सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

बेतुके सवाल


बेतुके सवाल

माननीय दिग्विजय सिंह जी !आपके श्री केजरीवाल साहब से पूछे गए  27 सवालों को सुनकर 

लगता है सवाल करने के लिए सवाल किये गए हैं .जितने 

भी प्रश्न पूछे गएँ हैं उनका ज़वाब 

सरकारी रिकार्ड में है .

नौकर विभाग के रहमोकरम पे होता है वह कहाँ रहेगा यह फैसला विभाग करता है .वह कहाँ से 

सेवानिवृत्त होगा यह भी विभाग ही तय करता है 

मुलाजिम 

नहीं .

आप केजरीवाल साहब से ये तमाम सवाल पूछ्के मेहरबानी क्यों करते हो ?जिसे संविधान में दंड 

देने का अधिकार प्राप्त है उसके हाथ जोड़के प्रश्न पूछने 

का 

औचित्य क्या है ?

अगर आप से कोई ये पूछे आपका नाम दिग्विजय क्यों है ,क्या आप सचमुच में दिग्विजयी हैं ?

हैं तो हारे क्यों थे चुनाव ?

आप कह सकते हैं .माँ बाप ने रख्खा ये नाम .पूछा जा सकता है माँ बाप ने क्यों रख्खा ?जिस 

तरह हमारे पूछे गए इन सवालों का कोई औचित्य नहीं है 

,आपके सवालों की निर -अर्थकता आपको समझाने के लिए हमने भी ये निर -अर्थक सवाल 

आपसे उदाहरण स्वरूप पूछे हैं ..

इन सवालों का उत्तर देना आपका मान बढ़ाना है .

प्रश्न शिरोमणि दिग्विजय जी यदि आपसे यह पूछा जाए आप अधिकतर दिल्ली में क्यों रहतें हैं 

भोपाल में क्यों नहीं ?आपको लोग भोपाली बाज़ीगर क्यों

 कहतें हैं?हम नहीं कहते लोग कहतें हैं .आप कहेंगे ये मेरा  व्यक्तिगत मामला है .मैं कहाँ रहूँ 

कहाँ न रहूँ .

आप से आग्रह किया जाता है बेकार के प्रश्न पूछकर पागल कहे जाने के हकदार न बनें .आप एक 

प्रदेश के मुख्यमंत्री रहें हैं अपना स्तर बढ़ाएँ . 


कभी कभार 

अब आप पोस्ट के साथ 


"वागीश विचार "भी पढ़िए :

वागीश उवाच 

बौद्धिक प्रतिभाओं का ईमानदार होना और ईमानदार दिखना .(पहली क़िस्त )

आवश्यक नहीं है यह दोनों स्थितियां साथ साथ चलें .क्योंकि "होना "क्रिया का सम्बन्ध खुद से है और दिखना क्रिया का सम्बन्ध समाज से है .और यह 

बहुत संभव है कि दिखने का सामाजिक साँचा आपके होने के निजी सांचे को ही ध्वस्त कर दे . 

 होना और दिखना (दूसरी क़िस्त )

जब आप के सामने चुनौती आ जाये कि आप "होने " और "दिखने " में किसको वरण  करेंगे 

ईमानदार होना और ईमानदार दिखना इन दोनों स्थितियों में से यदि किसी एक को चुनने की नौबत आ जाए तो बेखटके से "ईमानदार होने को "चुन 

लेना चाहिए क्योंकि ऐसी स्थिति में आप केवल समाज को ही खोयेंगे किन्तु यदि ईमानदार दिखने की स्थिति में आप ईमानदार होने से वंचित हो  गए तो

अपने आपको खो बैठेंगे ,और अपने आपको खोना समाज को खो देने से ज्यादा पीड़ाकारक होता है .

(ज़ारी )

3 टिप्‍पणियां:

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

सही बात .......

रविकर ने कहा…

सत्ताइस सत्ता *इषुधि, छोड़े **विशिख सवाल ।
दिग्गी चच्चा खुश दिखे, तंग केजरीवाल।
*तरकस **तीर

तंग केजरीवाल, विदेशी दान मिला है ।
डालर गया डकार, यही तो बड़ी गिला है ।

करिए स्विस में जमा, माल सब साढ़े बाइस ।
सत्तइसा का पूत, प्रश्न दागे सत्ताइस ।।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

प्रश्नों पर प्रतिप्रश्न...
अच्छा है!