शनिवार, 13 अक्तूबर 2012

अपनी ही सुसराल

                                                               अपनी ही सुसराल


सैयां भये कोतवाल ,फिर डर काहे का ,

भरतार है थानेदार ,फिर डर काहे का .

जब चोर है नम्बरदार ,फिर डर काहे का ,

जब अपनी है सरकार ,फिर डर काहे का .

शिखर से होता भ्रष्टाचार ,फिर डर काहे का .

भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार ,फिर डर काहे का .

वाडरा है शहसवार ,फिर डर काहे का ,

जब अपनी ही सुसराल ,फिर डर काहे का .

बोलो जय जयकार ,

फिर दर काहे का .

प्रधान मंत्री कहतें हैं विकास के बढ़ने से भ्रष्टाचार बढ़ता है .पूछा जा सकता है :विकास का जो फल है वह

भ्रष्टाचार है ?

आप भ्रष्टाचार को रोकने की बात नहीं करते ,आप कहतें हैं इसका ज्यादा प्रचार मत करो .निहितार्थ यह

निकलता है भ्रष्टाचार होने दो ,तुम भी कर लो पर प्रचार न करो .


2 टिप्‍पणियां:

musafir ने कहा…

जब अपनी ही सुसराल ,फिर डर काहे का .
बेहतरीन रचना बिलकुल सटीक और सही चोट की है.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रसन्न रहिये, कुछ तो बढ़ रहा है..