शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

भौमेतर जीवन है तो आज तक सुराग क्यों नहीं मिला उसका ?

सिद्धान्तिक भौतिकी -विद स्टीवंस हाकिंस तथा गणितीय भौतिकी -विद रोगर पेंरोज़ के अलावा और भी नाम चीन साइंसदान हैं जो भौमेतर जीवन में यकीं पाले बैठें हैं .सवाल है यदि वास्तव में बौद्धिक प्राणियों का अन्यत्र भी अस्तित्व है और वह एक ऐसी सभ्यता का प्रति-निधित्व करतें हैं जो प्रोद्योगिकी और संचार में हमसे बहुत आगे है ,तो फिर आज तक वह भी हमारा सुराग क्यों नहीं लगा पाए ?
इन्हीं सवालातों का मंथन करेगा यह आलेख ।
हमारा यह विश्व (गोचर जीवन जगत ,हमारी यह सृष्टि ,ओब्ज़र्वेबिल यूनिवर्स )अब से तकरीबन १३.७० बरस पहले तब पैदा हुआ जब अन्तरिक्ष ,काल ,पदार्थ आदि का कोई अस्तित्व नहीं था .इसे ही सृष्टि -विज्ञानी"कहतें हैं ।
टाइम जीरो -दी पॉइंट ऑफ़ सिंग्यु -लारी -टी "।
सृष्टि विदों के मुताबिक़ इसी परम अन्तरिक्ष -काल (दिक् -काल )के निर्वात में (शून्य में )एक घटना घटी .जिसकी व्याख्या हाकिंग्स -पेंरोज़ सिंग्यु -लरी -टी थयेरम्स करतीं हैं जो स्वयं आइन्स -टाइन महोदय के गुरुत्व संबंधी सापेक्षवाद का टेका लिए खड़ीं हैं ।
संदर्भित घटना पदार्थ -प्रति -पदार्थ (मैटर -एंटी -मैटर ),समानद्रव्य -मान लेकिन विपरीत गुण धर्मी आवेश लिए द्रव्य की दो कणिकाओं के परस्पर आलिंगन -आत्मघात से ताल्लुक रखती है .इन दोनों कणों ने परस्पर अल्पकालीन मिलन मनाकर आत्म ह्त्या कर ली थी ।ये कण थे इलेक्त्रोंन -पोज़ित्रोंन .
इसी वेक्यूम -फ़्लक्च्युएशन का नतीजा था "बिग बैंग "जिसे सुपर -डेंस थियरी या महा -विस्फोट सिद्धांत भी कहा जाता है ।
इस शून्य काल से पहले (बिफोर टाइम जीरो )परस्पर विनाश की यह घटना प्रति -सेकिंड हज़ारों अरबों दफा घट रही थी ,अविराम .यह सब सृष्टि पूर्व के कुछनहीं- पन में घटित हो रहा था .इस प्रकार परम निर्वात की स्थिति जीरो मॉस ,जीरो -टाइम ,जीरो -स्पेस को बनाए रही .परस्पर विनाश की यह घटना टेन टू दी पावर माइनस हंड्रेड सेकिंड्स से भी कम समय में घटरही थी .
प्रेक्षक के लिए इस घटना का कोई अर्थ नहीं था क्यों की प्रेक्षण से पूर्व ही यह चुक जाती थी ।
इस कुछ- नहीं- पन में से अप्रत्याशित तौर पर टेन टू दी पावर एट्टीनसे लेकर टेन टू दी पावर थर्टी अवसरों में से सिर्फ एक दफा एक इलेक्त्रोंन -पोज़ित्रोंन जोड़ा बच निकला .इसी से सृष्टि का जन्म हुआ .हमारे यूनिवर्स के संग एक "मिरर "निगेटिव यूनिवर्स का जन्म हुआ .यही बिग बैंग की वजह बना ।
स्रष्टि का इसी के साथ फैलाव -विस्तार का सिलसिला शुरू हुआ .गुरुतर सौर मंडलों के बीच सितारों का जन्म हुआ .पृथ्वी जैसे अनेक ग्रह उनकी परिक्रमा करने लगे .ऐसे अरबों अरब सौर मंडलों ने निहारिकाओं के सघन झुंडों को अस्तित्व मुहैया करवाया .इन्हीं के बीच यहीं कहीं गोपनीय ब्लेक होल्स (अन्तरिक्ष की काल कोठरियां थीं ।).
