सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

आ अब लौट चलें ...अपनी जड़ों की और......

बेक टू बेसिक्स !देयर इज डिस -कनेक्ट बिटवीन हाव वी आर डिज़ा -इंड टू लिव एंड दी वे वी आर लिविंग .इज ए रिटर्न टू केवमेन लाइफ स्टाइल दी न्यू हेल्थ सीक्रेट ?नोना वालिया फाइंड्स आउट .टाइम्स न्यूज़ नेट वर्क /नोना .वालिया @टाइम्स ग्रुप .कोम /टाइम्स लाइफ /सन्डे ,फरवरी २० ,२०११ ,पृष्ठ ४ )।
तंदरुस्ती का राज अब हमें अपने पूर्वजों से जानना होगा जिनका मूल मन्त्र था खाओ कम उडाओ ज्यादा केलोरीज़ .कुदरत की गोद में रहते हुए कुदरती खाना कमाके खाओ .पका पकाया नहीं ।
अब से चालीस हज़ार बरस पहले हमारा शरीर कन्दरा वासी हमारे पूर्वजों की दिनचर्या के ही अनुरूप था .जहां बैठे ठाले किसी को कुछ नहीं मिलता था .अपना भोजन तलाशना होता था .शिकार के लिए ,कंदमूल फल फूलकी तलाश में इधर से उधर दौड़ना पड़ता था ।
आज हम अपने उसी शरीर तंत्र के साथ अन्याय कर रहें हैं ।
"दी इवोल्यूशन डाइट"के लेखक एस बी मोरसे कहतें हैं :अपने उन्हीं पूर्वजों की जीवन शैली अपना कर हम फिर से अच्छी सेहत के मालिक बन सकतें हैं ।
बस स्वास्थाय्कर अनेक फलों ओर तरकारियों में से हमें अपना भोजन चुनना होगा .कुदरती /नेचर द्वारा दिए खाद्य खाने होंगें ,मशीनों द्वारा संशाधित नहीं .अपनी जैव घडी को पहचानकर उसी के अनुरूप सोना उठना कसरत करना होगा .सब कुछ बतलाती है हमारी सरका -डियन रिदम ।
हमारा शरीर आराम तलबी के हिसाब से नहीं रचा गया था .पूरी तरह से निश्चित दिखने वाली नहीं थी हमारी जीवन शैली ,शांत ओर तनाव मुक्त ।भागम भाग थी संगर्ष था .बैठा ठाला कोई न था ।
पोषण विज्ञानी डॉ .शिखा शर्मा कहतीं हैं :रेशा हीन परिष्कृत खाद्य नित नै समस्याएं पैदा कर रहा है .हम लोग खाद्यान्नों से छिटक रहें हैं .मक्का ,ज्वार ,बाजरा हमारी खुराक का हिस्सा नहीं बन पा रहा है .भारतीय चाहें न्यू -योर्क में हो या जापान ,नै दिल्ली ,में हो हर कोई वही सब खा रहा है .परिष्कृत ,कृत्रिम ,आटा,चावल सब कुछ परिष्कृत ,रेडीमेड ।
हर कोई बैठा बैठा ही काम कर रहा है .रेलवे रिज़र्वेशन के काउंटर से लेकर बैंक तक .बेशक काल सेंटर्स ओर कोर्पोरेट वर्ल्ड की सैर कर आइये ,सिदेंतरी लाइफ स्टाइल कोमन फीचर है दैनिकी का ।
पर्सनल पॉइंट की शोभा कॉल कहतीं हैं आज जो नवजात पैदा हो रहा है वह ४० ,०० पहले पैदा शिशु से भिन्न नहीं है .लेकिन हमारा परिवेश ,पर्यावरण -पारिश्थिति तंत्र सब कुछ जुदा हैं .तब्दील हो चुकें हैं .हमारी आनुवंशिक बनावट आज के कसरत हीन ,बनावटी माहौल के अनुरूप नहीं है ।
हमारी आनुवंशिक बुनावट ओर रहनी सहनी में परस्पर सम्बन्ध टूट गया है .हम बैठे ठाले खा रहें हैं .खाना पका पकाया मिल जाता है कोई मशक्कत नहीं करनी पडती इसे हासिल करने में .इसी लिए अतिरिक्त चर्बी ओर टमी हमने बढा ली है .बच्चे भी टमी लिएचर्बी चढ़ाए घूमतें हैं बड़े भी .
