मंगलवार, 18 अगस्त 2009

झूम खेती ने किया बंटाढार.

आलमी तापन (ग्लोबल वार्मिंग )की शुरूआत खेती किसानी के आरम्भ में उन किसानों ने कर डाली अपने अनजाने ही जिनके पास कृषि कर्म के आदिम साधन ही थे ,जो कृषि कर्म की बारीकियों से नावाकिफ थे . किसानों के ये पूर्वज जंगलों कासफाया कर फसल उगाते थे .कल तक भारत के उत्तर -पूरबी राज्यों में झूम खेती का यही चलन जारी था .इसे स्लेश एंड बर्न मेथड कहा जाता था .विज्ञानियों का अनुमान है ,इससे पर्याप्त ग्रीनहाउस गैस कार्बन डाई-आक्साइड वायु मंडल में दाखिल हो गई होगी ।
अनाज के चंद दाने पैदा करने के लिए ये आदिम लोग एक बड़े क्षेत्र से जंगलों का सफाया कर देते थे .आज से १० गुना ज्यादा प्रति व्यक्ति जोत इनके पास होती थी .बेहिसाब जंगल औ बहुत थोड़े लोग ,ना कोई रोक ना टोक ।
कथित उन्नत खेती ,सघन साधन सिंचाई के मांग रही है ,आधुनिक ताम झाम ने भी जलवायु -परिवर्तन को कम एड नहीं लगाई है ,गिरते हुए पर्यावरण -पारिस्तिथि को एक लात और मारी है .

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