सोमवार, 4 जून 2012

पुस्तक समीक्षा :Time Warped

पुस्तक समीक्षा :Time Warped

पिता  जी  उम्र  के  आखिरी   पड़ाव  पे  पहुँच  के  कहने  लगे  थे-देखो इस  घडी को कितनी तेज़ी से भाग रही है .उन्हें लगने लगा था उनका वक्त पूरा हो रहा है .

Does time speed up as we age ?

  • सारा  खेल  समय  का  है.समय सारे जख्मों को भर देता है .अच्छा वक्त पंख लगाके उड़ जाता है .और इंतजारी में बे करारी बढ़ जाती है फिर चाहे वह बड़े दिन की छुट्टियों का इंतज़ार  हो या  किसी प्रेयसी  का ,प्रेमी  के आने   का मन  मयूर नान्चता हुआ   कह  उठता  है

  • प्रतीक्षा में युग बीत गए ,सन्देश न कोई मिल पाया 
  • सच बत लाऊँ तुम्हें प्राण इस जीने से मरना भाया .
कम ही लोग को हमने समय की सवारी करते देखा है .अकसर लोग वक्त के नीचे रोंदे जातें हैं भारत के आम आदमी की तरह .

होश के 'लम्हे' नशे की कैफियत समझे गए हैं ,
फ़िक्र के पंछी जमीं के मातहत समझे गए हैं .

वक्त की दीवार पर पैगम्बरों के लफ्ज़ भी तो, 
बे -खयाली में घसीटे दस्तखत समझे गए हैं .

वक्त को लेकर ऐसे अनेक घिसे पिटे जुमले बारहा दोहराए गए हैं .मानो वक्त लचीला हो जब चाहे रबर की तरह खींच लो जब चाहे वाष्प के अणुओं सा उसे उड़ा दो .

मनोविज्ञान की व्याख्याता ,मशहूर लेखिका तथा ब्रोडकास्टर Claudia Hammond अपनी    किताब   Time Warped में  समय के बहरूपिये  पन  को आकृति  विज्ञान  को नए  सन्दर्भों  में प्रस्तुत  करतीं  हैं .प्रचलित  मान्यताओं  से हटके  हैं ये  अवधारणायें  ,प्रेक्षण  आधारित  विज्ञान  सम्मत  भी .

(१)क्या  हमारी  जैव  घडी  करती  है  समय  का  निर्धारण ?

Time is determined by the body,s circadian rhythm | False

हमारी  जैव  घडी  सिर्फ हमारे  दिन  और  रात  के  चक्र बोध   को असर ग्रस्त करती है .क्षण प्रति -क्षण समय के प्रति हमारा नजरिया संदर्श ,दृष्टि  क्या है जैव घडी का इससे कुछ लेना देना नहीं है .   

जैव घडी किसी   भी बिध   समय के प्रवाह  को असर ग्रस्त नहीं करती है .बेशक  यह  एक  स्वयं  चालित  घडी है .लेकिन  इसकी  लय  ताल  बिगड़     सकती  है .सूरज  के उगने  डूबने  के साथ   इसकी  समस्वरता   हार्मनी  सिंक्रो  -नाइज़ेशन  टूट  सकता  है .रात की पालियों  में काम  करने  वालों  के साथ  लम्बी  हवाई  यात्रा  करने   के दौरान  यही  होता  है .जहां आप एक के बाद एक टाइम ज़ोन के पार चलते चले जातें  हैं .

फ्री रनिंग कहलाती है यह इसकी बिगड़ी हुई लय ताल .

ज्योतिहीन लोगों के लिए तो वैसे भी  इसका कोई मतलब नहीं है .वह अपने पर्यावरण से कोई प्रकाश संकेत ग्रहण ही नहीं कर पातें हैं . 

हममे से बहुलांश के मामलों में इस जैव घडी के कम्पन दिन के प्रकाश से दुरुस्त हो जातें हैं  .

(२)Time speeds up as we get older |False

पिताजी  यही  तो   कहने लगे थे उम्र के आखिरी पड़ाव पर -रोको रोको इस घडी को बहुत तेज़ भाग  रही है .लेकिन साहब क्लाउडिया के शब्दों में समय का एक पल क्या पलांश भी नहीं लम्बाता है .हर पल पलांश की एक निश्चित अवधि है . 

Time runs as  fast as it runs .

मौत का एक पल मुअईयन है , नींद क्यों रात भर नहीं आती .

Claudia    के  शब्दों  में 

It;s our experiences over days ,weeks months and years that seem to condense .There is no biological basis for the sensation that time speeds up.It;s simply to do with our judgements on time retrospectively.

हमारे अनुभव ही सघन हो जातें हैं .वक्त जैसे ठहर जाता है .अतीत की घटनाओं को वर्तमान के आलोक में देखने से अकसर ऐसा होता है .लेकिन इसका कोई जैविक आधार नहीं है .

(३)Time is money | True
समाज मनोविज्ञानी Robert Levine ने ३१ मुल्कों में तीन चीज़ों का आकलन किया है .

(१)लोग स्टाम्प खरीदने  में कित्ता  वक्त लगाते  हैं .

