गेस्ट पोस्ट ,गजल :दोनों ही पक्ष आएं हैं तैयारियों के साथ ,हम गर्दनों के साथ हैं ,वो आरियों के
साथ .
साथ .
(नामचीन गजलकार कुंवर बे -चैन साहब की यह गजल हमें डॉ .वागीश मेहता जी ,गुडगाँव ने
मुहैया करवाई है .यह गजल वागीश जी की डायरी में खुद
कुंवर बे -चैन साहब के हाथों लिखी गई थी )
वागीश उवाच
जीवन में और जगत में ,राजनीति में और समाज व्यवहार में हमें बहुत कुछ संगत लगता है
उसके पीछे की विसंगति को भी जान लेना चाहिए .इबारत को
पढने से पहले ,शीर्षक को पढ़िए ,अपवाद ये भी हो सकता है कि शीर्षक अपनी इबारत के
प्रतिकूल हो ,ऐसी स्थिति में ,सिर्फ इबारत को ही पढ़ें ,उसे ही
प्राथमिकता दें .
अब विसंगत बातें होतीं हैं कई तो संगत बात ही पढ़ें .लीजिए पेश है गजल भी :
(1 )
दोनों ही पक्ष आएं हैं तैयारियों के साथ ,
हम गर्दनों के साथ हैं ,वो आरियों के साथ .
(2)
बोया न कुछ भी और ,फसल ढूंढते हैं लोग ,
कैसा मजाक चल रहा है ,क्यारियों के साथ .
(3)
तुम ही कहो कि किस तरह ,उसको चुराऊँ मैं ,
पानी की एक बूँद है ,चिंगारियों के साथ .
(4)
कुछ रोज़ से मैं देख रहा हूँ कि हर सुबह ,
उठती है एक कराह भी ,किलकारियों के साथ .
(5)
सेहत हमारी ठीक रहे भी तो किस तरह ,
आतें हैं खुद हकीम ही बीमारियों के साथ .
प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेन्द्र शर्मा )
8 टिप्पणियां:
स्वागत है अतिथि का -
सुन्दर प्रस्तुति ||
आभार भाई जी ||
क्या बात है -जोरदार !
यह एक अच्छा और स्वागतेय परिवर्तन है!
बहुत खूबसूरत और लाज़वाब.....
आभार !
बहुत ही दमदार रचना
बढिया ..
बोया न कुछ भी और ,फसल ढूंढते हैं लोग ,
कैसा मजाक चल रहा है ,क्यारियों के साथ .
-बहुत अर्थपूर्ण !
खूबसूरत गज़ल ।
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