ब्लॉग जगत में अनुनासिक की अनदेखी
अनुस्वार ,अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .लेकिन नाक पे तवज्जो इतनी ज्यादा भी न हो
कि आदमी का मुंह ही गौण हो जाए .
भाषा की बुनावट कई मर्तबा व्यंजना में रहती है ,तंज में रहती है इसलिए दोस्तों बुरा न मनाएं .
आदमी अपने स्वभाव को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता .ये नहीं है कि हमारा ब्लॉग जगत में किसी से द्वेष है
केवल विशुद्धता की वजह से हम कई मर्तबा भिड़ जाते हैं .पता चलता है बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया .अब
डाल दिया तो डाल दिया .अपनी कहके ही हटेंगे आज .
जिनको परमात्मा ने सजा दी होती है वह नाक से बोलते हैं और मुंह से नहीं बोल सकते बोलते वक्त शब्दों को
खा भी जातें हैं जैसे अखिलेश जी के नेताजी हैं मुलायम अली .
लेकिन जहां ज़रूरी होता है वहां नाक से भी बोलना पड़ता है .भले हम नाक से बोलने के लिए अभिशप्त नहीं हैं .
अब कुछ शब्द प्रयोगों को लेतें हैं -
नाई ,बाई ,कसाई ......इनका बहुवचन बनाते समय "ईकारांत "को इकारांत हो जाता है यानी ई को इ हो जाएगा
.नाइयों ,बाइयों ,कसाइयों हो जाएगा .ऐसे ही "ऊकारांत "को "उकारांत " हो जाता है .
"उ " को उन्हें करेंगे तो हे को अनुनासिक हो जाता है यानी ने पे बिंदी आती है .
लेकिन ने पे यह नियम लागू नहीं होता है .ने को बिंदी नहीं आती है .बहने ,गहने पे बिंदी नहीं आयेगी .लेकिन
मेहमानों ,पहलवानों ,बहनों पे बिंदी आयेगी .
ब्लॉग जगत में आम गलतियां जो देखने में आ रहीं हैं वह यह हैं कि कई ब्लोगर नाक से नहीं बोल पा रहें हैं मुंह
से ही बोले जा रहें हैं .
में को न जाने कैसे मे लिखे जा रहें हैं .है और हैं में भी बहुत गोलमाल हो रहा है .
मम्मीजी जातीं "हैं ".यहाँ "हैं "आदर सूचक है मम्मी जाती है ठीक है बच्चा बोले तो लाड़ में आके .
अब देखिए हमने कहा में हमने ही रहेगा हमनें नहीं होगा .ने में बिंदी नहीं आती है .लेकिन उन्होंने में हे पे बिंदी
आयेगी ही आयेगी .अपने कई चिठ्ठाकार बहुत बढ़िया लिख रहें हैं लेकिन मुंह से बोले जा रहें हैं .नाक का
इस्तेमाल नहीं कर रहें हैं .
यह इस नव -मीडिया के भविष्य के लिए अच्छी बात नहीं है जो वैसे ही कईयों के निशाने पे है .
मेरा इरादा यहाँ किसी को भी छोटा करके आंकना नहीं है .ये मेरी स्वभावगत प्रतिक्रिया है .
कबीरा खड़ा सराय में चाहे सबकी खैर ,
ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर .
अनुस्वार ,अनुनासिक की अनदेखी अपनी नाक की अनदेखी है .लेकिन नाक पे तवज्जो इतनी ज्यादा भी न हो
कि आदमी का मुंह ही गौण हो जाए .
भाषा की बुनावट कई मर्तबा व्यंजना में रहती है ,तंज में रहती है इसलिए दोस्तों बुरा न मनाएं .
आदमी अपने स्वभाव को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता .ये नहीं है कि हमारा ब्लॉग जगत में किसी से द्वेष है
केवल विशुद्धता की वजह से हम कई मर्तबा भिड़ जाते हैं .पता चलता है बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया .अब
डाल दिया तो डाल दिया .अपनी कहके ही हटेंगे आज .
