शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

धूम्र पान और जायका ,स्वाद -कलिकाओं का खेल .

६२ ग्रीस सेनानियों की ज़बान (टंग,जीभ ) का अध्धय्यन विश्लेषण कर विज्ञानियों ने निष्कर्ष निकाला है ,स्वाद -कलिकाएँ (टेस्ट -बड्स )धूम्र -पानियों की ना सिर्फ़ कम हो जातीं हैं ,कुंद भी ,यानी बेजायका ।
थेस -सालो -नाय -की स्तिथ अरस्तुविश्व्विद्दायला शोध टीम के मुखिया पाव्लीदिस पाव्लोज़ ने टेस्ट -थ्रेश -होल्ड (स्वाद की सीमा )का पता लगाने के लिए विद्दयुत प्रेरण (इएलेक्त्रिकल स्तिमूलेषण ) तथा इंडो -स्कोप का स्तेमाल किया .इस प्रकार सेनानियों की ज़बान में मायजूद एक खास टेस्ट बड(स्वाद कलिका -फंजिफार्मपेपिले ) की बनावट और संख्या का जायजा लिया गया ।
जबान में बिजली भेजकर एक विशिष्ठ धात्वीय स्वाद (मितेलिक टेस्ट ) पैदा किया गया ।
आज़माइशों के दौरान २८ धूम्र्पानियों का स्कोर सबसे ख़राब रहा बरक्स ३४ गैर धूम्र -पानियों के .यानि धूम्र पानियों में स्वाद कलिकाएँ कमतर भी थीं ,नाकारा भी ।
बे स्वाद लगती है ,बे जायका हर चीज़ धूम्र पानी को -इसीलियें शायद कहा जाता है -फलां ब्रांड की सिगरेट पीने वालों की बात ही कुछ और है .इन टेस्ट बड्स तक कमतर रक्त आपूर्ति हो पाती है .इनकी टेस्ट बड्स बेकार हो जातीं हैं ,इसलिये सिगरेट के अलावा हर चीज़ बेजायका लगती है ।
एक एक्स -स्मोकर के नाते मैं ख़ुद इस बात को मानता हूँ ,उस दौर मैं खाना खाते वक्त भी ध्यान विल्स रेगुलर साइज़ पर रहता था ,और अब कोई एक सिगरेट हमारे आगे पीछे सड़क पर भी पी रहा हो ,तो माथा ठनक जाता है ।
एक धूपबत्ती ,अगरबत्ती माहौल को खुशनुमा और एक सिगरेट ,नागँवार बना देती है .परिवेश को काटता है ,प्राइ-मरी ,सेकंडरी ,साइड स्ट्रीम स्मोक .उतनी पेसिव नहीं है -पेस्सिव स्मोकिंग .

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