Institution of Mechanical Engineers ).

अमरीका के सुपर बाज़ारों में भंडारित कुल फल और तरकारियों का ५ ० % व्यर्थ हो जाता है .सड़ने की वजह से  इसे फैंक दिया जाता है .इस बर्बादी को हटाने का मतलब दुनिया से भूख और कुपोषण का नामोनिशाँ मिटा देना है .

चलिए बात भारत की करते हैं :

१ जनवरी २ ० १ २ ,छ :करोड़ साठ लाख टन (६ ६ मिलियन टन )खाद्यान्न था इस वक्त यहाँ पर .इस अनाज को बोरियों में भरके यदि बोरियाँ एक के ऊपर एक रख दी जाएँ तो  यह चन्द्रमा को छूके पृथ्वी को दोबारा छू लेंगी  .२ ० ० १ के बाद से हर साल यहाँ इतना ही अन्न पैदा होता रहा है .

फ़ालतू अनाज का निर्यात कर देती है हमारी "नरेगा" वाली आम आदमी की सरकार .इस आर्थिक बरस (२ ० १ १ - १ २ )में भी जहां ९. ५ मिलियन गेंहूँ निर्यात होगा वहीँ चावल के लिए यह आंकड़ा ९ मिलियन टन के पार जा चुका है .


सरकार खादायान्नों की सरकारी खरीद बंद करने का मन बनाए हुए है .आम आदमी को बाज़ार के हवाले कर दिया जाएगा .

(ज़ारी )


विशेष :दूसरी क़िस्त में पढ़िए आनुवंशिक तौर पर सुधरी फसलों की हकीकत  ,कितना खतरनाक है यह खेल जो खेला जा रहा है .
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T he glycemic index, or glycaemic index, (GI) provides a measure of how quickly blood sugar levels (i.e. levels of glucose in the blood) rise after eating a particular type of food. The effects that different foods have on blood sugar levels vary considerably. The glycemic index estimates how much each gram of available carbohydrate (total carbohydrate minus fiber) in a food raises a person's blood glucose level following consumption of the food, relative to consumption of pure glucose.[1] Glucose has a glycemic index of 100.
A practical limitation of the glycemic index is that it does not take into account the amount of carbohydrate actually consumed. A related measure, the glycemic load, factors this in by multiplying the glycemic index of the food in question by the carbohydrate content of the actual serving.

A low-GI food will release glucose more slowly and steadily, which leads to more suitable postprandial (after meal) blood glucose readings. A high-GI food causes a more rapid rise in blood glucose levels and is suitable for energy recovery after exercise or for a person experiencing hypoglycemia.

(3)GENES THAT UP CARDIOVASCULAR DISEASE RISK FOUND

Studies screening the genome of hundreds of thousands of individuals (known as Genome wide association studies or GWAS )have linked more than 100 regions in the genome to the risk of developing cardiovascular disease .The findings were published in the Journal PLoS Genetics.





11 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

Nice Information

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सर जी ,जिंदगी का हर प्रहर आरोग्य
से सजता
रहे ,आप की रहबरी का रास्ता दीखता रहे

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सार्थक जानकारी दी आपने,आभार.

अशोक सलूजा ने कहा…

वीरू भाई राम-राम ! शुभकामनाओ के लिए आभार |
बाकि अच्छी जानकारियों का तो खज़ाना हैं आप ....
आभार|

अशोक सलूजा ने कहा…

वीरू भाई राम-राम ! शुभकामनाओ के लिए आभार |
बाकि अच्छी जानकारियों का तो खज़ाना हैं आप ....
आभार|

पुरुषोत्तम पाण्डेय ने कहा…

बहुत बढ़िया ढंग से लिखी गयी जानकारियाँ. आपकी तारीफ़ के लिए शब्द कम पड जाते हैं.इस पर रविकर जी की कुंडली, आनन्द आ गया.

Anita ने कहा…

कहीं खाने को अन्न नहीं तो कहीं बेकार जा रहा है..अजब है यह दुनिया का व्यापार...

shalini rastogi ने कहा…

आपके लेख जानकारी प्रद होने के साथ साथ आँखे खोलने वाले होते हैं ... इतनी अच्छी जानकारी के लिए आभार!

रविकर ने कहा…

सही सलाह
आभार आदरणीय-

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकारी...आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

याद रखी जाने वाली सलाह..