जिनको परमात्मा ने सजा दी होती है वह नाक से बोलते हैं और मुंह से नहीं बोल सकते बोलते वक्त शब्दों को
खा भी जातें हैं जैसे अखिलेश जी के नेताजी हैं मुलायम अली .
लेकिन जहां ज़रूरी होता है वहां नाक से भी बोलना पड़ता है .भले हम नाक से बोलने के लिए अभिशप्त नहीं हैं .
अब कुछ शब्द प्रयोगों को लेतें हैं -
नाई ,बाई ,कसाई ......इनका बहुवचन बनाते समय "ईकारांत "को इकारांत हो जाता है यानी ई को इ हो जाएगा
.नाइयों ,बाइयों ,कसाइयों हो जाएगा .ऐसे ही "ऊकारांत "को "उकारांत " हो जाता है .
"उ " को उन्हें करेंगे तो हे को अनुनासिक हो जाता है यानी ने पे बिंदी आती है .
लेकिन ने पे यह नियम लागू नहीं होता है .ने को बिंदी नहीं आती है .बहने ,गहने पे बिंदी नहीं आयेगी .लेकिन
मेहमानों ,पहलवानों ,बहनों पे बिंदी आयेगी .
ब्लॉग जगत में आम गलतियां जो देखने में आ रहीं हैं वह यह हैं कि कई ब्लोगर नाक से नहीं बोल पा रहें हैं मुंह
से ही बोले जा रहें हैं .
में को न जाने कैसे मे लिखे जा रहें हैं .है और हैं में भी बहुत गोलमाल हो रहा है .
मम्मीजी जातीं "हैं ".यहाँ "हैं "आदर सूचक है मम्मी जाती है ठीक है बच्चा बोले तो लाड़ में आके .
अब देखिए हमने कहा में हमने ही रहेगा हमनें नहीं होगा .ने में बिंदी नहीं आती है .लेकिन उन्होंने में हे पे बिंदी
आयेगी ही आयेगी .अपने कई चिठ्ठाकार बहुत बढ़िया लिख रहें हैं लेकिन मुंह से बोले जा रहें हैं .नाक का
इस्तेमाल नहीं कर रहें हैं .
यह इस नव -मीडिया के भविष्य के लिए अच्छी बात नहीं है जो वैसे ही कईयों के निशाने पे है .
मेरा इरादा यहाँ किसी को भी छोटा करके आंकना नहीं है .ये मेरी स्वभावगत प्रतिक्रिया है .
कबीरा खड़ा सराय में चाहे सबकी खैर ,
ना काहू से दोस्ती ना काहू से वैर .
9 टिप्पणियां:
काश, सबकी सोच आपकी तरह हो पाती।
आपने सही बात कही है,
मुझसे बिंदी रखने की अक्सर गल्ती हो जाती है,कोशिश
करता हूँ,आगे ऐसा न हो,,,,,,
RECECNT POST: हम देख न सके,,,
शब्द स्वयं सिद्ध हैं, अपना अधिकार पा ही लेंगे।
उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के चर्चा मंच पर ।।
बेहद जरूरी और बहुत ही बारीक बात की ओर ईशारा करने और सबका ध्यान दिलाने के लिए आपका आभार । कई बार ट्रांजिलिटरेशन सुविधा के उपयोग के कारण भी ऐसी गलती देखने में आती है । आभार व शुक्रिया ।
आपने बहुत बढिया मुद्दा उठाया है मगर होता ये है जिस राइटर का हम उपयोग कर रहे होते हैं उसमे ये कमी होती है जिस वजह से ऐसी कमियाँ रह जाती हैं ………आभार
वाह !
आज दाल में
वीरू जी
तड़का बदल दिये
मीठा खिलाते खिलाते
हल्के से खट्टा करके
चल दिये !!
बहुत सार्थक पोस्ट.हिंदी की मात्राओं और
उच्चारण के प्रति सजगता आवश्यक है
आभार
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