रविवार, 14 अक्तूबर 2012

अपनी ही सुसराल


                                                               अपनी ही सुसराल


सैयां भये कोतवाल ,फिर डर काहे का ,

भरतार है थानेदार ,फिर डर काहे का .

जब चोर है नम्बरदार ,फिर डर काहे का ,

जब अपनी है सरकार ,फिर डर काहे का .

शिखर से होता भ्रष्टाचार ,फिर डर काहे का .

भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार ,फिर डर काहे का .

वाडरा है शहसवार ,फिर डर काहे का ,

जब अपनी ही सुसराल ,फिर डर काहे का .

बोलो जय जयकार ,

फिर डर  काहे का .

प्रधान मंत्री कहतें हैं विकास के बढ़ने से भ्रष्टाचार बढ़ता है .पूछा जा सकता है :विकास का जो फल है वह

भ्रष्टाचार है ?

आप भ्रष्टाचार को रोकने की बात नहीं करते ,आप कहतें हैं इसका ज्यादा प्रचार मत करो .निहितार्थ यह

निकलता है भ्रष्टाचार होने दो ,तुम भी कर लो पर प्रचार न करो .

3 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

घु लघु दीर्घ (7-बार) 1 दीर्घ

दुर्मिल सवैया (अभ्यास)



कुतवाल बने सँइयाँ अब तो, भइया पहिले गुड़ गोबर बा ।

सलवा बन जाय वजीर जहाँ, मन मोहन से कुछ सोबर बा ।
सलमान जवान बके विकलांग, चले सब चाल बरोबर बा ।
वडरा इक बात बता बिटिया, शुरुवातय से तुम रोबर बा ।।

रचना दीक्षित ने कहा…

आप बहुत उम्दा और ताज़ी और तार्किक जानकारी विभिन्न रोगों और उनके उपचारों के बारे में हम सबके लिये जुटाते है इसके लिये धन्यबाद.

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

सैयां भये कोतवाल ,फिर डर काहे का ,

भरतार है थानेदार ,फिर डर काहे का .

जब चोर है नम्बरदार ,फिर डर काहे का ,

जब अपनी है सरकार ,फिर डर काहे का .ram ram bhai'tabiyat khoosh kr dia