अपनी ही सुसराल
सैयां भये कोतवाल ,फिर डर काहे का ,
भरतार है थानेदार ,फिर डर काहे का .
जब चोर है नम्बरदार ,फिर डर काहे का ,
जब अपनी है सरकार ,फिर डर काहे का .
शिखर से होता भ्रष्टाचार ,फिर डर काहे का .
भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार ,फिर डर काहे का .
वाडरा है शहसवार ,फिर डर काहे का ,
जब अपनी ही सुसराल ,फिर डर काहे का .
बोलो जय जयकार ,
फिर दर काहे का .
प्रधान मंत्री कहतें हैं विकास के बढ़ने से भ्रष्टाचार बढ़ता है .पूछा जा सकता है :विकास का जो फल है वह
भ्रष्टाचार है ?
आप भ्रष्टाचार को रोकने की बात नहीं करते ,आप कहतें हैं इसका ज्यादा प्रचार मत करो .निहितार्थ यह
निकलता है भ्रष्टाचार होने दो ,तुम भी कर लो पर प्रचार न करो .
सैयां भये कोतवाल ,फिर डर काहे का ,
भरतार है थानेदार ,फिर डर काहे का .
जब चोर है नम्बरदार ,फिर डर काहे का ,
जब अपनी है सरकार ,फिर डर काहे का .
शिखर से होता भ्रष्टाचार ,फिर डर काहे का .
भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार ,फिर डर काहे का .
वाडरा है शहसवार ,फिर डर काहे का ,
जब अपनी ही सुसराल ,फिर डर काहे का .
बोलो जय जयकार ,
फिर दर काहे का .
प्रधान मंत्री कहतें हैं विकास के बढ़ने से भ्रष्टाचार बढ़ता है .पूछा जा सकता है :विकास का जो फल है वह
भ्रष्टाचार है ?
आप भ्रष्टाचार को रोकने की बात नहीं करते ,आप कहतें हैं इसका ज्यादा प्रचार मत करो .निहितार्थ यह
निकलता है भ्रष्टाचार होने दो ,तुम भी कर लो पर प्रचार न करो .
2 टिप्पणियां:
जब अपनी ही सुसराल ,फिर डर काहे का .
बेहतरीन रचना बिलकुल सटीक और सही चोट की है.
प्रसन्न रहिये, कुछ तो बढ़ रहा है..
एक टिप्पणी भेजें