मंगलवार, 4 मई 2010

वर्षा के आवाहन के लिए 'लेज़र पुंज '

कहतें हैं 'वृक्ष 'ना सिर्फ वर्षा का आवाहन करतें हैं ,मिटटी को भी बांधे रहतें हैं ,कटाव को रोकतें हैं .यूं कृत्रिम बारिश के लिए 'क्लाउड सीडिंग 'को आजमाया गया है जिसके तहत ऊपरी वायुमंडल में वायुयानों द्वारा 'सिल्वर आयोडाइड 'क्रिस्टलों का छिडकाव ,स्प्रे या स्तेमाल किया जाता है ।
अब स्वीटज़रलैंड के साइंसदानों की एक टोली 'अवरक्त लेज़र किरण पुंज यानी इन्फ्रा -रेड लैज़र्बीम्स 'का स्तेमाल मन चाहे समय पर बरसात करवाने के लिए कर रही हैं .यह काम पहले नियंत्रित परिस्थितियों में प्रयोगशाला और फिर मुक्त गगन में दोहराया गया है .
पहले लैब में रचा गया बादल .इस एवज एक कक्ष में निम्नतापपर शून्य से भी २४ सेल्सिअससे भी नीचे, जल संतृप्त वायु राशि(वाटर सेच्युरेतिद एयर ) तैयार की गई .(यानी हवा में इसनिम्न -तर ताप पर समाजाने वाली अधिकतम राशि तैयार की गई वायु की .)।
जब किसी नियत स्थान पर एक सुनिश्चित तापमान पर हवा में जल -वास्प यानी नमी की अधिकतम मात्रा मौजूद होती है तब वायु को संतृप कहा जाता है जल वास्प से .यानी उस स्थान पर अब और अधिक जल वास्प आ ही नहीं सकती .बरसात के दिनोंमे ऐसा ही होता है इसीलिए कपडे देर से सूखतेंहैं .जितने जल अनु कपडे से उड़तेंहैं ,उतने ही लौट आतें हैं .एक डायनेमिक ईक्युलिब्रियम (संतुलन ) जाता है .
अब इस वाटर सेचुरेतिद एयर में २२० मिलीजुल शक्ति का लेज़र पुंज एक स्पंद (पल्ज़ )के रूप में थाउजेंड मिलियन मिलियंथ ऑफ़ ए सेकिंड की अत्याल्प अवधि के लिए एक बर्स्ट के रूप में भेजा गया .इससे एक हज़ार विद्युत् संयंत्रों के तुल्य विद्युत् शक्ति पैदा हुई ।
लेज़र बर्स्ट ने वायु के परमाणुओं के बाहरी इलेक्त्रोंन खदेड़ बाहर किये .लेज़र अपने पीछे वैसी ही एक लकीर छोड़ गया जैसी वायुयान स्टीम के रूप में अपने पीछे छोड़ते चलतें हैं .ऐसा हाद्रोक्सिल -रेडिकल्स के बननेसे हुआ .हाद्रोक्सिल रेडिकल्स सल्फर और नाइट्रोजन के आक्साइदो को वायुराशी से अलग कर ऐसे कणों में तब्दील कर देतें हैं जो बादलों के लिए क्लाउड सीड्स का काम करने लगतेंहैं .
अब लेज़र लाईट का डालना बंद कर जांच करने पर पता चला ,संघनित जल की बुन्दियों का परिमाण पचास फीसद बढ़ गया है .और इस तरह तैयार बादल में कन्देंस्द वाटर (संघनित जल की मात्रा )सौ गुना बढ़ गई है .यानी पानी से लबालब भरा बादल लेब में तैयार हो चुका था ।
बर्लिन के मुक्त गगन में इस प्रयोग को दोहराया गया .ऑटम-नल आकाश में लेज़र किरण पुंज ६० मीटर ऊपर तक केन्द्रित किया गया ।
मौसमी लीडार(लाईट इन्तेंसिती दितेक्सन एंड रेंजिंग )के ज़रिये जो वायुमंडल में प्रकाश के छितराव (प्रकाश के अनु और परमाणुओं से टकरा कर बिखर जाने की घटना पर,स्केत्रिंग ऑफ़ लाईट पर आधारित होता है )पता चला, जल की बुन्दियों का घनत्व (डेंसिटी )और आकार दोनों बढ़ गएँ हैं .लीडार में लेज़र किरण पुंज का ही स्तेमाल किया गया था .जिसके डालने पर ही बुन्दियों का आकार और घनत्व बढा था ।
साइंस दान इसकी कारगरता को मानने के लिए तैयार नहीं थे .बकौल उनके खुले आकाश में लेब जैसा माहौल यानी अति उच्च नमी (आद्रता या एक्सट्रीम ह्युमिदिती )और वह भी अति निम्न तापमान पर गढ़ना मुमकिन ही नहीं है ।
लेकिन बर्लिन के आकाश में यह करिश्मा किया गया .क्रत्रिम बादल जल से संसिक्त गढा गया ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-फॉर रैन ओंन डिमांड ,ज़ेप क्लाउड विद लेज़र (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया मे४ ,२०१० )

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