इनके विशाल गुरुत्व से इनके नजदीक से गुजरने वाला फोटोन(प्रकाश का सबसे छोटा कण,क्वांटम ऑफ़ लाईट )पथ विचलित हो जाता है .इनकी सतह से कुछ भी बाहर नहीं जा सकता ,प्रकाश भी नहीं इसीलिए तो इन्हें अंध कूप कहाजाता है ।
हमारी मिल्की वे गेलेक्सी में तकरीबन ३५०अरब सितारे हैं,सौर मंडल हैं .(एक नीहारिका में औसतन २०० अरब सितारे होतें हैं .).इनमे से कितनेही सितारों के गिर्द पृथ्वी जैसे ग्रह चक्कर काट रहें हैं .नासा के केप्लर अन्तरिक्ष टेलिस्कोप ने इसकी पुष्टि की है .इनकी सतह पर जल है .मंझोले दर्जे के तापमान हैं ,जीवन दाई ऑक्सीजन है ।
हमारे सौर मंडल के बाहर निकट का सौर मंडल है अल्फा -सेंटौरी.यदि हम अब तक के द्रुत गामी अन्तरिक्ष यान "हेलिओस २ "में सवार हो वहां तक पहुचना चाहें जो १,५७ ,००० मील प्रति घंटा से आगे बढ़ता है तब भी हमें १२,००० बरस लग जायेंगें .और यह तो हमारा निकट का पड़ोसी है(४.३ प्रकाश बरस की दूरी पर ) दूसरे सौर मंडल तो बहुत अधिक दूरी पर हैं .वहां तक कब पहुंचिएगा ?
देवयानी नीहारिका (एंड्रोमीडागेलेक्सी )की बात करतें हैं यह हमारी दूध गंगा (मिल्की वे गेलेक्सी )से कहीं भारी -भरकम है जो १००० अरब सितारे लिए है .२.७० मिलियन लाईट ईयर्स की दूरी बनाए हुए है यह हम से .इसके किसी सौर मंडल से निकला प्रकाश अब से कोई २.७० मिलियन ईयर्स पहले चला होगा .तब पृथ्वी पर "प्लिओ -प्लेइस्तोकेने(प्लीस्तोसिंन ) "युग रहा होगा .लेदेकर इस बरस वह प्रकाश हम तक पहुँचने वाला होगा ।
बस इसी में उस बिलियन डॉलर सवाल का हल छिपा है आखिर क्यों नहीं कथित अति -विकसित सभ्यताएं पृथ्वी जैसे क्षुद्र ग्रह वासियों से संपर्क कर पा रहीं हैं ?
आप को बतला दें पृथ्वी पर संचार की कहानी लेदेकर १२२ बरस पुरानी है .इससे पहले रेडियो -कम्युनिकेशन कहाँ था ?
वह सिग्नल जो हमने भेजे थे जिनका सफर हमसे शुरू हुआ था अभी तो हमारे अपने सौर मंडल झुण्ड से बाहर बा मुश्किल पहुंचे होंगें .सारा खेल समय और दूरी का है .दूरियां जो खगोल वैज्ञानिक हैं .एस्ट्रो -नोमिकल हैं .ज़ाहिर है -अभी तो और भी रातें सफ़र में बाकी हैं ,चरागे शव मेरे महबूब संभाल कर रख ।
सैंकड़ों साल भी लग जाएँ तो क्या ?हम तो इस बात के कायल हैं -कितनी दूरी मंजिल की हो चलते चलते कट जाती है ,कितनी रात अँधेरी हो ,पर धीरे धीरे घट जाती है ।
एक ना एक दिन मिलन होके रहेगा .कैसे होंगे वह लोग बे- शक इसका कोई निश्चय नहीं .लेकिन हम अकेले नहीं हैं .सितारों से आगे जहां और भी हैं ,तेरे सामने इम्तिहान और भी हैं ।
ग़ालिब ने यूं ही नहीं कहा होगा -मंजिल एक और बुलंदियों पर बना लेते ,काश की ,अर्स से परे होता ,मकान अपना ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-दी इंटेलिजेंट यूनिवर्स (कोंटेक्ट विद एक्स्ट्रा -टेरिस -ट्रियल लाइफ विल मार्क वन ऑफ़ रिकोर्डिद हिस्त्रीज़ मोस्ट इम्पोर्टेंट इवेंट्स )/दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,अगस्त २० ,२०१० ,पृष्ठ २२ /लीड स्टोरी ,एडिटोरियल पेज ).

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