शनिवार, 29 अगस्त 2009

अब जुबाँ को दिखाई देता है ,निगाहों से भी बात होती है .

ज़िक्र होता है जब क़यामत का ,तेरे जलवों की बात होती है
,तू जो चाहें तो दिन निकलता है .,तू जो चाहे तो रात होती है ।
तुझको देखा है मेरी नज़रों ने ,तेरी तारीफ़ तो करुँ कैसे
ना जुबाँ को दिखाई देता है ,न निगाहों से बात होती है ।
तो ज़नाब शायर झूठां पड़ गया है -अब नेत्र हीन ब्रेन पोर्ट की मदद से जुबां से भी देख सकेंगे ।
जुबाँ के माध्यम से दृश्य संकेत ब्रेन पोर्ट ग्रहण करेगा ।
इसमें एक छोटा सा डिजीटल केमरा फिट होगा जो इन संकेतों को एक इलेक्ट्रोड नेटवर्क को देगा .यह संजाल एक लालीपाप के बतौर बस जुबां पर रख दिया जाएगा ।
एक जोड़ी ग्लासिज़ में समायोजित डिजीटल केमरा दृश्य संकेतों को ,देखी गई चीज़ों को एक आधारीय सेल फोन को देगा .बस काम ख़त्म -यही सेल फोन दृश्य संकेतों को छोटी छोटी विद्दयुत स्पंदों में (इलेक्ट्रिकल -इम्पल्सिस )में तब्दील कर देगा ।
ज़नाब आप की आँख भी तो यही काम अंजाम देती है .ये तो दिमाग की अपनी व्याख्या होती है -जिसे हम दृश्य कहते हैं ।

जानतें हैं आप इस छोटे से सेल फोन का कमाल -आधारीय ईकाई (बेस यूनिट )इस सूचना को तकरीबन ४०० अति सूक्ष्म इलेक्ट्रोडों को जो लालीपाप में बिठाए होतें हैं ,दे देती है .जुबाँ इस लालीपाप का मज़ा भी लेती है ,आस पास की छोटी -छोटी चीज़ें यथा दरवाज़े मेज़ पर राखी केतली ,कप ,एलीवेटर का बटन ,लिफ्ट कौन से फ्लोर पर है यह भी देख समझ लेती है ।
एक ब्रेन -पोर्ट की लागत फिलवक्त १०,००० ,डॉलर आंकी गई है ,इसके २००९ के अंत तक बाज़ार में दस्तक देने की उमीद है .बतलादे आपको -माइक्रो -इलेक्ट्रोड्स ही जुबाँ की नवस को उद्दीपन प्रदान करतीं हैं .जुबाँ की नोंक ही आँख बन जाती है .

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