रविवार, 28 अक्तूबर 2012

तर्क की मीनार


मेरा सुझाव अच्छा लगे तो कड़वे घूँट का पान करें"मित्रों! बहुत दिनों से एक विचार मन में दबा हुआ था! हमारे बहुत से मित्र अपने 

ब्लॉग पर या फेसबुक पर अपनी प्रविष्टि लगाते हैं। वह यह तो चाहते हैं कि लोग उनके यहाँ जाकर अपना अमूल्य समय लगा कर विचार कोई बढ़िया सी

 टिप्पणी दें। केवल इतना ही नहीं कुछ लोग तो मेल में लिंक भेजकर या लिखित बात-चीत में भी अपने लिंक भेजते रहते हैं। अगर नकार भी दो तो वे फिर 

भी बार-बार अपना लिंक भेजते रहते हैं। लेकिन स्वयं किसी के यहाँ जाने की जहमत तक नहीं उठाते हैं..

एक प्रतिक्रिया :वीरुभाई 

ब्लॉग का मतलब ही है संवाद !संवाद एक तरफा नहीं हो सकता .संवाद है तो उसे विवाद क्यों बनाते हो ?जो दोनों के मन को छू जाए वह सम्वाद है जो 

एक 

के मन को आह्लादित करे ,दूसरे 

के मन को तिरस्कृत वह संवाद नहीं है .

भले यूं कहने को विश्व आज एक गाँव हो गया है लेकिन व्यक्ति व्यक्ति से यहाँ बात नहीं करता .पड़ोसी पड़ोसी को नहीं जानता .व्यक्ति व्यक्ति के बीच 

का संवाद ख़त्म हो रहा है .जो एक प्रकार का  खुलापन था वह खत्म हो रहा है ब्लॉग इस दूरी को पाट सकता है .ब्लॉग संवाद को  जिंदा रख सकता है .

इधर सुने उधर सुनाएं .कुछ अपनी कहें कुछ हमारी सुने .

गैरों से कहा  तुमने ,गैरों को सुना तुमने ,

कुछ हमसे कहा होता ,कुछ हमसे सुना  होता .

जो लोग अपने गिर्द अहंकार की मीनारें खड़ी करके उसमें छिपके बैठ गएँ हैं वह एक नए वर्ग का निर्माण कर रहें हैं .श्रेष्ठी वर्ग का ?

बतलादें उनको -

मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .

बेशक आप महानता का लबादा ओढ़े रहिये ,एक दिन आप अन्दर अंदर घुटेंगे ,और कोई पूछने वाला नहीं होगा .

अहंकार की मीनारें बनाना आसान है उन्हें बचाए रखना मुश्किल है -

लीजिए इसी मर्तबा डॉ .वागीश मेहता जी की कविता पढ़िए -

तर्क की मीनार 

मैं चाहूँ तो अपने तर्क के एक ही तीर से ,आपकी चुप्पी की मीनार को ढेर कर दूं -

तुम्हारे सिद्धांतों की मीनार को ढेर कर दूं ,

पर मैं ऐसा करूंगा नहीं -

इसलिए नहीं कि मैं तुमसे भय खाता हूँ ,सुनो इसका कारण सुनाता हूँ ,

क्योंकि मैं जानता हूँ -

क़ानून केवल नाप झौंख कर सकता है ,

क़ानून के मदारी की नजर में ,गधे का बच्चा और गाय का बछड़ा दोनों एक हैं -

क्योंकि दोनों नाप झौंख में बराबर हैं .

अभी भी नहीं समझे ! तो सुनो ध्यान से ,

जरा इत्मीनान से ,कि इंसानी भावनाओं के हरे भरे उद्यान को -

चर जाने वाला क़ानून अंधा है ,

कि अंधेर नगरी की फांसी का फंदा है ,

जिसे फिट आजाये वही अपराधी है ,

और बाकी सबको आज़ादी है .

(समाप्त )

वीरुभाई :

इसीलिए मैं कहता हूँ ,कुछ तो दिल की बात कहें ,कुछ तो दिल की बात सुने।

नावीन्य बना रहेगा ब्लॉग जगत में 

7 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

ब्लॉग पहले गाँव में था ,
एक दिन टहलता हुआ शहर आ गया .
शहर ने ब्लॉग का अपहरण कर लिया ,
ब्लॉग ने फेसबुक के aage aatm smarpan कर दिया
nateeza सामने है , देख लिया ,
ब्लॉग ने हमारा और फेसबुक ने ब्लॉग का
हुलिया बिगाड़ के रख दिया .

( कवि आशकरण अटल की एक कविता se prerit )

lagta है , blauging se logon का moh bhang ho raha है.

Kailash Sharma ने कहा…

मीनार किसी की भी सुरक्षित नहीं होती .लोग भी ऊंची मीनारों से नफरत करते हैं .

...बहुत सच कहा है..लाज़वाब सार्थक प्रस्तुति..

musafir ने कहा…

बेहतरीन बात कही है आपने हमारे यहाँ एक जुमला बहुत खास है...........
"अहंकार तो महाप्रतापी रावण का नही रहा तुम किस खेत की मूली हो".

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

वाह!
आपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 29-10-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1047 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ

रविकर ने कहा…

तर्क की मीनार
Virendra Kumar Sharma
ram ram bhai
पत्नी भोजन दे पका, स्वाद लिया भरपूर |
बेटा रूपये भेजता, बसा हुआ जो दूर |
बसा हुआ जो दूर, हमारी तो आदत है |
नहीं कहें आभार, पुरानी सी हरकत है |
गरज तुम्हारी आय, ठोकते रहिये टिप्पण |
क्या बिगड़ेगा मोर, ढीठ रविकर है कृ-पण ||

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

ब्लॉग से मोह खत्म सा होता जा रहा है ...नए लोग जुड़ रहे है .....मेल से लिंक भेजने की बात पे ये ही कहूँगी कि googal+ par add करते ही मेल अपने आप जाने का ओपशन है ...और मेल हैं तो वो आएँगी ही ...

खेर एक बढिया सोच और बढिया पोस्ट के लिए आभार

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सच कहा है.लाज़वाब सार्थक प्रस्तुति.