(२) पैदल चलने वाले कित्ता तेज़ चलतें हैं उस नगर में .

(३)वहां बैंकों की दीवार घड़ियाँ कितना शुद्ध चलतीं हैं ?

ये तीन घटक जीवन की रफ़्तार का आईना हैं .

जहां रफ़्तार ज्यादा है वहां पैसा भी ज्यादा है .

पता चला लन्दन और न्यूयोर्क में यह रफ़्तार सर्वाधिक है .

New York and London had the fastest times.

हलाकि  यह  सवाल  अभी  भी   अन  -उत्तरित  है पहले     पैसा आया या रफ़्तार .

The culture of running around or the buoyant economy -which came first. 

(४)We can mentally time travel |True

हाँ  हम  कल्पना  शील  प्राणि  हैं  .अतीत  में लौट सकतें हैं हम ,घटनाओं   में  पीछे  लौटना  भविष्य  कथन  करना  अनागत  को  अघटित  को  पहले  ही  से  देख  लेना  हमारी ही सिफत है .लेकिन जो लोग स्मृति ह्रास (विस्मृति रोग एम्नीज़िया )से ग्रस्त हो जातें हैं वह अनागत तो क्या उन्हें तो वर्तमान में अपने ही होने की कुछ खबर नहीं रहती .'मैं कौन हूँ,मैं  कहाँ हूँ, मुझे ये होश नहीं' वाली उक्ति चरितार्थ हो जाती है उन पर .


आपने देखा है और बारहा देखा है कल की उर्वर कल्पनाएँ आज का यथार्थ  हैं .आज का फिक्शन  कल का सच है .


(५)Time feels slower when you want something done fast | True

मनोविज्ञान   के माहिरों ने आजमाइशों से पता लगाया है लोगों को    फास्ट फ़ूड की दृश्य तस्वीरें या फिर फास्ट फ़ूड दिखलाने पर उनका अधैर्य बढ़ जाता है .  .वजह यह है कि लोगों ने फास्ट फ़ूड का सम्बन्ध  rush   और  खुद के जल्दी में होने से   जोड़ लिया है .

यह बे -चैनी एन्ग्जायती ही हमें यह एहसास दिलाती है कि समय का पहिया धीरे घूम रहा है .अपनी रफ़्तार घूम नहीं पा रहा है .

(६)Our sense of time can be affected by biological conditions |True

तेज़  ज्वर(हाई टेम्प्रेचर )  होने  पर  समय के प्रति हमारा संदर्श बदल जाता है .

फ्ल्यू से ग्रस्त मरीजों से माहिरों ने दिन में अनेक बार यह बतलाने के लिए कहा  है एक मिनिट की अवधि बीतने के बाद वह हर बार इशारा करें कि एक मिनिट बीत गया है . पता चला     तेज़ बुखार होने पर (१०३ F या उससे भी ऊपर ) मरीजों ने ३४ सेकिंड बाद ही इशारा कर दिया एक मिनिट उनके हिसाब से बीत जाने का .

आइन्स्टाइन महोदय       ने कहा था  - जब भी भविष्य में कोई अन्तरिक्ष   यात्री    किसी न्युत्रोंन   सितारे  के नज़दीक  पहुंचेगा  ,उसकी  घडी की सुइयां  रुक  जायेंगी  .

यह भी आइन्स्टाइन  के विशेष  सापेक्षवाद  की एक एहम   अव  - धारणा    थी  -प्रकाश  के निर्वातीय  वेग  से अन्तरिक्ष  की सैर   करने वाले यात्री  की घडी की सुइयां  रुक  जायेगी   .काल   का प्रवाह थम  जाएगा   .यात्रा के बाद जब वह लौटेगा यहाँ पृथ्वी पर उसके अपनों की अनेक पीढियां गुज़र चुकी होंगी .वह जवान ही रहा आया है इस दरमियान .


Clocks in motion would record less time if their speeds are comparable with the speed of time relative to an inertial observer .If I have got a watch and you have got a watch and both are showing the same time .Now If you start running with relativstic speed your watch will show less time after an hour as compared to my watch who was stationary .

ऐसी रही है समय  की आइन्स्टीन द्वारा प्रतिपादित अवधारणा .

क्लाउडिया का नज़रिया अलग है .व्याख्या अलग है रूपाकृति बदलते समय की .

7 टिप्‍पणियां:

Sanju ने कहा…

Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुख में समय फुर्र से उड़ जाता है।

वीरेंद्र सिंह ने कहा…

very interesting !

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

समय और जीवन पर गहन मनन.

मनोज कुमार ने कहा…

लाजवाब पोस्ट। बेहतरीन परिचय।

virendra sharma ने कहा…

वीरेंद्र भाई इस रचना को उपलब्ध करवाने के लिए आपका शुक्रिया .हमें भवानी दा बहुत पसंद हैं -
सबका अपना पाथेय , पंथ एकाकी है ,
अब होश हुआ , जब इने गिने दिन बाकी हैं .
भवानी दा !

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


इंडिया दर्पण
पर भी पधारेँ।