पोषण भी पूरा नहीं मिल रहा है .क्रत्रिम खाद्य पुष्टिकर तत्वों से दूरी बनाए हुए है .संवेगात्मक तौर/भावात्मक तौर पर हम तनाव पाले हुएँ हैं ।
लन्दन विश्विद्यालय में संपन्न इक अध्ययन के अनुसार वे तमाम लोग जो कंप्यूटर पर दिन भर में चार घंटा या ओर भी ज्यादा देर तक काम करतें हैं या फिर टी वी देखतें हैं उनके लिए मेजर हार्ट प्रोब्लम (हार्ट अटेक,मायोकार्दियेक इन -फार्क -शन आदि )का ख़तरा १२५ % बढ़ जाता है .अकसर ऐसे मामलों में मृत्यु भी हो जाती है .दो या उससे कम घंटा कंप्यूटर /टी वी के सामने बिताने वालों के लिए ऐसीकोई संभावना नहीं रहती है ।
दरअसल देर तक ऐसे बैठे बैठे काम करने को इनेक्तिविती में शुमार किया जाता है जिससे रोग संक्रमण औरअपचयन (चय-अप -चय सम्बन्धी ,मेटाबोलिक )सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो जाती हैं .यही इस बढे हुए खतरे की वजह बनती है ।
"घर से ऑफिस ,ऑफिस से घर ,बस इतनी परवाज़ ज़िन्दगी ,दफ्तर की मोहताज़ ज़िन्दगी "।
घर और ऑफिस में अटका यह आदमी कहीं भी सुकून से नहीं है ,टेंस है .चिंता ग्रस्त है ।
इसीलिए" केवमेन की जीवन शैली" अपनाने की बातचल पड़ी है .कुदरती खाने का ज़िक्र छिड़ रहा है .आवश्यता के अनुरूप ही हमें खाना चाहिए .विकास क्रम में इक खुराकी योजना हमारे लिए बनी है .हम लगातार ब्लंडर पे ब्लंडर किये जा रहें हैं .खा ज्यादा रहें है खर्च कम कर रहें हैं .इसलिए हमारा बेंक बेलेंस (टमी /चर्बी )बढ़ रही है .एब्डोमिनल ओबेसिटी सौगात है इस अधुनातन जीवन शैली की ।
कन्दरा में रहने वाली महिला लकड़ी और खाद्य सामिग्री जुटाने में दिन भर खट -ती थी .(देश के सूदूर इलाकों ,पहाड़ की औरत को आज भी लकड़ी पानी जुटाने के लिए मीलों चलना पड़ता है )लेकिन शहराती महिलायें खासकर कामकाजी आधुनिक महिला मेहनत मशक्कत से दूर ही है .शहरी खान-पान की शैली शरीर में विषाक्त पदार्थ जमा करवा रही है .इसीलिए इम्युनिटी सम्बन्धी समस्याएं आड़े आ रहीं हैं ।
कोमन कोल्ड में भी अब हम एंटी -बायतिक्स लेतें हैं (सेकेंडरी इन्फेक्शन को टाले रहने के लिए )जो नुकसानदायक साबित होता है .रोग प्रति रोधी तंत्र से समझौता करवाता है ।
समाधान व्यायाम है .जितना खाओ उतना कमसे कम उडाओ .बर्न करो केलोरीज़ को ।
आज बच्चा पैदा बाद में होता है डिब्बा बंद आहार पे पहले डाल दिया जाता है .फैड डाइट शरीर को डेमेज ही करतीं हैं .फिटनेस के माहिरों का यही कहना है .जब आप पैदा हुए थे यह फैड डाइट नहीं थी .आपके बच्चों के लिए क्यों ?माँ का दूध सर्वोत्तम आहार है ६ मासे के लिए .उसके बाद स्तन पान के साथ ,डाल दलिया ,पूरिज सभी कुछ मसल के दिया जाता है .बचपन में ही पड़ जाती है गलत खान पान की नींव .

2 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

आरामतलब जिंदगी के कारण अनेकों रोग हो रहे हैं । आज ये बहुत ज़रूरी है कि लोग मेहनतकश दिनचर्या के लाभ कों समझें ।

virendra sharma ने कहा…

shukriyaa motarmaa aapkaa .
veerubhai.