बुधवार, 26 मई 2010

बेक्टीरिया के गिर्द बनता है बरसाती बादल .

ओस या फिर स्नो बरसाती बादल आदि को बनाने में ,नाभिकों के रूप में धूळ ,सूट (धुयें में उठते कार्बन के जले अध् जले कणों की मौजूदगी ज़रूरी रहती है .इन्हीं कणों के गिर्द बनता देखा गया है-रैन क्लाउड . .अब साइंसदानों को पता चला है ,नाभिक का काम बरसाती बादल के लिएएक जीवाणु समूह भी कर रहा है .यह जीवाणु है -स्यूडो -मोनस स्य्रिन्गाए ।
मोंटाना स्टेट यूनिवर्सिटी के परिसर में घुमते हुए वनस्पति रोग विज्ञानी दविड़ संड्स कहतें हैं -तमाम हिम आच्छादित परबत -मालाओं में इसी स्यूडो मोनस का डेरा है .यह बेक्टीरिया समूह कृषि फसलों को अपना कुदरती आवास बनाए रहा है .अब पता चला है 'यह मौसम -पारिस्थितिकी (वेदर -इको सिस्टम )का भी एक ज़रूरी घटक रहा है .वर्षा के चक्रं में भी इस जीवाणु समुदाय की हिस्सेदारी है ।
बेशक हवा में पसरे धूल कण,धुयें में ऊपर उठते सूट कण इतर जड न्युक्लीयाई प्रेसिपितेसन में एहम भूमिकानिभाते रहें हैं .इन्हीं के गिर्द क्न्देंसेसन (संघनन )से बरसाती बादल बनतें हैं.स्नो - फ्लेक्स (बर्फ के फाये ,स्नो क्लेद फ्लेट आइस वाटर )बनते हैं ।
साइंसदानों को स्युदोमोनस समूह के बेक्टीरिया की व्यापक उपस्थिति जंगली एवं डोमेस्टिक प्लांट्स की पत्तियोंके अलावा वृक्षों और कई तरह की ग्रासिज़ (घास )में भी मोंटाना ,मोरक्को ,फ्रांस युकोन यहाँ तक की अन्टार्कटिका के नीचे दबी बर्फ में मिली है ।
बरसाती बादलों ,इर्रिगेसन दिचिज़ में इस जीवाणु की मौजूदगी व्यापक स्तर पर दर्ज़ हुई है ।
कई हिमाच्छादित हिम चोटियों का अध्धययन करने पर इनमे से ७० फीसद में स्नो -क्रिस्टल्स की जांच करने पर पता चला है ,यह क्रिस्टल स्युदोमोनस के गिर्द ही पनपें हैं .न्युक्लीयाई का काम करता रहा है यह जीवाणु वर्ग .इनमे से कुछ बेक्टीरिया फ्रीजिंग को हवा देतें हैं .ऐसा पादपों पर हल्ला बोलने की एक रन नीति के तहत हो रहा है .यह जीवाणु एक ऐसा प्रोटीन तैयार करतें हैं जिसकी मौजूदगी में फ्रीजिंग सामान्य से उच्चतर तापमान पर होती है .ऐसे पैदा हुआ वाटर आइस पादप को नुकसानी पहुंचाता है .फलस्वरूप पादप में मौजूद पुष्टिकर तत्व यह बेक्टीरिया हजम कर जाता है ।
ऐसा प्रतीत होता है यह बेक्टीरिया एक ऐसे सिस्टम का हिस्सा हैं जिसका अभी विधिवत अध्धयन होना शेष है .पादपों को संकर्मित कर जीवाणु अपनी वंश वृद्धि कर एयरो -सोल्स के रूप में आकाश में खो जातें हैं .यहीं पर वह बादलों के सीड्स (न्युक्लीयाई )बन जातें हैं .आइस क्रिस्टल्स को हवा देतें हैं .इन्हीं क्रिस्टल्स का पिघलना बरसात है.रैन इज फालिंग क्लाउड .जब बादल का भार ऊपर की और लगने वाली उछाल से ज्यादा हो जाता है .वह मुक्त रूप से गुरुत्व की वजह से गिरने लगता है .अलबत्ता यह बरसात अपेक्षाकृत ज्यादा तापमान पर होती है .,धूल और मिनरल पार्तिकिल्स के गिर्द बन्ने वाले आइस क्रिस्टल केपिघलाव के बरक्स ।
ज़ाहिर है यदि इस रिसर्च में जान है तब ओवर ग्रेज़िंग (चरागाहों का सफाया ),लोगिंग (लकड़ी का व्यापार )सूखे कीवजह बन सकतें हैं .क्योंकि वनस्पति के सफाए का मतलब होगा जीवाणु को उसके घर से कुदरती आवास से बेदखल करना आदीवासी भाइयों की तरह ।
दूसरी और यह बेक्टीरिया कुछ पादपों पर ज्यादा डेरा डालता है उनकी फार्मिंग को बढ़ावा देकर बरसात का आवाहन किया जा सकता है ,क्वांटम ऑफ़ रैन को बढाया जा सकता है ।
अध्धययन ज़ारी है .माहिर क्लाउड वाटर साम्पिल्स की जांच मौजूद और संभव माइक्रोब्स के डी एन ए विश्लेसन के लिए व्यापक स्तर पर कर रहें हैं ।
बेक्टीरिया की अब तक १२६ स्त्रैंस के डी एन ए की सिक्युवेंसिंग कर चुके हैं .,साइंसदान .एक डाटा बेस तैयार किया जा रहा है .ताकि बेक्टीरिया की भौगोलिक जड़ों की पड़ताल की जा सके ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'रैन क्लाउड इज मोस्टली मेड ऑफ़ बेक्टीरिया '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मे २६ ,२०१० )

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