गेस्ट पोस्ट ,गजल :सामने दर्पण के जब तुम आओगे
-----डॉ .वागीश मेहता ,डी .लिट(सीनिअर फेलो ,संस्कृति मंत्रालय ,भारत सरकार )
गज़ल
सामने दर्पण के जब तुम आओगे ,
अपनी करनी पर बहुत पछताओगे .
(2)
कल चला सिक्का तुम्हारे नाम का ,
आज खुद को भी चला न पाओगे .
(3)
सपने जिनको आज तक बेचा किए ,
आँख उनसे अब मिला क्या पाओगे .
(4)
दांत पैने थे सियासत में किए ,
क्या पता था अदब को ही खाओगे .
(5)
अब बगूले आग के उठने लगे ,
इन बगूलों में झुलस रह जाओगे .
वागीश उवाच
दर्शक की हैसियत मिली है ,चाहे देखते हुए रीझो ,चाहे खीझो .न हमारी रीझ से स्थिति बदलेगी न खीझने से ,इसलिए राम झरोखे बैठके जग का मुजरा
लेय।
प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )
2 टिप्पणियां:
सपने जिनको आज तक बेचा किए ,
आँख उनसे अब मिला क्या पाओगे ..waah bahut accha ....
हाए शेर उम्दा
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