विचार :वागीश उवाच
जटिल से निपटना तो आसान है ,कुटिल से निपटना बहुत मुश्किल और
जो जटिल और कुटिल दोनों हों उनसे तो भगवान् ही रक्षा करें .वर्तमान
सत्ताधीशों में ये दोनों ही गुण हैं .अब तो खुदा ही खैर करे .-वागीश
उवाच .
वीरुभाई की मसखरी :
भारत सरकार के एक मंत्री मोइली साहब "गडकरी मामले "पर फरमाते हैं -
ये भाजपा का अंदरूनी मामला है .संकेत साफ़ है जो अंदरूनी भ्रष्टाचार
होता है वह पार्टी के अन्दर का मामला होता है .संकेत साफ़ है तुम
निजी सेकटर को लूटो ,जनता का धन लूटो हम सरकारी फंड लूटतें हैं .तुम
अपना काम करो हम अपना करते हैं .दोनों के बीच यह अलिखित समझ है
समझौता है .तुम अपना भ्रष्टाचार करो
हम अपना करते रहेंगें .तुम वाड्रा का मुद्दा मत उठाओ हम गडकरी का नहीं
उठायेंगे .
लेकिन गडकरी के भ्रष्टाचार से वह हिंसक आक्रोश पैदा नहीं होता है जो
सरकारी भ्रष्टाचार से हो रहा है .सरकार तो बड़े सरकारी फंड लूट रही है
कोयला इस्कैम में ही 1,86 ,000 करोड़ लूट लिया न लूटती तो यह
पैसा
सरकारी फंड में जाता .सरकार अपने एहंकार में क़ानून तोड़के लूटती है
विपक्ष क़ानून जहां जहां असावधान दिखता है वहां से थोड़ा बहुत
लूटता .दोनों के चरित्र में मूल भूत अंतर है .मामला टू जी का रहा हो या
खेलों का या घटिया सड़क निर्माण का जिसका पर्दा फाश करते करते एक
भारत का होनहार लाल मारा गया -
सरकार विपक्ष से कहती है विदेश से जो भी फंड आतें हैं वह हमारे हैं आप
इससे दूर रहो .आप निजी कम्पनियों को लूटो .हम अनदेखी
करेंगे .अगर गडकरी ने भ्रष्टाचार किया है तो सरकार उनके खिलाफ
मामला
क्यों नहीं दायर करती .बात साफ़ है यह मौसेरों के अंदर की बात है .बाहर
क्यों आये ?
लाचार जनता का दर्शन भ्रष्टाचार नहीं है लेकिन उसे भी अपना काम
निकलवाने के लिए भ्रष्टाचार करना पड़ता है .आम आदमी रिश्वत
देकर काम निकलवाता है .काम होने पर खुश हो जाता है चलो काम तो हो
गया .और तो कुछ कर नहीं पाता गीत गाता है :
पक्ष ,विपक्ष की लूट है ,लूट सके तो लूट
फिर पाछे पछतायेगा कुर्सी जायेगी छूट .
2 टिप्पणियां:
जाएँ तो जाएँ कहाँ ||
बढ़िया प्रस्तुति ||
क्या होगा इन नेताओ का
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